अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 71/ मन्त्र 10
असृ॑ग्रमिन्द्र ते॒ गिरः॒ प्रति॒ त्वामुद॑हासत। अजो॑षा वृष॒भं पति॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठअसृ॑ग्रम् । इ॒न्द्र॒ । ते॒ । गिर॑: । प्रति॑ । त्वाम् । उत् । अ॒हा॒स॒त॒ ॥ अजो॑षा: । वृ॒ष॒भम् । पति॑म् ॥७१.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
असृग्रमिन्द्र ते गिरः प्रति त्वामुदहासत। अजोषा वृषभं पतिम् ॥
स्वर रहित पद पाठअसृग्रम् । इन्द्र । ते । गिर: । प्रति । त्वाम् । उत् । अहासत ॥ अजोषा: । वृषभम् । पतिम् ॥७१.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] (ते) तेरी (अजोषाः) अत्यन्त प्रीति करनेवाली [जिनसे अधिक हितकारी दूसरा नहीं, वे] (गिरः) वेदवाणियाँ (असृग्रम्) गति देनेवाले, (वृषभम्) सुखों के बरसानेवाले [वा बलवान्] (पतिं त्वाम्) तुझ स्वामी को [प्रति] प्रत्यक्ष करके (उत् अहासत) ऊँची गयी हैं ॥१०॥
भावार्थ
परमात्मा के प्रकाशित अनन्त हितकारी वेदों को विचारकर विद्वान् लोग उसको अद्वितीय अनन्त सामर्थ्यवाला जानकर सदा पुरुषार्थ करें ॥१०॥
टिप्पणी
१०−(असृग्रम्) अस गतिदीप्त्यादानेषु-ऋजि प्रत्ययः+रा दाने-क। गतिदातारम् (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (ते) तव (गिरः) वेदवाण्यः (प्रति) प्रत्यक्षेण (त्वाम्) परमेश्वरम् (उत्) उत्कर्षेण (अहासत) ओहाङ् गतौ-लुङ्। प्राप्नुवन् (अजोषाः) जुषी प्रीतिसेवनयोः-घञ्, टाप्-नास्ति अधिकप्रीतिकरा यस्याः सकाशात् सा अजोषा, यथा अनुत्तमः, अनुदारा, अमूलः इत्यादिपदानि। अत्यन्तहितकारिण्यः (वृषभम्) सुखवर्षकम् (पतिम्) स्वामिनम् ॥
विषय
'सखों के वर्षक व पालक' प्रभु
पदार्थ
१.हे (इन्द्र) = मेरे सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो। (ते गिरः असृग्रम) = आपके स्तुतिवचनों का निर्माण करता हूँ। ये स्तुतिवचन (त्वाम् प्रति) = आपके प्रति (उद् अहासत) = उद्गत होकर प्राप्त होते हैं। २. ये मेरे स्तुतिवचन (वृषभम्) = सब सुखों का वर्षण करनेवाले (पतिम्) = सबके रक्षक आपको (अजोषा) = प्रिय हों-आपकी प्रीति का कारण बनें। मै कर्मशील बनकर इन स्तुतिवचनों से आपको आराधित कर पाऊँ।
भावार्थ
हम कर्मों के द्वारा प्रभु का स्तवन करें। प्रभु को ही सुखों का वर्धक व पालक जानें। ये हमारी स्तुतियाँ हमें प्रभु का प्रीतिपात्र बनाएँ।
भाषार्थ
(इन्द्र) हे परमेश्वर! (ते) आपकी (गिरः) वेदवाणियों का, आपकी स्तुतियों के निमित्त, (असृग्रम्) मैंने सर्जन किया है, ये (वृषभम्) सुखवर्षी, (पतिम्) विश्वपति (त्वां प्रति) आपके प्रति (उदहासत) उत्कृष्ट रूप में पहुंची हैं, जैसे कि (अजोषा) अभुक्ता नव-विवाहिता पत्नी (वृषभं पतिम्) सुखवर्षी, सशक्त पति के प्रति प्रसन्नतापूर्वक पहुँचती है।
विषय
परमेश्वर।
भावार्थ
हे (इन्द्रः) परमेश्वर ! (ते) तेरे निमित्त मैं (गिरः) वेदवाणियों का (असृग्रम्) विविध प्रकार से प्रयोग और वर्णन करता हूँ। स्त्रियें जिस प्रकार अपने पालक के प्रति अपना अभिप्राय प्रकट करती है उसी प्रकार वे वेदवाणियें (वृषभम्) समस्त सुखों के वर्षक, (पतिम्) सब के पालक (त्वाम् प्रति) तेरे ही प्रति (उद् अहासत) जाती हैं, लगती हैं, अपना अभिप्राय प्रकट करती हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—मधुच्छन्दाः। देवता—इन्द्रः॥ छन्दः—गायत्री॥ षोडशर्चं सूक्तम॥
इंग्लिश (4)
Subject
In dr a Devata
Meaning
Indra, lord of light and splendour, the songs of divinity reveal and manifest you in your glory, protector of the universe and generous rain-giver of favours and kindness. And I too, in response, celebrate your magnificence and magnanimity without satiety.
