अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 40/ मन्त्र 1
इन्द्रे॑ण॒ सं हि दृक्ष॑से संजग्मा॒नो अबि॑भ्यु॒षा। म॒न्दू स॑मा॒नव॑र्चसा ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रे॑ण । सम् । हि । दृक्ष॑से । स॒म्ऽज॒ग्मा॒न: । अबि॑भ्युषा ॥ म॒न्दू इति॑ । स॒मा॒नऽव॑र्चसा ॥४०.१॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रेण सं हि दृक्षसे संजग्मानो अबिभ्युषा। मन्दू समानवर्चसा ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रेण । सम् । हि । दृक्षसे । सम्ऽजग्मान: । अबिभ्युषा ॥ मन्दू इति । समानऽवर्चसा ॥४०.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (2)
विषय
राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
[हे प्रजागण !] (अबिभ्युषा) निडर (इन्द्रेण) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] के साथ (हि) ही (संजग्मानः) मिलता हुआ तू (सम्) अच्छे प्रकार (दृक्षसे) दिखाई देता है। (समानवर्चसा) एक से तेज के साथ (मन्दू) तुम दोनों [राजा और प्रजा] आनन्द देनेवाले हो ॥१॥
भावार्थ
जिस राज्य में प्रजागण राजा से और राजा प्रजा से उत्पन्न रहते हैं, वही राज्य विद्या और धन में उन्नति करता है ॥१॥
टिप्पणी
(मरुतः) अर्थात् मनुष्य वा प्रजागण देवता हैं, इसके लिये (मरुतः) ऋत्विज्-निघ०३।१८; पदनाम-निघ०। और अथर्व०१।२०।१ भी देखो ॥ मन्त्र १, २ ऋग्वेद में है-१।६।७, ८ और आगे हैं-अ०२०।७०।३, ४; मन्त्र १ सामवेद में है-उ०२।२।७॥१−(इन्द्रेण) परमैश्वर्यवता राज्ञा (सम्) सम्यक् (दृक्षसे) दृशेर्लेट्। त्वं दृश्येथाः (संजग्मानः) गमेः कानच्। संगच्छमानः (अबिभ्युषा) ञिभी भये-क्वसु। निर्भयेण (मन्दू) भृमृशीङ्०। उ०१।७। मदि स्तुतिमोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु-उप्रत्ययः। आनन्दकौ (समानवर्चसा) समानेन तेजसा ॥
Vishay
…
Padartha
…
Bhavartha
…
English (1)
Subject
lndra Devata
Meaning
Marut, wind energy, is seen while moving alongwith the indomitable sun, both beautiful and joyous, divinities coexistent, equal in splendour by virtue of omnipresent Indra, Lord Supreme.
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