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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 62 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 62/ मन्त्र 4
    ऋषि: - सौभरिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-६२
    20

    हर्य॑श्वं॒ सत्प॑तिं चर्षणी॒सहं॒ स हि ष्मा॒ यो अम॑न्दत। आ तु नः॒ स व॑यति॒ गव्य॒मश्व्यं॑ स्तो॒तृभ्यो॑ म॒घवा॑ श॒तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हरि॑ऽअश्वम् । सत्ऽप॑तिम् । च॒र्ष॒णि॒ऽसह॑म् । स: । हि । स्म॒ । य: । अम॑दन्त ॥ आ । तु । न॒: । स: । व॒य॒ति॒ । गव्य॑म् । अश्व्य॑म् । स्तो॒तृऽभ्य॑: । म॒घऽवा॑ । श॒तम् ॥६२.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हर्यश्वं सत्पतिं चर्षणीसहं स हि ष्मा यो अमन्दत। आ तु नः स वयति गव्यमश्व्यं स्तोतृभ्यो मघवा शतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    हरिऽअश्वम् । सत्ऽपतिम् । चर्षणिऽसहम् । स: । हि । स्म । य: । अमदन्त ॥ आ । तु । न: । स: । वयति । गव्यम् । अश्व्यम् । स्तोतृऽभ्य: । मघऽवा । शतम् ॥६२.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 62; मन्त्र » 4
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    हिन्दी (2)

    विषय

    १-४ राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (सः) वह (हि) ही (स्म) अवश्य [मनुष्य है], (यः) जिसने (हर्यश्वम्) ले चलनेवाले घोड़ों से युक्त, (सत्पतिम्) सत्पुरुषों के रक्षक, (चर्षणीसहम्) मनुष्यों को नियम में रखनेवाले [राजा] को (अमन्दत) प्रसन्न किया है। (सः) वह (मघवा) महाधनी (तु) तो (नः) हम (स्तोतृभ्यः) स्तुति करनेवालों को (शतम्) सौ [बहुत] (गव्यम्) गौओं का समूह और (अश्व्यम्) घोड़ों का समूह (आ वयति) लाता है ॥४॥

    भावार्थ

    सब प्रजागण आज्ञा मानकर शूर धर्मात्मा राजा को प्रसन्न रक्खें, जिससे वह उत्तम प्रबन्ध के साथ प्रजा का ऐश्वर्य बढ़ावे ॥४॥

    टिप्पणी

    १-४−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।१४।१-४ ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    He alone is happy indeed and prospers who glorifies Indra, lord of the moving universe, protector and promoter of truth and reality and ruler and justicier of humanity, who, lord almighty, weaves for us this web of a hundredfold variety of earthly provision and all attainable possibility for the celebrants.

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