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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 37 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 37/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-३७
    44

    त्वं नृभि॑र्नृमणो दे॒ववी॑तौ॒ भूरी॑णि वृ॒त्रा ह॑र्यश्व हंसि। त्वं नि दस्युं॒ चुमु॑रिं॒ धुनिं॒ चास्वा॑पयो द॒भीत॑ये सु॒हन्तु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । नृऽभि॑: । नृ॒ऽम॒न॒: । दे॒वऽवी॑ता। भूरी॑णि । वृ॒त्रा । ह॒रि॒ऽअ॒श्व॒ । हं॒सि॒ ॥ त्वम् । नि । दस्यु॑म् । चुमु॑रिम् । धुनि॑म् । च॒ । अस्वा॑पय: । द॒भीत॑ये । सु॒ऽहन्तु॑ ॥३७.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं नृभिर्नृमणो देववीतौ भूरीणि वृत्रा हर्यश्व हंसि। त्वं नि दस्युं चुमुरिं धुनिं चास्वापयो दभीतये सुहन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । नृऽभि: । नृऽमन: । देवऽवीता। भूरीणि । वृत्रा । हरिऽअश्व । हंसि ॥ त्वम् । नि । दस्युम् । चुमुरिम् । धुनिम् । च । अस्वापय: । दभीतये । सुऽहन्तु ॥३७.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 37; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (नृमणः) हे नरों के समान मन वाले ! (हर्यश्व) हे वायुसमान फुरतीले घोड़ोंवाले ! (त्वम्) तू (नृभिः) नरों के साथ (देववीतौ) दिव्यगुणों की प्राप्ति में (भूरीणि) बहुत (वृत्राणि) धनों को (हंसि) पाता है। (च) और (त्वम्) तूने (चुमुरिम्) हिंसाकारी, (धुनिम्) कंपानेवाले (दस्युम्) डाकू को (दभीतये) शासन के लिये (सुहन्तु) अच्छे प्रकार मारनेवाले हथियार से (नि) नीचे (अस्वापयः) सुलाया है ॥

    भावार्थ

    राजा धन आदि पदार्थ प्राप्त करके वीर सेनाध्यक्षों के साथ शत्रुओं का नाश करके प्रजापालन करें ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(त्वम्) (नृभिः) नेतृभिः (नृमणः) अ०१६।३।। नेतृतुल्यमनस्क (देववीतौ) दिव्यगुणानां प्राप्तौ (भूरीणि) बहूनि (वृत्राणि) धनानि-निघ०२।१०। (हर्यश्व) अ०२०।२।७। हे हरिभिर्वायुतुल्यैः शीघ्रगामिभिस्तुरङ्गैर्युक्त (हंसि) गच्छसि। प्राप्नोषि (त्वम्) (नि) नीचैः (दस्युम्) साहसिकम् (चुमुरिम्) चुबि वक्त्रसंयोगे हिंसायां च-उरिन्, बलोपः। हिंसकम् (धुनिम्) सुवृषिभ्यां कित्। उ०४।४९। धूञ् कम्पने-निप्रत्ययः कित्। कम्पयितारम् (च) (अस्वापयः) स्वापितवानसि। नाशितवानसि (दभीतये) वसेस्तिः। उ०४।१८०। दभ प्रेरणे-तिप्रत्ययः, ईकार उपजनः। प्रेरणाय। शासनाय (सुहन्तु) विभत्तेर्लुक्। सुहातुना। सुहननसाधनेन शस्त्रेण ॥

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    विषय

    'दस्यु, चुमुरि, धुनि' का स्वापन

    पदार्थ

    १. हे (नृमणः) = [नृभिः मननीय] उन्नति-पथ पर चलनेवाले पुरुषों से मनन के योग्य, (हर्यश्व) = तेजस्वी इन्द्रियाश्यों को प्राप्त करानेवाले प्रभो! (त्वम्) = आप (देववीतौ) = दिव्यगुणों के प्रापण के निमित्त (नृभिः) = उन्नति-पथ पर ले-चलनेवाले माता-पिता व आचार्यों द्वारा (भूरीणि वृत्रा) = बहुत-सी वासनाओं को (हंसि) = विनष्ट करते हैं। २. आप ही (दभीतये) = वासनाओं के संहार में प्रवृत्त मनुष्य के लिए (सुहन्तु) = उत्तम हननसाधन वन के लिए (दस्युम्) = शक्तियों को क्षीण करनेवाले क्रोधरूप दस्यु को (चुमुरिम्) = शक्तियों को पी जानेवाली कामवासना को (च) = और (धुनिम्) = सब गुणों को कम्पित करके दूर करनेवाले लोभ को (नि अस्वापय:) = निश्चय से सुला देते हैं। ये 'दस्यु, चुमुरि व धुनि' दबे पड़े रहते हैं। ये प्रबल होकर इस दभीति का विनाश नहीं कर पाते।

