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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 68 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 68/ मन्त्र 4
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६८
    38

    परे॑हि॒ विग्र॒मस्तृ॑त॒मिन्द्रं॑ पृच्छा विप॒श्चित॑म्। यस्ते॒ सखि॑भ्य॒ आ वर॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परा॑ । इ॒हि॒ । विग्र॑म् । अस्तृ॑तम् । इन्द्र॑म् । पृ॒च्छ॒ । वि॒प॒:ऽचित॑म् ॥ य: । ते॒ । सखि॑ऽभ्य: । आ । वर॑म् ॥६८.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परेहि विग्रमस्तृतमिन्द्रं पृच्छा विपश्चितम्। यस्ते सखिभ्य आ वरम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परा । इहि । विग्रम् । अस्तृतम् । इन्द्रम् । पृच्छ । विप:ऽचितम् ॥ य: । ते । सखिऽभ्य: । आ । वरम् ॥६८.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 68; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे जिज्ञासु !] तू (परा) समीप (इहि) जा, और (विग्रम्) बुद्धिमान्, (अस्तृतम्) अजेय, (विपश्चितम्) आप्त विद्वान्, (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले मनुष्य] से (पृच्छ) पूँछ, (यः) जो [मनुष्य] (ते) तेरे (सखिभ्यः) मित्रों के लिये (आ) सब प्रकार (वरम्) श्रेष्ठ [मित्र] है ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि आप्त विद्वानों से प्रश्नोत्तर के साथ शङ्कानिवृत्ति करके सत्य का ग्रहण करें ॥४॥

    टिप्पणी

    मन्त्र ४-१० ऋग्वेद में हैं-१।४।४-१० ॥ ४−(परा) समीपे (इहि) गच्छ (विग्रम्) अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। ग्रह उपादाने-डप्रत्ययः। विविधं गृह्णात्यर्थान् यः स विग्रः। वेर्ग्रो वक्तव्यः। वा० पा० ।४।११९। इति विपूर्वकनासिकाशब्दस्य ग्रः समासान्तादेशः। णस कौटिल्ये-ण्वुल्। विगता नासिका कुटिलता यस्य सः। विग्रहति मेधाविनाम-निघ० ३।१। मेधाविनम् (अस्तृतम्) अहिंसितम्। अजेयम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्ययुक्तं मनुष्यम् (पृच्छ) जिज्ञासस्व। प्रश्नं कुरु (विपश्चितम्) आप्तविद्वांसम् (यः) विद्वान् (ते) तव (सखिभ्यः) मित्राणां हिताय (आ) समन्तात् (वरम्) श्रेष्ठं मित्रम् ॥

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    विषय

    'विन, अस्तृत, विपश्चित्'

    पदार्थ

    १. गतमन्त्रों में वर्णित 'सुमतियों के प्रापण के लिए प्रभु जीव से कहते हैं-(परेहि) = विषयों व सांसारिक कामनाओं से दूर हो। (विनम्) = मेधावी (अस्तृतम्) = काम-क्रोध आदि से अहिंसित पुरुष को प्राप्त हो। इस ज्ञानी व संयमी पुरुष के समीप प्राप्त होकर तू ज्ञान का संग्रह करने में यत्नशील हो। इस (विपश्चितम्) = ज्ञानी पुरुष से (इन्द्रं पृच्छा) = परमात्मा के विषय में पूछनेवाला हो। २. उस विपश्चित् से तू प्रश्न करनेवाला बन, (यः) = जो (ते) = तेरे लिए तथा (सखिभ्यः) = तेरे समान ज्ञान-प्राप्त करने की कामनाबाले मित्रों के लिए उस (वरम्) = श्रेष्ठ वरणीय ज्ञानधन को आ [नयति] प्राप्त कराता हो।

    भावार्थ

    हम विषयों से ऊपर उठे और 'विग्र, अस्तृत, विपश्चित्' पुरुषों से आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए यत्नशील हों।

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    भाषार्थ

    हे उपासक! तू (परेहि) विषयों से परे हट जा, और (विग्रम्) मेधावी, (अस्तृतम्) अविनश्वर, तथा (विपश्चितम्) तुझ में सात्विकवेपनों का चयन करनेवाले (इन्द्रम्) परमेश्वर के सम्बन्ध में (पृच्छ) पूछताछ कर, (यः) जो परमेश्वर कि (ते) तुझे तथा (सखिभ्यः) तेरी ख्याति के समान ख्यातिवाले अन्य उपासकों को भी (वरम्) वर (आ) प्रदान करता है।

    टिप्पणी

    [विग्रः=मेधावी (निघं০ ३.१५)। अस्तृतम्=अ+स्तृ (वधः), यथा स्तृणाति=वधकर्मा (निघं০ २.१९)। आ=आदधाति (अगले मन्त्र ५ में “दधाना” के साथ सम्बन्ध)।]

