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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 63 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 63/ मन्त्र 7
    सूक्त - पर्वतः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् सूक्तम् - सूक्त-६३
    27

    य इ॑न्द्र सोम॒पात॑मो॒ मदः॑ शविष्ठ॒ चेत॑ति। येना॒ हंसि॒ न्यत्त्रिणं॒ तमी॑महे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । इ॒न्द्र॒ । सो॒म॒ऽपात॑म: । मद॑: । श॒वि॒ष्ठ॒ । चेत॑ति ॥ येन॑ । हंसि॑ । नि । अ॒त्त्रिण॑म् । तम् । ई॒म॒हे॒॥६३.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य इन्द्र सोमपातमो मदः शविष्ठ चेतति। येना हंसि न्यत्त्रिणं तमीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । इन्द्र । सोमऽपातम: । मद: । शविष्ठ । चेतति ॥ येन । हंसि । नि । अत्त्रिणम् । तम् । ईमहे॥६३.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 63; मन्त्र » 7
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    हिन्दी (1)

    विषय

    ७-९ परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (शविष्ठ) हे महाबली ! (इन्द्र) इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] [तेरा] (यः) जो (सोमपातमः) ऐश्वर्य का अत्यन्त रक्षक (मदः) आनन्द (चेतति) चेतानेवाला है, और (येन) जिस [आनन्द] से (अत्त्रिणम्) खाऊ [स्वार्थी दुर्जन] को (नि हंसि) तू मार गिराता है, (तम्) उस [आनन्द] को (ईमहे) हम माँगते हैं ॥७॥

    भावार्थ

    जो परमात्मा स्वार्थी दुष्टों को दण्ड देकर श्रेष्ठों को सुख देता है, उसकी उपासना सदा करनी चाहिये ॥७॥

    टिप्पणी

    मन्त्र ७-९ ऋग्वेद में है-८।१२।१-३। मन्त्र ७ साम०-पू० ।१।४ ॥ ७−(यः) (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (सोमपातमः) ऐश्वर्यस्य रक्षितृतमः (मदः) आनन्दः (शविष्ठ) हे शवस्वितम। बलवत्तम (चेतति) चेतयिता भवति (येन) मदेन (हंसि) नाशयसि (नि) निरन्तरम् (अत्त्रिणम्) अत्तारम्। स्वार्थिनम् (तम्) मदम् (ईमहे) याचामहे ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Indra, lord most potent, highest protector and promoter of the beauty and joy of life, that ecstatic passion of yours which universally pervades, manifests and reveals your might and glory and by which you destroy the negative forces of life, we adore and pray for.

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र ७-९ ऋग्वेद में है-८।१२।१-३। मन्त्र ७ साम०-पू० ।१।४ ॥ ७−(यः) (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (सोमपातमः) ऐश्वर्यस्य रक्षितृतमः (मदः) आनन्दः (शविष्ठ) हे शवस्वितम। बलवत्तम (चेतति) चेतयिता भवति (येन) मदेन (हंसि) नाशयसि (नि) निरन्तरम् (अत्त्रिणम्) अत्तारम्। स्वार्थिनम् (तम्) मदम् (ईमहे) याचामहे ॥

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