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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 62/ मन्त्र 1
    ऋषिः - सौभरिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-६२
    105

    व॒यमु॒ त्वाम॑पूर्व्य स्थू॒रं न कच्चि॒द्भर॑न्तोऽव॒स्यवः॑। वाजे॑ चि॒त्रं ह॑वामहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒यम् । ऊं॒ इति॑ । त्वाम् । अ॒पू॒र्व्य॒ । स्थू॒रम् । न । कत् । चि॒त् । भर॑न्त: । अ॒व॒स्यव॑: ॥ वाजे॑ । चि॒त्रम् । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥६२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वयमु त्वामपूर्व्य स्थूरं न कच्चिद्भरन्तोऽवस्यवः। वाजे चित्रं हवामहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वयम् । ऊं इति । त्वाम् । अपूर्व्य । स्थूरम् । न । कत् । चित् । भरन्त: । अवस्यव: ॥ वाजे । चित्रम् । हवामहे ॥६२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 62; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    १-४ राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (अपूर्व्य) हे अनुपम ! [राजन्] (कत् चित्) कुछ भी (स्थूरम्) स्थिर (न) नहीं (भरन्तः) रखते हुए, (अवस्यवः) रक्षा चाहनेवाले (वयम्) हम (वाजे) सङ्ग्राम के बीच (चित्रम्) विचित्र स्वभाववाले (त्वाम्) तुझको (उ) ही (हवामहे) बुलाते हैं ॥१॥

    भावार्थ

    जब दुष्ट चोर-डाकू लोग अत्यन्त सतावें, प्रजागण वीर राजा की शरण लेकर रक्षा करें ॥१॥

    टिप्पणी

    मन्त्र १-४ आ चुके हैं-अथर्व० २०।१४।१-४ ॥ १-४−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।१४।१-४ ॥

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    विषय

    देखो व्याख्या अथर्व २०.१४.१-४

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    भाषार्थ

    (अपूर्व्य) हे अपूर्वशक्तिवाले परमेश्वर! (वयम्) हम उपासक (उ) निश्चय से, (चित्रम्) अद्भुतस्वरूप (त्वाम्) आपके प्रति (भरन्तः) भक्तिरस की भेंटे लाते हुए (अवस्यवः) अपनी रक्षाएँ चाहते हैं, और (वाजे) बल की प्राप्ति के निमित्त, तथा देवासुर-संग्राम में (हवामहे) आपकी सहायता की पुकारें करते हैं, (न) जैसे कि आत्मरक्षाएँ चाहनेवाले सांसारिक व्यक्ति, (कत् चित्) किसी (स्थूरम्) शक्तिशाली व्यक्ति को पुकारते हैं।

    टिप्पणी

    [वाजः=बल (निघं০ २.९); संग्राम (निघं০ २.१७)।]

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    विषय

    ईश्वर का स्तवन।

    भावार्थ

    (१-४) इन चार मन्त्रों की व्याख्या देखो अथर्ववेद का० २०। १४। १-

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नृमेध ऋषिः। इन्दो देवता। उष्णिहः। दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    O lord sublime, eternal, first and most excellent, we, bearing almost nothing substantial but praying for protection and advancement, invoke you in our battle of life for food, energy, knowledge and ultimate victory.

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    Translation

    O peerless Almighty God, we desiring succour, praising you wonderful one call you In our performance of intellectual feats. In this world nothing seems to be unchangeable.

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    Translation

    O peerless Almighty God, we desiring succour, praising you wonderful one call you In our performance of intellectual feats. In this world nothing seems to be unchangeable.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र १-४ आ चुके हैं-अथर्व० २०।१४।१-४ ॥ १-४−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।१४।१-४ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ১-৪ রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অপূর্ব্য) হে অনুপম! [রাজন্] (কৎচিৎ) কোনো কিছুই (স্থূরম্) স্থির (ন) না (ভরন্তঃ) রেখে, (অবস্যবঃ) রক্ষা কামনাকারী (বয়ম্) আমরা (বাজে) সংগ্রামের মাঝে (চিত্রম্) বিচিত্রস্বভাবযুক্ত (ত্বাম্) তোমাকে (উ)(হবামহে) আহ্বান করি॥১॥

    भावार्थ

    যখন দুষ্ট চোর-ডাকাত অত্যন্ত উৎপীড়িত করে, প্রজাগণ বীর রাজার শরণ গ্রহন করে রক্ষিত হোক ॥১॥ মন্ত্র ১-৪ আছে-অথ০ ২০।১৪।১-৪ ॥

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    भाषार्थ

    (অপূর্ব্য) হে অপূর্বশক্তিসম্পন্ন পরমেশ্বর! (বয়ম্) আমরা উপাসক (উ) নিশ্চিতরূপে, (চিত্রম্) অদ্ভুতস্বরূপ (ত্বাম্) আপনার প্রতি (ভরন্তঃ) ভক্তিরসের প্রতিগ্রহ আনয়ন করে (অবস্যবঃ) নিজেদের রক্ষা কামনা করি, এবং (বাজে) বল প্রাপ্তির নিমিত্ত/জন্য, তথা দেবাসুর-সগ্রামে (হবামহে) আপনার সহায়তার আহ্বান করি, (ন) যেমন আত্মরক্ষা কামনাকারী সাংসারিক ব্যক্তি, (কৎ চিৎ) কোনো (স্থূরম্) শক্তিশালী ব্যক্তিকে আহ্বান করে।

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