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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 62 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 62/ मन्त्र 8
    ऋषि: - गोषूक्तिः, अश्वसूक्तिः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् सूक्तम् - सूक्त-६२
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    तम्व॒भि प्र गा॑यत पुरुहू॒तं पु॑रुष्टु॒तम्। इन्द्रं॑ गीर्भिस्तवि॒षमा वि॑वासत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । ऊं॒ इति॑ । अ॒भि । प्र । गा॒य॒त॒ । पु॒रु॒ऽहू॒तम् । पु॒रु॒ऽस्तु॒तम् ॥ इन्द्र॑म् । गी॒ऽभि: । त॒वि॒षम् । आ । वि॒वा॒स॒त॒ ॥६२.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तम्वभि प्र गायत पुरुहूतं पुरुष्टुतम्। इन्द्रं गीर्भिस्तविषमा विवासत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । ऊं इति । अभि । प्र । गायत । पुरुऽहूतम् । पुरुऽस्तुतम् ॥ इन्द्रम् । गीऽभि: । तविषम् । आ । विवासत ॥६२.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 62; मन्त्र » 8
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    हिन्दी (2)

    विषय

    मन्त्र -१० परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे विद्वानो !] (तम् उ) उस ही (पुरुहूतम्) बहुत पुकारे हुए, (पुरुष्टुतम्) बहुत बड़ाई किये हुए, (तविषम्) महान् (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] को (अभि) सब ओर से (प्र) भले प्रकार (गायत) गाओ, और (गीर्भिः) वाणियों से (आ) सब प्रकार (विवासत) सत्कार करो ॥८॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! वह परमात्मा सबसे बड़ा है, उसीके गुणों को हृदय में धारण करके आत्मबल बढ़ाओ ॥८॥

    टिप्पणी

    मन्त्र ८-१० आचुके हैं-अ० २०।६१।४-६ ॥ ८-१०−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।६१।४-६ ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    O celebrants, glorify Indra, universally invoked and praised, the lord who blazes with light and power, serve him with words and actions and let him shine forth in your life and achievement.

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