Translation
O Almighty Divinity, I apply these Vedic speeches in your praise and prayers which are imparallel. These go towards you who is the master of all and very strong.
Translation
O Almighty Divinity, I apply these Vedic speeches in your praise and prayers which are unparallel. These go towards you who is the master of all and very strong.
Translation
O Showers of Blessings, I (the devotee) pour out the Vedic songs for Thee, the Protector of all, the Benefactor and the Almighty Lord. They aim at Thee alone and express their ideas, (like the females doing so towards their husband, the source of happiness and joy to them).
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(असृग्रम्) अस गतिदीप्त्यादानेषु-ऋजि प्रत्ययः+रा दाने-क। गतिदातारम् (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (ते) तव (गिरः) वेदवाण्यः (प्रति) प्रत्यक्षेण (त्वाम्) परमेश्वरम् (उत्) उत्कर्षेण (अहासत) ओहाङ् गतौ-लुङ्। प्राप्नुवन् (अजोषाः) जुषी प्रीतिसेवनयोः-घञ्, टाप्-नास्ति अधिकप्रीतिकरा यस्याः सकाशात् सा अजोषा, यथा अनुत्तमः, अनुदारा, अमूलः इत्यादिपदानि। अत्यन्तहितकारिण्यः (वृषभम्) सुखवर्षकम् (पतिम्) स्वामिनम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যকর্ত্যব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [পরম ঐশ্বর্যবান্ পরমাত্মা] (তে) আপনার (অজোষাঃ) অত্যন্ত প্রীতিকর [যা থেকে অধিক হিতকর অন্য কিছু নেই, সেই] (গিরঃ) বেদবাণী (অসৃগ্রম্) গতি প্রদানকারী, (বৃষভম্) সুখ বর্ষণকারী [বা বলবান্] (পতিং ত্বাম্) স্বামী আপনাকে [প্রতি] প্রত্যক্ষ করে (উৎ অহাসত) উৎকর্ষ প্রাপ্ত হয়েছে ॥১০॥
भावार्थ
পরমাত্মা কর্তৃক প্রকাশিত অনন্ত হিতকারী বেদকে, বিচারপূর্বক বিদ্বানগণ বেদকে, অদ্বিতীয় অনন্ত সামর্থ্যযুক্ত জেনে সদা পুরুষার্থ প্রাপ্তির উপায় অবলম্বন করে/করুক॥১০॥
भाषार्थ
(ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (তে) আপনার (গিরঃ) বেদবাণীর, আপনার স্তুতির জন্য, (অসৃগ্রম্) আমি সৃষ্টি করেছি, যে (বৃষভম্) সুখবর্ষী, (পতিম্) বিশ্বপতি (ত্বাং প্রতি) আপনার প্রতি (উদহাসত) উৎকৃষ্ট রূপে পৌঁছেছে, যেমন (অজোষা) অভুক্তা নব-বিবাহিতা পত্নী (বৃষভং পতিম্) সুখবর্ষী, সশক্ত পতির প্রতি প্রসন্নতাপূর্বক পৌঁছায়।
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