अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 63/ मन्त्र 5
क॒दा मर्त॑मरा॒धसं॑ प॒दा क्षुम्प॑मिव स्फुरत्। क॒दा नः॑ शुश्रव॒द्गिर॒ इन्द्रो॑ अ॒ङ्ग ॥
स्वर सहित पद पाठक॒दा । मर्त॑म् । अ॒रा॒धस॑म् । प॒दा । क्षुम्प॑म्ऽइव । स्फु॒र॒त् ॥ क॒दा । न॒: । शु॒श्र॒व॒त् । गिर॑: । इन्द्र॑: । अ॒ङ्ग ॥६३.५॥
स्वर रहित मन्त्र
कदा मर्तमराधसं पदा क्षुम्पमिव स्फुरत्। कदा नः शुश्रवद्गिर इन्द्रो अङ्ग ॥
स्वर रहित पद पाठकदा । मर्तम् । अराधसम् । पदा । क्षुम्पम्ऽइव । स्फुरत् ॥ कदा । न: । शुश्रवत् । गिर: । इन्द्र: । अङ्ग ॥६३.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
१-६ राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(अङ्ग) हे मित्र ! (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले सभापति आप] (कदा) कब (अराधसम्) आराधना न करनेवाले (मर्तम्) मनुष्य को (पदा) पाँव से (क्षुम्पम् इव) खुम्भी [गीली लकड़ी से उगे हुए छत्राकार छोटे पौधे] के समान (स्फुरत्) नष्ट करेंगे और (कदा) कब (नः) हमारी (गिरः) वाणियों को (शुश्रवत्) सुनेंगे ॥॥
भावार्थ
सभापति दुःखित प्रजा की पुकार सुनकर अनाज्ञाकारी दुष्ट को इस प्रकार गिरा देवे, जैसे खुम्भी वृक्ष पाँव से कुचल जाता है ॥॥
टिप्पणी
यह मन्त्र निरुक्त में व्याख्यात है-।१६-१७ ॥ −(कदा) कस्मिन् काले (मर्तम्) मनुष्यम् (अराधसम्) अनाराधयन्तम्-निरु० ।१७ (पदा) पादेन (क्षुम्पम्) गलितकाष्ठोत्पन्नक्षुद्रवृक्षम्। अहिछत्रकम्-निरु० ।१६ (इव) यथा (स्फुरत्) स्फुरतिर्वधकर्मा-निघ० २।१९। अवस्फुरिष्यति। वधिष्यति (कदा) (नः) अस्माकम् (शुश्रवत्) श्रोष्यति-निरु० ।१७। (गिरः) वाणीः (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सभाध्यक्षो भवान् (अङ्ग) हे मित्र ॥
विषय
प्रभु-स्तवन व यज्ञ-साधन
पदार्थ
१. हे (अङ्ग) = प्रिय! वे प्रभु (कदा) = न जाने कब, अर्थात् शीघ्र ही [In no time] (अराधसम्) = यज्ञ आदि कार्यों को सिद्ध न करनेवाले (मतम्) = पुरुष को इसप्रकार (स्फुरत्) = समास कर देते हैं उसका वध कर देते हैं (इव) = जैसेकि (पदा) = पैर से (क्षम्पम्) = खुम्ब को परे फेंक दिया जाता है। २. (कदा) = कब (इन्द्रः) = वे परमैश्वर्यशाली प्रभु (नः गिर:) = हमारे स्तुतिवचनों को (शश्रवत) = सुनते हैं, अर्थात् कब हम प्रभु का स्तवन करनेवाले बनेंगे। वस्तुत: वही सौभाग्य का दिन होगा जबकि हम प्रभु-स्तवन करते हुए यज्ञ आदि उत्तम कर्मों को सिद्ध करनेवाले बनेंगे।
भावार्थ
हम प्रभु का स्तवन करें और यज्ञ आदि उत्तम कमों को सिद्ध करने में लगे रहें।
भाषार्थ
(अङ्ग) हे प्रिय उपासक! कुछ नहीं कह सकते कि (इन्द्रः) परमेश्वर (अराधसं मर्तम्) आराधनाहीन मनुष्य को (कदा) कब (स्फुरत्) उखाड़ फैंकें, (इव) जैसे कि कोई (पदा) पैर द्वारा (क्षुम्पम्) खुम्ब को उखाड़ फैंकता है। तथा वह (कदा) कब (नः) हमारी (गिरः) प्रार्थनावाणियों को (शुश्रवत्) सुन ले। [स्फुरति=वधकर्मा (निघं০ २.१९)।]
विषय
राजा और ईश्वर।
भावार्थ
(अङ्ग) हे विद्वान् पुरुषो ! (अराधसम्) देने योग्य धनसे रहित, कृपण, अदानशील पुरुष को (इन्द्रः) वह शत्रुनाशक, ऐश्वर्यवान्, न जाने, (कदा) कब (पदा क्षुम्पम् इव) पैर से खुम्बी की तरह (स्फुरत्) ठुकरा दे। और (नः गिरः) हमारी वाणियों को वह (कदा) कब (शुश्रवद्) सुनले।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-३ प्र० द्वि० भुवनः आप्रयः साधनो वा भौवनः। ३ तृ० च० भारद्वाजो वार्हस्पत्यः। ४–६ गोतमः। ७-९ पर्वतश्च ऋषिः। इन्दो देवता। ७ त्रिष्टुम् शिष्टा उष्णिहः। नवर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
Dear friend, when would Indra, lord of wealth, power and justice, shake the miserly, uncreative, ungenerous and selfish person like a weed? Who knows? And would he listen to our prayers? Any time!
