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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 82 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 82/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-८२
    89

    शिक्षे॑य॒मिन्म॑हय॒ते दि॒वेदि॑वे रा॒य आ कु॑हचि॒द्विदे॑। न॒हि त्वद॒न्यन्म॑घवन्न॒ आप्यं॒ वस्यो॒ अस्ति॑ पि॒ता च॒न ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शिक्षे॑यम् । इत् । म॒ह॒ऽय॒ते । दि॒वेऽदि॑वे । रा॒य: । आ । कु॒ह॒चि॒त्ऽविदे॑ ॥ न॒हि । त्वत् । अ॒न्यत् । म॒घ॒ऽव॒न् । न॒: । आप्य॑म् । वस्य॑: । अस्ति॑ । पि॒ता । च॒न ॥८२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शिक्षेयमिन्महयते दिवेदिवे राय आ कुहचिद्विदे। नहि त्वदन्यन्मघवन्न आप्यं वस्यो अस्ति पिता चन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शिक्षेयम् । इत् । महऽयते । दिवेऽदिवे । राय: । आ । कुहचित्ऽविदे ॥ नहि । त्वत् । अन्यत् । मघऽवन् । न: । आप्यम् । वस्य: । अस्ति । पिता । चन ॥८२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 82; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजपुरुषों और प्रजाजनों के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (मघवन्) हे महाधनी ! [राजन्] (महयते) सत्कार करनेवाले (कुहचिद्विदे) कहीं भी विद्यमान पुरुष के लिये (इत्) अवश्य (रायः) धनों को (दिवेदिवे) दिन-दिन (आ) सब प्रकार से (शिक्षेयम्) मैं दूँ, (त्वत्) तुझसे (अन्यत्) दूसरा (नः) हमारा (आप्यम्) पाने योग्य (वस्यः) श्रेष्ठ वस्तु और (पिता) पिता (चन) भी (नहि) नहीं (अस्ति) है ॥२॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोग सब स्थानों के सुपात्रों को धन देकर विद्यावृद्धि करें और पूरे राजभक्त होकर सर्वहितकारी कर्म करते रहें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(शिक्षेयम्) शिक्षतिर्दानकर्मा-निघ० ३।२०। दद्याम् (इत्) अवश्यम् (महयते) पूजयते। सत्कुर्वते (दिवेदिवे) प्रतिदिनम् (रायः) धनानि (आ) समन्तात् (कुहचिद्विदे) विद सत्तायाम्-क्विप्। क्वापि विद्यमानाय जनाय (नहि) (त्वत्) त्वत्तः (अन्यत्) भिन्नं वस्तु (मघवन्) धनवन् (नः) अस्माकम् (आप्यम्) प्रापणीयम् (वस्यः) वसीयः। वसुतरम्। श्रेष्ठतरम् (अस्ति) (पिता) पालयिता (चन) अपि ॥

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    विषय

    प्रभु ही पिता हैं, प्रभु ही बन्धु हैं

    पदार्थ

    १. (कुहचिद् विदे) = [यत्र कुत्र चिद् विद्यमानाय]-जहाँ कहीं भी [किसी भी देश में] निवास करनेवाले (महयते) = प्रभु के पूजक के लिए (दिवे-दिवे) = प्रतिदिन (इत्) = निश्चय से (राय:) = धनों को (आशिक्षेयम्) = सर्वथा देनेवाला बनूं। २. हे (मघवन्) = ऐश्वर्यशालिन् प्रभो! (त्वद् अन्यत्) = आपसे भिन्न (न:) = हमारा (आप्यम्) = बन्धु (नहि अस्ति) = नहीं है। आपसे भिन्न (वस्य:) = प्रशस्त पिता चन पिता भी नहीं है। प्रभु ही हमारे पिता हैं, प्रभु ही बन्धु हैं। प्रभु-प्रदत्त धनों को हम प्रभु के उपासकों के लिए ही देनेवाले हों।

    भावार्थ

    दैशिक भेदभावों को छोड़कर हम सब प्रभु के उपासकों के लिए धनों को देनेवाले हों। प्रभु को ही पिता व बन्धु जानें। प्रभु को ही सब धनों का दाता समझें। प्रभु को पिता व बन्धु जाननेवाला यह व्यक्ति शान्त जीवनवाला 'शंयु' होता है। यह प्रभु का उपासन करता हुआ कहता है -

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    भाषार्थ

    (कुहचिद् विदे) कहीं भी विद्यमान (महयते इत्) महिमा-सम्पन्न योग्य व्यक्ति को ही, (दिवे दिवे) प्रतिदिन, मैं (रायः) सम्पत्तियाँ (आ शिक्षेयम्) प्रदान करूँ। (मघवन्) हे सम्पत्तियों के स्वामी! (वस्यः) हे आठों वस्तुओं के अधीश्वर (त्वत् अन्यत्) आप से भिन्न (नः) हमारा कोई (आप्यम्) प्रायणीय बन्धु (नहि) नहीं है, और न कोई (पिता चन) रक्षक ही (अस्ति) है।

    टिप्पणी

    [वसु=अग्नि पृथिवी; वायु अन्तरिक्ष; चन्द्रमा नक्षत्र; सूर्य द्युलोक।]

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    विषय

    परमेश्वर और उपासक।

    भावार्थ

    परमेश्वर कहता है। (दिवे दिवे) दिनों दिन, प्रतिदिन, सदा (कुहचित् विदे) कहीं भी विद्यमान (महयते) उपासना करने वाले सत्पुरुष को मैं (रायः) धनों, ऐश्वर्यों को (आशिक्षयेम् इत्) प्रदान करता ही हूं। भक्त कहता है। हे (मघवन्) ऐश्वर्यवन् ! (त्वद् अन्यत्) तुझ से दूसरा (नः) हमारा (आप्यम् न) बन्धु नहीं और (त्वदन्यः) तुझसे दूसरा (वस्यः) श्रेष्ठ हमारा (पिता चन न) पिता पालक भी नहीं हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः। इन्द्रो देवता। बृहत्यौ। द्वयृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Every day I would wish to give wealth and support for the person who seeks to rise for enlightenment wherever he be. O lord of wealth, power and honour, there is none other than you worthy of love and attainment as our own, as father indeed.

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    Translation

    Says Almighty-each day I enrich the man who prays, in whatsover place he may be. The devotee says—O worishipable one, there can be no better kinship than that of yours There can be none else but you as my father.

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    Translation

    Says Almighty-each day I enrich the man who prays, in whatsoever place he may be. The devotee says—O worishipable one, there can be no better kinship than that of yours There can be none else but you as my father.

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    Translation

    Every day do I (i.e., God) immensely give away wealth and riches to the devoted person, wherever he may be. O Lord of Wealth and riches, noneelse except Thee is our kinsman nor is there a better Father to us than Thou art.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(शिक्षेयम्) शिक्षतिर्दानकर्मा-निघ० ३।२०। दद्याम् (इत्) अवश्यम् (महयते) पूजयते। सत्कुर्वते (दिवेदिवे) प्रतिदिनम् (रायः) धनानि (आ) समन्तात् (कुहचिद्विदे) विद सत्तायाम्-क्विप्। क्वापि विद्यमानाय जनाय (नहि) (त्वत्) त्वत्तः (अन्यत्) भिन्नं वस्तु (मघवन्) धनवन् (नः) अस्माकम् (आप्यम्) प्रापणीयम् (वस्यः) वसीयः। वसुतरम्। श्रेष्ठतरम् (अस्ति) (पिता) पालयिता (चन) अपि ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাজনকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (মঘবন্) হে মহাধনী ! [রাজন্] (মহয়তে) সৎকার যুক্ত (কুহচিদ্বিদে) যেকোনো স্থানে স্থিত পুরুষের জন্য (ইৎ) অবশ্যই (রায়ঃ) ধন (দিবেদিবে) প্রত্যহ (আ) সর্ব প্রকারে (শিক্ষেয়ম্) আমি প্রদান করি, (ত্বৎ) তোমার থেকে (অন্যৎ) পৃথক দ্বিতীয় কেউ (নঃ) আমাদের (আপ্যম্) প্রাপ্তি যোগ্য (বস্যঃ) শ্রেষ্ঠ বস্তু, (পিতা) পিতা (চন)(নহি) না (অস্তি) আছে ॥২॥

    भावार्थ

    বিদ্বান্ লোক সকল স্থানের সুপাত্রদের ধন প্রদান করে বিদ্যাবৃদ্ধি করুক এবং সম্পূর্ণ রাজভক্ত হয়ে সর্বহিতকারী কর্ম করুক ॥২॥

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    भाषार्थ

    (কুহচিদ্ বিদে) যে কোথাও বিদ্যমান (মহয়তে ইৎ) মহিমা-সম্পন্ন যোগ্য ব্যক্তিকেই, (দিবে দিবে) প্রতিদিন, আমি (রায়ঃ) সম্পত্তি (আ শিক্ষেয়ম্) প্রদান করি/করবো। (মঘবন্) হে সম্পত্তির স্বামী! (বস্যঃ) হে আট বস্তুর অধীশ্বর (ত্বৎ অন্যৎ) আপনার থেকে ভিন্ন (নঃ) আমাদের কোনো (আপ্যম্) প্রায়ণীয় বন্ধু (নহি) নেই, এবং না কোনো (পিতা চন) রক্ষকই (অস্তি) আছে।

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