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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 2
    सूक्त - इरिम्बिठिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-३
    44

    आ त्वा॑ ब्रह्म॒युजा॒ हरी॒ वह॑तामिन्द्र के॒शिना॑। उप॒ ब्रह्मा॑णि नः शृणु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । त्वा॒ । ब्र॒ह्म॒ऽयुजा॑ । हरी॒ इति॑ । वह॑ताम् । इ॒न्द्र॒ । के॒शिना॑ । उप॑ । ब्रह्मा॑णि । न॒: । शृ॒णु॒ ॥३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ त्वा ब्रह्मयुजा हरी वहतामिन्द्र केशिना। उप ब्रह्माणि नः शृणु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । त्वा । ब्रह्मऽयुजा । हरी इति । वहताम् । इन्द्र । केशिना । उप । ब्रह्माणि । न: । शृणु ॥३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (1)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (ब्रह्मयुजा) धन के लिये जोड़े गये, (केशिना) सुन्दर केश [कन्धे आदि के बालों] वाले (हरी) रथ ले चलनेवाले दो घोड़े [के समान बल और पराक्रम] (त्वा) तुझको (आ) सब ओर (वहताम्) ले चलें। (नः) हमारे (ब्रह्माणि) वेदज्ञानों को (उप) आदर से (शृणु) तू सुन ॥२॥

    भावार्थ

    जैसे उत्तम बलवान् घोड़े रथ को ठिकाने पर पहुँचाते हैं, वैसे ही राजा वेदोक्त मार्ग पर चलकर अपने बल और पराक्रम से राज्यभार उठाकर प्रजापालन करे ॥२॥

    टिप्पणी

    इस मन्त्र का मिलान करो-दयानन्दभाष्य यजु० ८।३४, ३ और अथ० २०।२९।२ ॥ २−(आ) समन्तात् (त्वा) त्वाम् (ब्रह्मयुजा) ब्रह्म धननाम-निघ० २।१०। ब्रह्मणे धनाय युज्यमानौ (हरी) रथस्य हारकावश्वाविव बलपराक्रमौ (वहताम्) प्रापयताम् (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (केशिना) प्रशस्तकेशयुक्तौ स्कन्धादिचिक्कणबालोपेतौ (उप) पूजायाम् (ब्रह्माणि) वेदज्ञानानि (नः) अस्माकम् (शृणु) आकर्णय ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Let the radiant waves of cosmic energy engaged in the service of divinity bring you here. Pray listen to our songs of prayer and adoration.

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    इस मन्त्र का मिलान करो-दयानन्दभाष्य यजु० ८।३४, ३ और अथ० २०।२९।२ ॥ २−(आ) समन्तात् (त्वा) त्वाम् (ब्रह्मयुजा) ब्रह्म धननाम-निघ० २।१०। ब्रह्मणे धनाय युज्यमानौ (हरी) रथस्य हारकावश्वाविव बलपराक्रमौ (वहताम्) प्रापयताम् (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (केशिना) प्रशस्तकेशयुक्तौ स्कन्धादिचिक्कणबालोपेतौ (उप) पूजायाम् (ब्रह्माणि) वेदज्ञानानि (नः) अस्माकम् (शृणु) आकर्णय ॥

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