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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 57 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 57/ मन्त्र 16
    ऋषिः - मेध्यातिथिः देवता - इन्द्रः छन्दः - बृहती सूक्तम् - सूक्त-५७
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    कण्वे॑भिर्धृष्ण॒वा धृ॒षद्वाजं॑ दर्षि सह॒स्रिण॑म्। पि॒शङ्ग॑रूपं मघवन्विचर्षणे म॒क्षू गोम॑न्तमीमहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क॒ण्वे॑भि: । धृ॒ष्णो॒ इति॑ । आ । धृ॒षत् । वाज॑म् । द॒र्षि॒ । स॒ह॒स्रिण॑म् ॥ पि॒शङ्ग॑ऽरूपम् । म॒घ॒ऽव॒न् । वि॒ऽच॒र्ष॒णे॒ । म॒क्षू । गोम॑न्तम् । ई॒म॒हे॒ ॥५७.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कण्वेभिर्धृष्णवा धृषद्वाजं दर्षि सहस्रिणम्। पिशङ्गरूपं मघवन्विचर्षणे मक्षू गोमन्तमीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कण्वेभि: । धृष्णो इति । आ । धृषत् । वाजम् । दर्षि । सहस्रिणम् ॥ पिशङ्गऽरूपम् । मघऽवन् । विऽचर्षणे । मक्षू । गोमन्तम् । ईमहे ॥५७.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 57; मन्त्र » 16
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मन्त्र १४-१६ परमात्मा की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (धृष्णो) हे निर्भय ! [परमात्मन्] (धृषत्) दृढ़ता से (कण्वेभिः) बुद्धिमानों करके [किये हुए] (सहस्रिणम्) सहस्रों आनन्दवाले (वाजम्) वेग का (आ दर्षि) तू आदर करता है, (मघवन्) हे धनवाले ! (विचर्षणे) हे दूरदर्शी ! (पिशङ्गरूपम्) अवयवों को रूप देनेवाले, (गोमन्तम्) वेदवाणीवाले [तुझ] से (मक्षु) शीघ्र (ईमहे) हम प्रार्थना करते हैं ॥१६॥

    भावार्थ

    वह परमात्मा परमाणुओं से सूर्य आदि बड़े-बड़े लोकों का बनानेवाला है, उस निर्भय की उपासना से मनुष्य धर्मात्मा होकर निर्भय होवें ॥१६॥

    टिप्पणी

    १४-१६। एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।३।१-३ ॥

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    विषय

    देखो व्याख्या अथर्व० २०.५२.१-३

    पदार्थ

    ज्ञान और शक्ति को प्राप्त करके मानव हित में तत्पर 'न-मेध' अगले सूक्त के प्रथम दो मन्त्रों का ऋषि है। इसी उद्देश्य से स्वास्थ्य का पूर्ण ध्यान करनेवाला 'जमदग्नि' [जमत्

    भावार्थ

    अग्नि-जिसकी जाठराग्नि मन्द नहीं] तीसरे व चौथे मन्त्र का ऋषि है -

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    भाषार्थ

    देखो—२०.५२.३।

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    विषय

    ईश्वरस्तुति।

    भावार्थ

    (१४–१६) इन तीन मन्त्रों की व्याख्या देखो अथर्व का० २०। ५२। १–३॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मधुच्छन्दा ऋषिः। इन्द्रो देवता। १-३ गायत्र्यः। शेषाः पूर्वोक्ताः। षोडशचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Indra, lord of universal vision, resolute will and irresistible action, ruler and commander of the world’s wealth, power and force, we pray, conceive, plan and bring about for the intelligent people of action and ambition a social order of golden beauty and progressive achievement, full of a hundred-fold prosperity of lands and cows, education and culture, and invincible will, strength and advancement free from indecision and delay in action.

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    Translation

    O All-beholding, All-conquering Almighty God you, defeating the tendencies of ignorance by the learned men, give thousand-fold powers. We ask you always for yellow-metaled wealth enriched with cows.

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    Translation

    O All-beholding, All-conquering Almighty God you, defeating the tendencies of ignorance by the learned men, give thousand-fold powers. We ask you always for yellow-metaled wealth enriched with cows.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १४-१६। एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।३।१-३ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মন্ত্রাঃ ১৪-১৬ পরমাত্মোপাসনোপদেশঃ।

    भाषार्थ

    (ধৃষ্ণো) হে নির্ভীক ! [পরমাত্মন্] (ধৃষৎ) দৃঢ়তাপূর্বক (কণ্বেভিঃ) বুদ্ধিমানদের দ্বারা [কৃত] (সহস্রিণম্) সহস্র আনন্দযুক্ত (বাজম্) বেগের (আ দর্ষি) আপনি আদর করেন। (মঘবন্) হে ধনবান ! (বিচর্ষণে) হে দূরদর্শী ! (পিশঙ্গরূপম্) অবয়ব-সমূহকে রূপ প্রদানকারী, (গোমন্তম্) বেদবাণীযুক্ত [আপনার] নিকট (মক্ষু) শীঘ্র (ঈমহে) আমরা প্রার্থনা করি ॥১৬॥

    भावार्थ

    পরমাত্মা পরমাণু-সমূহ দ্বারা সূর্যাদি সমগ্র বৃহৎ লোক সমূহের রচিয়তা, সেই নির্ভীক পরমাত্মার উপাসনার মাধ্যমে মনুষ্য ধর্মাত্মা হয়ে নির্ভীক হোক।।১৬।।

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    भाषार्थ

    দেখো—২০.৫২.৩।

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