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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 76 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 76/ मन्त्र 1
    ऋषि: - वसुक्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-७६
    28

    वने॒ न वा॒ यो न्य॑धायि चा॒कं छुचि॑र्वां॒ स्तोमो॑ भुरणावजीगः। यस्येदिन्द्रः॑ पुरु॒दिने॑षु॒ होता॑ नृ॒णां नर्यो॑ नृत॑मः क्ष॒पावा॑न् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वने॑ । वा॒ । य: । नि । अ॒धा॒यि॒ । चा॒कन् । शुचि॑: । वा॒म् । स्तोम॑: । भु॒र॒णौ॒ । अ॒जी॒ग॒रिति॑ ॥ यस्य॑ । इत् । इन्द्र॑: । पु॒रु॒ऽदिने॑षु । होता॑ । नृ॒णाम् । नय॑: । नृऽत॑म: । क्ष॒पाऽवा॑न् ॥७६.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वने न वा यो न्यधायि चाकं छुचिर्वां स्तोमो भुरणावजीगः। यस्येदिन्द्रः पुरुदिनेषु होता नृणां नर्यो नृतमः क्षपावान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वने । वा । य: । नि । अधायि । चाकन् । शुचि: । वाम् । स्तोम: । भुरणौ । अजीगरिति ॥ यस्य । इत् । इन्द्र: । पुरुऽदिनेषु । होता । नृणाम् । नय: । नृऽतम: । क्षपाऽवान् ॥७६.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 76; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (2)

    विषय

    राजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (वने) वृक्ष पर (न) जैसे (चाकन्) प्रीति करनेवाला (वा, यः=वायः) पक्षी का बच्चा (नि अधायि) रक्खा जाता है, [माता-पिताओ] (शुचिः) पवित्र (स्तोमः) बड़ाई योग्य गुण ने (वाम्) तुम दोनों को (अजीगः) ग्रहण किया है। (यस्य) जिस [बड़ाई योग्य गुण] का (इत्) ही (होता) ग्रहण करनेवाला (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला पुरुष] (पुरुदिनेषु) बहुत दिनों के भीतर (नृणाम्) नेताओं का (नृतमः) सबसे बड़ा नेता, (नर्यः) मनुष्यों का हितकारी, (क्षपावान्) श्रेष्ठ रात्रियों वाला है ॥१॥

    भावार्थ

    जैसे चिड़िया चिरौटा बच्चे को घोंसले में धरकर पुष्ट और समर्थ करते हैं, वैसे ही स्त्री-पुरुष सदा दिन-रात उत्तम गुण ग्रहण करके अपने को और अपने सन्तानों को मुख्य कार्यकर्ता बनावें ॥१॥

    टिप्पणी

    यह सूक्त ऋग्वेद में है-१०।२९।१-८ ॥ हमने (वा, यः) दो पदों के स्थान पर (वायः) एक पद मानकर अर्थ किया है। भगवान् यास्क मुनि ने इस मन्त्र पर-निरुक्त ६।२८। में लिखा है−(वा और यः) शाकल्य ने [पदविभाग] किया है, किन्तु ऐसा होनेपर आख्यात उदात्त होता और अर्थ भी पूरा न होता-अर्थात् जो (वा और यः) पदकार शाकल्य ऋषि ने पदविभाग किया है, वह दो पद होता तो [यद्वृत्तान्नित्यम्। पा० ८।१।६०] इस सूत्र से (अधायि) क्रियापद उदात्त होता, किन्तु वह अनुदात्त है, और (वा) का अर्थ कुछ न बनता और वृक्ष पर क्या रक्खा हुआ है, यह आकाङ्क्षा बनी रहती। इससे (वा। यः।) दो पद भूल से हैं, (वायः) ऐसा एक पद ठीक है। सायणाचार्य और ग्रिफ़िथ महाशय ने भी (वायः) ही माना है ॥ १−(वने) वनावयवे वृक्षे (न) यथा (वा, यः=वायः) वातेर्डिच्च। उ० ४।१३४। वा गतौ-इण्, डित्। वि-अण् अपत्यार्थे। पक्षिशावकः। वन इव वायो वेः पुत्रश्चायन्निति वा कामयमान इति वा। वेति च य इति च चकार शाकल्यः। उदात्तं त्वेवमाख्यातमभविष्यदसुसमाप्तश्चार्थः-निरु० ६।२८। (नि अधायि) निहितः। धृतः (चाकन्) कनी दीप्तिकान्तिगतिषु, यङ्लुगन्तात्-क्विप्। उत्सुककमनाः (शुचिः) पवित्रः (वाम्) युवां द्वौ (स्तोमः) स्तुत्यगुणः (भुरणौ) भुरण धारणपोषणयोः-पचाद्यच्। हे भर्तारौ मातापितरौ (अजीगः) जिगर्ति नैरुक्तधातुः, यद्वा गॄ निगरणे-लङि, सिपि, इतश्च लोपे, रात्सस्य। पा० ८।२।२४। सलोपः, रेफस्य विसर्जनीयः। प्रथमपुरुषस्य मध्यमः। गृहीतवान् प्राप्तवान्। अजीगः.....अगारीर्जिगर्तिर्गिरतिकर्मा वा गृणातिकर्मा वा गृह्णातिकर्मा वा-निरु० ६।८। (यस्य) स्तोमस्य (इत्) एव (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् पुरुषः (पुरुदिनेषु) बहुदिवसेषु (होता) ग्रहीता (नृणाम्) नेतॄणाम्। शूराणां मध्ये (नर्यः) नृभ्यो हितः (नृतमः) नेतृतमः। शूरतमः (क्षपावान्) क्षप प्रेरणे-अच्, टाप्। प्रशस्तरात्रिमान् ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Like the baby bird placed in the nest on the tree, waiting and watching for the mother bird, and the mother bird arriving, may this song of love and purity reach you, O complementary powers of light, Ashvins, the song, of which Indra, ruler of the world, is the inspirer and deity, manliest leader of men, who rules over the day and night of human activity. 1. Like the baby bird placed in the nest on the tree, waiting and watching for the mother bird, and the mother bird arriving, may this song of love and purity reach you, O complementary powers of light, Ashvins, the song, of which Indra, ruler of the world, is the inspirer and deity, manliest leader of men, who rules over the day and night of human activity.

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