    भावार्थ

    प्रभु ही हमारी वासनाओं का विनाश करते हैं। वे दभीति के लिए 'दस्यु, चुमरि व धुनि' को सुला-सा देते हैं।

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    भाषार्थ

    (हर्यश्व) हे प्रत्याहार-सम्पन्न इन्द्रियाश्वों के स्वामी! (नृभिः) उपासक नेताओं द्वारा (देववीतौ) आप देव के प्रति आत्मसमर्पण कर देने पर, (त्वम्) आप उनके (भूरीणि) प्रभूत (वृत्रा) पाप-वृत्रों का (हंसि) हनन कर देते हैं, (नृमणः) क्योंकि उपासक-नेताओं के प्रति आपका मन, विचार, सदैव झुका रहता है। (दभीतये) दम्भ, छल कपट आदि दुर्भावनाओं से भीत उपासक के लिए, (त्वम्) आपने, (दस्युम्) उपक्षयकारी (सुहन्तु) तथा घातक (चुमुरिम्) डरपोकपन और (धुनिम्) अनवस्थिति के कारणों को (नि अस्वापयः) नितरां सुला दिया है।

    टिप्पणी

    [“दभीति” पद द्वारा उपासक के “सात्त्विकभाव” को सूचित किया है। वह सत्याचारी है इसलिए दम्भ भावनाओं से रहित है। चुमुरि का अर्थ होता है “हिरन”। यह स्वभावतः डरपोक होता है। डरपोकपन तमोगुण का परिणाम है। इसलिए चुमुरि पद द्वारा “तमोगुण” को सूचित किया है। धुनि का अर्थ है कम्पन, अनवस्थिति, चित्त में स्थिरता का अभाव, चञ्चलता। इस द्वारा “रजोगुण” को सूचित किया है। “अस्वापयः” पद् द्वारा तमोगुण और रजोगुण को नितरां सुला देने का वर्णन किया है। ऐसी स्वप्नावस्था कि जिससे तमोगुण और रजोगुण पुनः जागरित न हो सकें। इस स्वप्नावस्था का वर्णन योगदर्शन में भी हुआ है। यथा—“अविद्या क्षेत्रमुत्तरेषां प्रसुप्ततनुविच्छिन्नोदाराणाम्” (योग द০ २.४)। इसमें राग-द्वेष आदि वृत्तियों के प्रसुप्त हो जाने की अवस्था का वर्णन हुआ है। इन वृत्तियों की जागरित अवस्था को “उदार” कहा है।]

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    विषय

    राजा के कर्त्तव्य और परमात्मा के गुण

    भावार्थ

    हे (नृमणः) नेता पुरुषों द्वारा मनन, चिन्तन करने योग्य परम प्रभो ! हे (हर्यश्व) वेगवती महान् शक्तियों में व्यापक (देववीतौ) विजयशील पुरुषों के एकत्र संग्राम में जिस प्रकार राजा (भूरीणि) बहुत से शत्रुओं का नाश करता है उसी प्रकार तू (देववीतौ) देवों, प्राणों के एकत्र भोग के अवसर में (भूरीणि) बहुत से (वृत्राणि) विघ्नों को (हंसि) विनाश करता है। तू ही (दस्युं) प्रजा के नाशक चोर डाकू को (चुमुरिम्) प्रजा के धनको हडप जाने वाले, (धुनिम्) प्रजा को त्रास देने वाले पुरुषों को और (दभीतये) शत्रु नाशक पुरुष के लिये उनको (सुहन्तु) अच्छे आयुध सम्पन्न होकर (नि अस्वापयः) सर्वथा सुलादे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः। त्रिष्टुभः। इन्द्रो देवता। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    lndra Devata

    Meaning

    O leader and commander equipped with transport, communications and armoured fighting forces, cherished and honoured ruler of the heart of the nation, in the battle business of the protection and advancement of the divinities of nature and humanity, you fight out and eliminate the cumulated forces of darkness and destruction with the assistance and cooperation of the leading people. You lay to sleep and totally destroy the violent criminal, the thief and the terrorist in order to suppress and root out the forces of negation and destruction.

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    Translation

    O king, you possess the real spirit of leader and swift as the wind. You with in the Yajna destroy many obstacles. You, for protection of “‘Dabhiti’ the man striking foes make dacoit, the men consuming others money, the man creating fear in the people, dead sleep for ever with suitable weapon.

