अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 71/ मन्त्र 4
ए॒वा ह्य॑स्य सू॒नृता॑ विर॒प्शी गोम॑ती म॒ही। प॒क्वा शाखा॒ न दा॒शुषे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठए॒व । हि । अ॒स्य॒ । सू॒नृता॑ । वि॒ऽर॒प्शी । गोऽम॑ती । म॒ही ॥ प॒क्वा । शाखा॑ । न । दा॒शुषे॑ ॥७१.४॥
स्वर रहित मन्त्र
एवा ह्यस्य सूनृता विरप्शी गोमती मही। पक्वा शाखा न दाशुषे ॥
स्वर रहित पद पाठएव । हि । अस्य । सूनृता । विऽरप्शी । गोऽमती । मही ॥ पक्वा । शाखा । न । दाशुषे ॥७१.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(अस्य) उस [मनुष्य] की (सूनृता) अन्नवाली क्रिया (एव) निश्चय करके (हि) ही (विरप्शी) स्पष्ट वाणीवाली, (गोमती) श्रेष्ठ दृष्टिवाली, (मही) सत्कारयोग्य (पक्वा) परिपक्व [फूल-फूल वाली] (शाखा न) शाखा के समान (दाशुषे) आत्मदानी पुरुष के लिये [होवे] ॥४॥
भावार्थ
विज्ञानी, ऐश्वर्यवान् दूरदर्शी सत्यवादी पुरुष ही प्रजारक्षक होता है ॥३, ४॥
टिप्पणी
म० ४-६ आचुके हैं अ० २०।६०।४-६ ॥ ४-६−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।६०।४-६ ॥
विषय
सूनृता, मही, पक्वा शाखा न [वेदवाणी]
पदार्थ
१. (एवा) = गतमन्त्र के अनुसार सोमपायी बनने पर (हि) = निश्चय से (अस्य) = इस ज्ञानरूप परमैश्वर्यवाले प्रभु की (सूनृता) = [सु ऊन ऋत] उत्तम, दुःखों का परिहाण करनेवाली तथा सत्यज्ञान देनेवाली वेदवाणी (विरप्शी) = विविध सत्यविद्याओं का प्रतिपादन करनेवाली होती है [रप्-व्यक्तायां वाचि]। (गोमती) = यह वेदवाणी प्रशस्त इन्द्रियोंवाली है। अध्ययन करनेवाले की इन्द्रियों को निर्मल बनाती है। (मही) = [मह पूजायाम्] अपने उपासक की मनोवृत्ति को पूजावाली बनाती है। वेदवाणी का उपासक ज्ञानपूर्ण मस्तिष्कवाला-यज्ञादि कर्मों में लगी हुई प्रशस्त इन्द्रियोंवाला तथा मन में पूजा की वृत्तिवाला होता है। २. यह वेदवाणी (दाशुषे) = दाश्वान् के लिए-दानशील के लिए (पक्वा शाखा न)-= परिपक्व शाखा के समान होती है। यह उसके लिए परिपक्व शाखा के समान विविध फलों को प्राप्त करानेवाली होती है। इस वेदवाणी से इसे 'क्षीर, सर्पि, मधु, उदक [सामवेद १२९९] पुण्यभक्ष व अमृतत्व [१३०३ साम] प्राप्त होता है। यह उसे 'आयु-प्राण-प्रजा-पशु-कीर्ति-द्रविण व ब्रह्मवर्चस्' [अथर्व] प्रास कराती है।
भावार्थ
वेदवाणी सब सत्यविद्याओं की प्रतिपादक है। यह धनों को देनेवाली है। पूजा की वृत्ति को प्राप्त कराती है तथा इष्टफलों को देनेवाली है।
भाषार्थ
(एव=एवम्) इसी प्रकार की [पूर्व मन्त्र ३] (अस्य) इस परमेश्वर की वेदवाणी है, जो कि (हि) निश्चय से (सूनृता) प्रिय और सत्यरूपा है, (विरप्शी) जो विविध पदार्थों का व्यक्त वर्णन करती है, (गोमती) ज्ञानमयी किरणों से सम्पन्न, और (मही) महावाणी है। वह वेदवाणी (दाशुषे) ब्रह्मदान करनेवाले के लिए (पक्वा शाखा न) पके-फलोंवाली शाखा के समान फलदायिनी है।
टिप्पणी
[विरप्शी=वि+रप् (व्यक्तायां वाचि)+अश् (व्याप्तौ), अकारलोपः छान्दसः।]
विषय
परमेश्वर।
भावार्थ
(अस्य) इस परमेश्वर की (विरप्शी) विविध विद्याओं को उपदेश करने वाली वाणी (मही) बड़ी भारी, अति पूजनीय, (गोमती) नाना वेदवाणियों से युक्त, (दाशुषे) आत्मसमर्पण करने वाले के लिये तो (एवा) ऐसी (सूनृता) शुभ, उत्तम, सत्य ज्ञान से पूर्ण है कि जिस प्रकार वह उसके लिये (पक्वा शाखा न) पकी, फलों से लदी शाखा ही हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—मधुच्छन्दाः। देवता—इन्द्रः॥ छन्दः—गायत्री॥ षोडशर्चं सूक्तम॥
इंग्लिश (4)
Subject
In dr a Devata
Meaning
Verily the Divine Voice of Indra, Supreme Lord of Omniscience, is Shabda Brahma, the richest treasure of eternal truth, generous mother of the language of existence and great. It is an abundant branch of the divine tree laden with ripe fruit for the faithful devotee and yajnic giver.
Translation
So also is His speech (Vedic speech) abounding in many informations, great and rich in cattle like the ripe branch to the man of munificence.
Translation
So also is His speech (Vedic speech) abounding in many information’s, great and rich in cattle like the ripe branch to the man of munificence.
Translation
See 20.60.4
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
म० ४-६ आचुके हैं अ० २०।६०।४-६ ॥ ४-६−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।६०।४-६ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যকর্ত্যব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(অস্য) তাঁর [মনুষ্যের] (সূনৃতা) অন্নযুক্ত ক্রিয়া (এব) নিশ্চিতরূপে (হি) ই (বিরপ্শী) স্পষ্ট বাণীযুক্ত, (গোমতী) শ্রেষ্ঠ দৃষ্টিযুক্ত, (মহী) সৎকারযোগ্য, (পক্বা) পরিপক্ব [ফল-ফুলযুক্ত] (শাখা ন) শাখার সমান (দাশুষে) আত্মদানী পুরুষের জন্য [হোক] ॥৪॥
भावार्थ
বিজ্ঞানী, ঐশ্বর্যবান্ দূরদর্শী সত্যবাদী পুরুষই প্রজারক্ষক হয়॥৪॥ মন্ত্র ৪-৬ আছে-অ০ ২০।৬০।৪-৬।।
भाषार्थ
(এব=এবম্) এরূপ [পূর্ব মন্ত্র ৩] (অস্য) এই পরমেশ্বরের বেদবাণী, যা (হি) নিশ্চিতরূপে (সূনৃতা) প্রিয় এবং সত্যরূপা, (বিরপ্শী) যে বিবিধ পদার্থ-সমূহের ব্যক্ত বর্ণনা করে, (গোমতী) জ্ঞানময়ী কিরণসম্পন্ন, এবং (মহী) মহাবাণী। সেই বেদবাণী (দাশুষে) ব্রহ্মদানকর্তার জন্য (পক্বা শাখা ন) পরিপক্ব-ফলযুক্ত শাখার সমান ফলদায়িনী।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal