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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 76 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 76/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसुक्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-७६
    55

    प्र ते॑ अ॒स्या उ॒षसः॒ प्राप॑रस्या नृ॒तौ स्या॑म॒ नृत॑मस्य नृ॒णाम्। अनु॑ त्रि॒शोकः॑ श॒तमाव॑ह॒न्नॄन्कुत्से॑न॒ रथो॒ यो अस॑त्सस॒वान् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । ते॒ । अ॒स्या: । उ॒षस॑: । प्र । अप॑रस्या: । नृ॒तौ । स्या॒म॒ । नृऽत॑मस्य । नृ॒णाम् ॥ अनु॑ । त्रि॒ऽशोक॑: । श॒तम् । आ । अ॒व॒ह॒त् । नॄन् । कुत्से॑न: । रथ॑: । य: । अस॑त् । स॒स॒ऽवान् ॥७६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र ते अस्या उषसः प्रापरस्या नृतौ स्याम नृतमस्य नृणाम्। अनु त्रिशोकः शतमावहन्नॄन्कुत्सेन रथो यो असत्ससवान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । ते । अस्या: । उषस: । प्र । अपरस्या: । नृतौ । स्याम । नृऽतमस्य । नृणाम् ॥ अनु । त्रिऽशोक: । शतम् । आ । अवहत् । नॄन् । कुत्सेन: । रथ: । य: । असत् । ससऽवान् ॥७६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 76; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (अस्याः) इस और (अपरस्याः) दूसरी [आनेवाली] (उषसः) उषा [प्रभात वेला] के (नृतौ) नृत्य [चेष्टा] में (नृणाम्) नेताओं के (नृतमस्य ते) तुझ सबसे बड़े नेता के [भक्त रहकर] (प्र प्र) बहुत उत्तम (स्याम) हम होवें। (यः) जो (त्रिशोकः) तीन प्रकार [बिजुली, सूर्य और अग्नि] के प्रकाशवाला (रथः) रथ (असत्) होवे, वह [रथ] (ससवान्) सेवन करता हुआ (शतम्) सौ (नॄन्) नेता पुरुषों को (कुत्सेन) मिलनसार ऋषि [सेनापति] के साथ (अनु) अनुकूल रीति से (आ अवहेत्) लावे ॥२॥

    भावार्थ

    जैसे प्रभात वेला सूर्य द्वारा प्रकाश करती हुई चली चलती है, वैसे ही मनुष्य अत्यन्त ज्ञानी पुरुष के आश्रय से बिजुली, सूर्य और अग्नि आदि पदार्थों के द्वारा यान विमान आदि बनाकर कार्य सिद्ध करें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(प्र प्र) अतिशयेन प्रकृष्टाः (ते) तव (अस्याः) वर्तमानायाः (उषसः) प्रभातवेलायाः (अपरस्याः) अन्यस्याः। आगामिन्याः (नृतौ) इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। नृती गात्रविक्षेपे-इन्, कित्। नर्तने। चेष्टने (स्याम) भवेम (नृतमस्य) नेतृतमस्य (नृणाम्) नेतॄणां मध्ये (अनु) आनुकूल्येन (त्रिशोकः) ईशुचिर् क्लेदने शौचे च-घञ्। त्रयाणां सूर्यविद्युदग्नीनां शोकः प्रकाशो यस्मिन् सः (शतम्) (आ अवहत्) लिङर्थे लङ्। आवहेत् (नॄन्) नेतॄन् पुरुषान् (कुत्सेन) अ० ४।२९।। कुस संश्लेषणे-सप्रत्ययः। ऋषिः कुत्सो भवति कर्ता स्तोमानाम्-निरु० ३।११। संगतिशीलेन ऋषिणा सेनापतिना (रथः) यानभेदः (यः) रथः (असत्) भवेत् (ससवान्) षण संभक्तौ-क्वसु। सेवमानः ॥

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    विषय

    त्रिशोक

    पदार्थ

    १.(ते) = आपकी (अस्याः उषस:) = इस उषाकाल के तथा (अपरस्या) = आनेवाली भी उषा के (प्रनृतौ) = प्रकृष्ट नयन में (प्रस्याम) = प्रकर्षेण हों। आप प्रत्येक उषाकाल में जिधर भी हमें ले चलनेवाले हों हम उधर ही चलें। आप जो नाच नचाएँ, वही हमें रुचिकर हो। आप (नृणां नृतमस्य) = मनुष्यों के सर्वोत्तम नेता हैं-आपका नेतृत्व ही हमारा संचालक हो। २. (अनु) = ऐसा होने पर ही इसके बाद ही (कुत्सेन) = सब बुराइयों के संहार से [कुष हिंसायाम्] (त्रिशोक:) = 'शरीर मन व बुद्धि' तीनों की दीप्ति (नॄन्) = मनुष्यों को (शतम् आवहत्) = सौ वर्ष तक ले-चलनेवाली होती है। ३. (यः रथ:) = इसप्रकार जो भी उत्तम शरीररूप रथवाला व्यक्ति [रथः अस्य अस्ति इति रथ:] (असत्) = होता है, वह (ससवान्) = सस्य को ही खानेवाला होता है । वानस्पतिक भोजन ही सात्त्विक है, अत: यही उपादेय है।

    भावार्थ

    हम प्रभु की आज्ञा में चलें। सस्यभोजी बनें। इसप्रकार 'शरीर, मन व बुद्धि' को दीस करनेवाले 'त्रिशोक' बनें।

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    भाषार्थ

    हे परमेश्वर! (अस्याः) आज की इस (उषसः) उषावेला में, या (अपरस्याः) आनेवाली किसी उषावेला में, (नृणाम्) उपासक नर-नारियों के (नृतमस्य) सर्वोत्कृष्ट नेता आपके (प्र नृतौ) प्रकृष्ट-नेतृत्व में (प्र स्याम) हम सदा वर्तमान रहें। (अनु) आपके नेतृत्व में रहने के पश्चात् (त्रिशोकः) शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक शोकों से तीर्ण हुआ उपासक (शतम्) सैकड़ों (नॄन्) नर-नारियों को (आ वहत्) सन्मार्ग पर ले चलता है, जैसे कि (कुत्सेन) विद्युत् की सहायता द्वारा (रथः) रथ, सैकड़ों नर-नारियों का वहन करता है। (यः) जो मनुष्य (ससवान्) सोया पड़ा (असत्) होता है, उसे भी त्रिशोक सन्मार्ग पर ले चलता है।

    टिप्पणी

    [ससवान्=सस्ति स्वपितिकर्मा (निघं০ ३.२२)।]

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    विषय

    आत्मा और राजा।

    भावार्थ

    हे आत्मन् ! (नृणाम् नृतमस्य) शरीर के उठाने वाले नेता प्राणगण के बीच सर्वोत्कृष्ट प्राणरूप (ते) तेरी (अस्याः) इस (उषसः) पापदाहक ज्योतिष्मती प्रज्ञा के और (अपरस्याः) दूसरी ब्रह्म विषयक या अनन्तर भाविनी धर्ममेघ दशा के (नृतौ) प्राप्त हो जाने पर हम (प्र स्याम) उत्तम ज्ञानवान् हो जायं। यद जो तू (कुत्सेन) समस्त बन्धनों को काटने वाले ज्ञानबल के साथ मिलकर स्वयं (रथः) रमणीय देह स्वरूप होकर (ससवान्) कर्म फलों का भोक्ता (असत्) होजाता है वह तू ही अथवा (कुत्सेन) बन्धन काटने वाला ज्ञान के बल से स्वयं (रथः) रस स्वरूप आनन्दमय होकर (ससवान) उस आनन्द का भोक्ता (असत्) हो जाता है। (त्रिशोकः) वाणी, मन और प्राण इन त्रिविध तेजों से युक्त होकर (शतम्) सैंकड़ों (नॄन्) नेता प्राणगण को अथवा नर देहों को भी योग विभूति द्वारा (अनु आवहन) अपने में रख कर धारण करता है। राजा के पक्ष में—हे राजन् (ते नृणां नृतमस्य) समस्त मनुष्यों में श्रेष्ठ तुझ नरोत्तम के अधीन रहकर हम (अस्याः उषसः अपरस्याः नृतौ) इस प्रभात और अगली प्रभात वेला के आते आते अर्थात् बहुत शीघ्र, (प्र स्याम) उन्नत हों। तू (कुत्सेन) शत्रुओं को काट गिरा देने वाले वज्र के साथ (यः) जो स्वयं (रथः) महारथ होकर (ससवान् असत्) स्वयं राष्ट्र का भोक्ता हो जाता है वह तू (त्रिशोकः सन्) कोश, प्रज्ञा और उत्साह अथवा मन्त्रबल, सेनाबल और कोशबल इन तीनों प्रकार के तेजों से युक्त होकर (शतम्) सैंकड़ों नेता पुरुषों को (अनु) अपने अनुकूल (आवहन्) चलाने में समर्थ है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसुक ऐन्द्रो ऋषिः। इन्द्रो देवता। त्रिष्टुभः। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Indra, ruler of the world, manliest leader of the leaders of humanity, lord of triple splendour of knowledge, action and spiritual advancement, who command a hundred heroes by virtue of power and thunder, source of peace, advancement and bliss, may we ever abide in the light and joy of the dawn of today and of other days to come in our course of life.2. Indra, ruler of the world, manliest leader of the leaders of humanity, lord of triple splendour of knowledge, action and spiritual advancement, who command a hundred heroes by virtue of power and thunder, source of peace, advancement and bliss, may we ever abide in the light and joy of the dawn of today and of other days to come in our course of life.

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    Translation

    Almighty God, may we at the dance of this present dawn and the succeding one be the devotee of that of you who is the supreme leader of all the leading forces. The cosmic cycle which bears three resplendent powers—fire, sun and electricity and which being in the service of creatures exists may maintain the hundreds of leading men accompanied by the sage, the seer of the Vedic verses.

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    Translation

    O Almighty God, may we at the dance of this present dawn and the succeeding one be the devotee of that of you who is the supreme leader of all the leading forces. The cosmic cycle which bears three resplendent powers—fire, sun and electricity and which being in the service of creatures exists may maintain the hundreds of leading men accompanied by the sage, the seer of the Vedic verses.

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    Translation

    O pure soul, let us be highly raised spiritually at the attainment of this enlightened state of spiritual advancement like the day-dawn and the next one of thee, the most leading one amongst spiritual leaders. After attaining the effulgent state of three radiances of speech, mind and vital breaths, by your capacity to shear off ties of ignorance and evil, you become.the mobile force of happiness and bliss and enjoy perfect beatitude, and enable to force hundreds of people to follow you by your spiritual power.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(प्र प्र) अतिशयेन प्रकृष्टाः (ते) तव (अस्याः) वर्तमानायाः (उषसः) प्रभातवेलायाः (अपरस्याः) अन्यस्याः। आगामिन्याः (नृतौ) इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। नृती गात्रविक्षेपे-इन्, कित्। नर्तने। चेष्टने (स्याम) भवेम (नृतमस्य) नेतृतमस्य (नृणाम्) नेतॄणां मध्ये (अनु) आनुकूल्येन (त्रिशोकः) ईशुचिर् क्लेदने शौचे च-घञ्। त्रयाणां सूर्यविद्युदग्नीनां शोकः प्रकाशो यस्मिन् सः (शतम्) (आ अवहत्) लिङर्थे लङ्। आवहेत् (नॄन्) नेतॄन् पुरुषान् (कुत्सेन) अ० ४।२९।। कुस संश्लेषणे-सप्रत्ययः। ऋषिः कुत्सो भवति कर्ता स्तोमानाम्-निरु० ३।११। संगतिशीलेन ऋषिणा सेनापतिना (रथः) यानभेदः (यः) रथः (असत्) भवेत् (ससवान्) षण संभक्तौ-क्वसु। सेवमानः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অস্যাঃ) বর্তমান এবং (অপরস্যাঃ) আগামী (উষসঃ) ঊষার [প্রভাত বেলার] (নৃতৌ) নৃত্য [চেষ্টায়] (নৃণাম্) নেতাদের (নৃতমস্য তে) সবচেয়ে বড় নেতা তোমার [ভক্ত হয়ে] (প্র প্র) বহু উত্তম গুণযুক্ত (স্যাম) আমরা হই। (যঃ) যে (ত্রিশোকঃ) তিন প্রকারের [বিদ্যুৎ, সূর্য এবং অগ্নি] প্রকাশমান (রথঃ) রথ (অসৎ) বিদ্যমান, সেই [রথ] (সসবান্) সেবন পূর্বক (শতম্) শত (নৄন্) নেতা পুরুষদের (কুৎসেন) বন্ধুবাৎসল ঋষির [সেনাপতির] সহিত (অনু) অনুকূল রীতিতে (আ অবহেৎ) নিয়ে আসুক॥২॥

    भावार्थ

    যেভাবে প্রভাত বেলা সূর্যের আলোয় সবকিছু আলোকিত হয়, তেমনই মনুষ্য অত্যন্ত জ্ঞানী পুরুষের আশ্রয়ে থেকে বিদ্যুৎ, সূর্য ও অগ্নি আদি পদার্থের দ্বারা যান বিমান আদি তৈরি করে কার্য সিদ্ধ করুক ॥২॥

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    भाषार्थ

    হে পরমেশ্বর! (অস্যাঃ) আজকের/বর্তমান এই (উষসঃ) ঊষাবেলায়, বা (অপরস্যাঃ) আগত কোনো ঊষাবেলায়, (নৃণাম্) উপাসক নর-নারীদের (নৃতমস্য) সর্বোৎকৃষ্ট নেতা আপনার (প্র নৃতৌ) প্রকৃষ্ট-নেতৃত্বে (প্র স্যাম) আমরা যেন সদা বর্তমান থাকি। (অনু) আপনার নেতৃত্বে থাকার পর (ত্রিশোকঃ) শারীরিক মানসিক এবং আধ্যাত্মিক শোকরহিত উপাসক (শতম্) শত (নৄন্) নর-নারীদের (আ বহৎ) সন্মার্গে নিয়ে চলে, যেমন (কুৎসেন) বিদ্যুতের সহায়তা দ্বারা (রথঃ) রথ, শত নর-নারীদের বহন করে। (যঃ) যে মনুষ্য (সসবান্) শায়িত (অসৎ) থাকে, তাঁকেও ত্রিশোক সন্মার্গে নিয়ে যায়।

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