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    Translation

    O king, you possess the real spirit of leader and you are as swift as the wind. You with in the Yajna destroy many obstacles. You, for protection of ‘Dabhiti’ the man striking foes make dacoit, the men consuming others mony, the man creating fear in the people, dead sleep for ever with suitable weapon.

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    Translation

    O mighty Lord of swift-moving forces, well-disposed towards leaders, you destroy a lot of inimical forces and evils in the war or the sacrifice, performed by divine forces or men. Well-equipped with proper means of destruction you completely annihilate the wicked person, who robs and harasses the people for the maintenance of well-controlled administration. Or O current electricity of high voltage, safely carried by electric wires, you kill many enemies in the war, waged by learned persons or through the help of natural forces. To keep all the evil forces under control, you, being well equipped with good means of destruction, completely lay down to lasting sleep the evil forces that rob and harass the general public.

    Footnote

    (ii) Rendering of ‘Chumuri,* ‘Dhuni’ and ‘.Dabhiti’ as persons by Sayana and Griffith is wrong.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(त्वम्) (नृभिः) नेतृभिः (नृमणः) अ०१६।३।। नेतृतुल्यमनस्क (देववीतौ) दिव्यगुणानां प्राप्तौ (भूरीणि) बहूनि (वृत्राणि) धनानि-निघ०२।१०। (हर्यश्व) अ०२०।२।७। हे हरिभिर्वायुतुल्यैः शीघ्रगामिभिस्तुरङ्गैर्युक्त (हंसि) गच्छसि। प्राप्नोषि (त्वम्) (नि) नीचैः (दस्युम्) साहसिकम् (चुमुरिम्) चुबि वक्त्रसंयोगे हिंसायां च-उरिन्, बलोपः। हिंसकम् (धुनिम्) सुवृषिभ्यां कित्। उ०४।४९। धूञ् कम्पने-निप्रत्ययः कित्। कम्पयितारम् (च) (अस्वापयः) स्वापितवानसि। नाशितवानसि (दभीतये) वसेस्तिः। उ०४।१८०। दभ प्रेरणे-तिप्रत्ययः, ईकार उपजनः। प्रेरणाय। शासनाय (सुहन्तु) विभत्तेर्लुक्। सुहातुना। सुहननसाधनेन शस्त्रेण ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (নৃমণঃ) হে নরের/নেতা/অগ্রণী ন্যায় মনযুক্ত ! (হর্যশ্ব) হে বায়ুর ন্যায় শীঘ্রগামী ঘোড়াসমৃদ্ধ ! (ত্বম্) তুমি (নৃভিঃ) মনুষ্যদের সাথে (দেববীতৌ) দিব্যগুণের প্রাপ্তিতে (ভূরীণি) বহু (বৃত্রাণি) ধন (হংসি) প্রাপ্ত হও। (চ) এবং (ত্বম্) তুমি (চুমুরিম্) হিংসাকারী, (ধুনিম্) কম্পিতকারী (দস্যুম্) ডাকাতদের (দভীতয়ে) শাসনের জন্য (সুহন্তু) ভালোভাবে হননক্ষমতাসম্পন্ন অস্ত্র দ্বারা (নি) নীচে (অস্বাপয়ঃ) নাশ করেছো ॥

    भावार्थ

    রাজা ধনাদি পদার্থ প্রাপ্ত করে বীর সেনাধ্যক্ষের সাথে শত্রুদের নাশ করে প্রজা পালন করেন ॥৪॥

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    भाषार्थ

    (হর্যশ্ব) হে প্রত্যাহার-সম্পন্ন ইন্দ্রিয়াশ্বের স্বামী! (নৃভিঃ) উপাসক নেতাদের দ্বারা (দেববীতৌ) [আপনার] দেবতার প্রতি আত্মসমর্পণ করলে, (ত্বম্) আপনি তাঁদের (ভূরীণি) প্রভূত (বৃত্রা) পাপ-বৃত্র-সমূহের (হংসি) হনন করেন, (নৃমণঃ) কেননা উপাসক-নেতাদের প্রতি আপনার মন, বিচার, সদৈব নত থাকে। (দভীতয়ে) দম্ভ, ছলনা, কপটতা ইত্যাদি দুর্ভাবনা থেকে ভীত উপাসকের জন্য, (ত্বম্) আপনি, (দস্যুম্) উপক্ষয়কারী (সুহন্তু) তথা ঘাতক (চুমুরিম্) ভীরুতা এবং (ধুনিম্) অনবস্থিতির কারণ-সমূহকে (নি অস্বাপয়ঃ) নিরন্তর সুপ্ত করে দিয়েছেন।

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