Translation
O friend, when Almighty God does trample down the man giving no gift like the mushroom and when he does hear of our prayers? (Always).
Translation
O friend, when Almighty God does trample down the man giving no gift like the mushroom and when he does hear of our prayers? (Always).
Translation
O learned person, (none knows) when He will trample under feet the niggardly like the mushroom, and when We will hear our call.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह मन्त्र निरुक्त में व्याख्यात है-।१६-१७ ॥ −(कदा) कस्मिन् काले (मर्तम्) मनुष्यम् (अराधसम्) अनाराधयन्तम्-निरु० ।१७ (पदा) पादेन (क्षुम्पम्) गलितकाष्ठोत्पन्नक्षुद्रवृक्षम्। अहिछत्रकम्-निरु० ।१६ (इव) यथा (स्फुरत्) स्फुरतिर्वधकर्मा-निघ० २।१९। अवस्फुरिष्यति। वधिष्यति (कदा) (नः) अस्माकम् (शुश्रवत्) श्रोष्यति-निरु० ।१७। (गिरः) वाणीः (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सभाध्यक्षो भवान् (अङ्ग) हे मित्र ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
১-৬ রাজপ্রজাধর্মোপদেশঃ
भाषार्थ
(অঙ্গ) হে মিত্র ! (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যবান্ সভাপতি তুমি] (কদা) কখন (অরাধসম্) অভক্ত (মর্তম্) মনুষ্যকে (পদা) পদ দ্বারা (ক্ষুম্পম্ ইব) ছত্রাকের [ভেজা কাঠ থেকে উৎপন্ন ছত্রাক জাতীয় ক্ষুদ্র গাছের] সমান (স্ফুরৎ) নষ্ট করবে এবং (কদা) কবে (নঃ) আমাদের (গিরঃ) বাণী-সমূহ (শুশ্রবৎ) শ্রবণ করবে॥৫॥
भावार्थ
সভাপতি দুঃখে ভারাক্রান্ত প্রজাদের আহ্বান/আর্তনাদ শ্রবণ করে অনাজ্ঞাকারী দুষ্টদের এমনভাবে বিনাশ করেন, যেভাবে ছত্রাক জাতীয় ক্ষুদ্র গাছ পদদলিত হয় ॥৫॥এই মন্ত্র নিরুক্তে ব্যাখ্যাত-৫।১৬-১৭ ॥
भाषार्थ
(অঙ্গ) হে প্রিয় উপাসক! ইহা বলা অসম্ভব (ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর (অরাধসং মর্তম্) আরাধনাহীন মনুষ্যকে (কদা) কখন (স্ফুরৎ) উৎখাত করেন/করবেন, (ইব) যেমন কেউ (পদা) পা দ্বারা (ক্ষুম্পম্) ছত্রাক উৎখাত করে। তথা তিনি (কদা) কখন (নঃ) আমাদের (গিরঃ) প্রার্থনা বাণী (শুশ্রবৎ) শ্রবণ করবেন। [স্ফুরতি=বধকর্মা (নিঘং০ ২.১৯)।]
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