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    विषय

    परमात्मा, विद्वान्, राजा।

    भावार्थ

    हे विद्वन् ! (यः) जो (ते सखिभ्यः) तेरे स्नेही मित्रों को (वरम्) श्रेष्ठ धन, ऐश्वर्य (आ) प्रदान करता है उस (इन्दम्) ऐश्वर्यवान्, ज्ञानवान् (विग्रम्) विविध विद्याओं के उपदेश करने वाले और (विपश्चितम्) ज्ञानों और कर्मों के जाननेहारे विद्वान् को (परा इहि) प्राप्त हो और उससे (पृच्छ) प्रश्न करके ज्ञान प्राप्त कर। अथवा (परा इहि) दुष्ट पुरुषों से परे रह, और विद्वान् से ज्ञान प्राप्त कर।

    टिप्पणी

    विग्रविपश्चित् शब्दौ मेधाविनामसु पठितौ॥ अथवा—वेर्नासिकायां ग्रो वक्तव्य इति विग्रः विनासिकः। विविधविद्याकुशल इत्यर्थः। परमात्मा के पक्ष में स्पष्ट है। स सर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात्। पातं०। योगसू०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मधुच्छन्दा ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    In dr a Devata

    Meaning

    Keep off the malicious maligner. Go even far, farthest to Indra, lord of divine knowledge, love and kindness, light and vision, experience and wisdom, who is good and the best choice for you and me and your friends. Go, ask, and pray.

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    Translation

    O man desirous of knowledge, you approach and ask the learned man who is prudent unconquerable discriminate and who is the great friend of your friends.

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    Translation

    O man desirous of knowledge, you approach and ask the learned man who is prudent unconquerable discriminate and who is the great friend of your friends.

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    Translation

    O learned person, keep away from evils and wicked persons, seek knowledge and good counsel from the Infallible, Lord of Wealth and Learning the master of all sorts of sciences. Who gives to thy friends all what is good and excellent, (or is far better than thy friends).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र ४-१० ऋग्वेद में हैं-१।४।४-१० ॥ ४−(परा) समीपे (इहि) गच्छ (विग्रम्) अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। ग्रह उपादाने-डप्रत्ययः। विविधं गृह्णात्यर्थान् यः स विग्रः। वेर्ग्रो वक्तव्यः। वा० पा० ।४।११९। इति विपूर्वकनासिकाशब्दस्य ग्रः समासान्तादेशः। णस कौटिल्ये-ण्वुल्। विगता नासिका कुटिलता यस्य सः। विग्रहति मेधाविनाम-निघ० ३।१। मेधाविनम् (अस्तृतम्) अहिंसितम्। अजेयम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्ययुक्तं मनुष्यम् (पृच्छ) जिज्ञासस्व। प्रश्नं कुरु (विपश्चितम्) आप्तविद्वांसम् (यः) विद्वान् (ते) तव (सखिभ्यः) मित्राणां हिताय (आ) समन्तात् (वरम्) श्रेष्ठं मित्रम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [হে জিজ্ঞাসু !] তুমি (পরা) সমীপে (ইহি) যাও এবং (বিগ্রম্) বুদ্ধিমান্, (অস্তৃতম্) অজেয়, (বিপশ্চিতম্) আপ্ত বিদ্বান্, (ইন্দ্রম্) ইন্দ্রের [পরম ঐশ্বর্যবান্ মনুষ্য] নিকট (পৃচ্ছ) জিজ্ঞাসা করো, (যঃ) যে [মনুষ্য] (তে) তোমার (সখিভ্যঃ) মিত্রদের জন্য (আ) সর্বপ্রকারে (বরম্) শ্রেষ্ঠ/কল্যাণকর [মিত্র] ॥৪॥

    भावार्थ

    মনুষ্যদের উচিত, আপ্ত বিদ্বানদের সাথে প্রশ্নোত্তর পূর্বক শঙ্কানিবৃত্তি করে সত্য গ্রহণ করা ॥৪॥ মন্ত্র ৪-১০ ঋগ্বেদে আছে-১।৪।৪-১০ ॥

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    भाषार्थ

    হে উপাসক! তুমি (পরেহি) বিষয়-সমূহ থেকে দূরে সরে যাও, এবং (বিগ্রম্) মেধাবী, (অস্তৃতম্) অবিনশ্বর, তথা (বিপশ্চিতম্) তোমার মধ্যে সাত্ত্বিকতার চয়নকারী (ইন্দ্রম্) পরমেশ্বরের বিষয়ে (পৃচ্ছ) জিজ্ঞেস করো, (যঃ) যে পরমেশ্বর (তে) তোমাকে তথা (সখিভ্যঃ) তোমার খ্যাতির সমান খ্যাতিসম্পন্ন অন্য উপাসকদেরও (বরম্) বর (আ) প্রদান করেন।

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