अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 93/ मन्त्र 4
ई॒ङ्खय॑न्तीरप॒स्युव॒ इन्द्रं॑ जा॒तमुपा॑सते। भे॑जा॒नासः॑ सु॒वीर्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठई॒ङ्खय॑न्ती: । अ॒प॒स्युव॑: । इन्द्र॑म् । जा॒तम् । उप॑ । आ॒स॒ते॒ ॥ भे॒जा॒नास॑: । सु॒ऽवीर्य॑म् ॥९३.४॥
स्वर रहित मन्त्र
ईङ्खयन्तीरपस्युव इन्द्रं जातमुपासते। भेजानासः सुवीर्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठईङ्खयन्ती: । अपस्युव: । इन्द्रम् । जातम् । उप । आसते ॥ भेजानास: । सुऽवीर्यम् ॥९३.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमेश्वर की उपासना का उपदेश।
पदार्थ
(ईङ्खयन्तीः) चेष्टा करती हुई, (अपस्युवः) काम चाहनेवाली, (सुवीर्यम्) बड़े सामर्थ्य को (भेजानासः) सेवन करती हुई प्रजाएँ (जातम्) प्रकट हुए (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] की (उप आसते) उपासना करती हैं ॥४॥
भावार्थ
यह सब पदार्थ परमेश्वर के नियम से चेष्टा करते हुए और अपने कर्तव्य करते हुए उस जगदीश्वर की आज्ञा में रहते हैं ॥४॥
टिप्पणी
मन्त्र ४-८ ऋग्वेद में हैं १०।१३।१-; मन्त्र ४ सामवेद पू० २।९।१ ॥ ४−(ईङ्खयन्तीः) ईखि गतौ-शतृ। गच्छन्त्यः। चेष्टमानाः (अपस्युवः) अपः कर्मात्मन इच्छन्त्यः (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं परमात्मानम् (जातम्) प्रादुर्भूतम् (उप आसते) परिचरन्ति (भेजानासः) छान्दसं रूपम्। भजमानाः (सुवीर्यम्) शोभनं बलम् ॥
विषय
देवजामय:-'इन्द्र' मातरः
पदार्थ
१. (ईखयन्तीः) = स्तुति के द्वारा प्रभु की ओर गति करनेवाली, (अपस्युव:) = अपने साथ कर्म को जोड़नेवाली माताएँ (जातम्) = उत्पन्न हुए-हुए (इन्द्रम्) = इन्द्रियों के अधिष्ठाता बननेवाले बालक को (उपासते) = उपासित करती हैं, अर्थात् सदा इसका ध्यान करती हैं, इसे अपनी आँखों से ओझल नहीं करती। २. इसका निर्माण करनेवाली ये माताएँ (सुवीर्यम् भेजानास:) = उत्तम वीर्य व शक्ति का सेचन करनेवाली होती है। स्वयं संयमी जीवन बिताती हुई ये शक्ति का रक्षण करती हैं। इनका आपना जीवन संयमवाला न हो तो इन्होंने बच्चों का क्या निर्माण करना? 'स्तुति, क्रिया व संयम' के द्वारा ही तो ये 'देवजामय' बनती हैं।
भावार्थ
बालक को वही माता 'इन्द्र' बना पाती है जो 'प्रभु-स्तवन, क्रियाशीलता व संयम' को अपनाती है।
भाषार्थ
(अपस्युवः) सत्कर्मों को चाहती हुई (ईङ्खयन्तीः) प्रगतिशील प्रजाएँ, (जातम् इन्द्रम्) साक्षात् हुए परमेश्वर की (उपासते) उपासनाएँ करती हैं, और (सुवीर्यम्) सात्त्विक शक्तियों के सम्पन्न परमेश्वर का (भेजानासः) भजन करती हैं।
विषय
ईश्वर स्तुति।
भावार्थ
(सुवीर्यम्) उत्तम वीर्य का (भेजानासः) सेवन करती हुई (अपस्युवः) तदनुकूल आचारण करती हुई स्त्रियां जिस प्रकार (ईङ्खयन्तीः) पति आदि का संग लाभ करती हुई (जातम् उपासत) उत्पन्न सुन्दर पुत्र को प्राप्त करती हैं और जिस प्रकार (सुवीर्यम्) उत्तम वीर्य या पुरुष को (भेजानासः) आश्रय करती हुई (अपस्युवः) तदनुकूल कार्य करना या रक्षा चाहती हुई प्रजाएं (ईङ्खयन्तीः) उसी के शरण जाती हुई प्रजाएं (जातं इन्दम्) प्रकट हुए, प्रत्यक्ष ऐश्वर्यवान् राजा का (उपासते) आश्रय लेती हैं उसी प्रकार (सुवीर्यम् भेजानासः) उत्तम वीर्यवान् परमबलस्वरूप परमेश्वर का (भेजानासः) भजन करती हुई (अपस्युवः) ज्ञान और कर्म का लाभ चाहती हुई (ईङ्खयन्तीः) इस परमेश्वर की शरण में जाती हुई (जातम्) हृदय में प्रकट हुए (इन्दम्) ऐश्वर्यवान् परमेश्वर की (उपासते) उपासना करती हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-३ प्रगाथः ऋषिः। ४-८ देवजामय इन्द्रमातरः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। अष्टर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Brhaspati Devata
Meaning
Active, expressive and eloquent people, conscious of their rights and duties, serve and abide by the ruling power of the system, Indra, as it arises and advances, and while they do so they enjoy good health, honour and prosperity of life for themselves and their progeny.
Translation
The subjects (of the world) acquiring knowledge, desiring to perform good acts and attaining the excellent power have communion with Almighty God who is manifest in the world.
Translation
The subjects (of the world) acquiring knowledge, desiring to perform good acts and attaining the excellent power have communion with Almighty God who is manifest in the world.
Translation
O Mighty God, Thou art well-renowned from Thy strength, vanquishing power and energy. O showerer of peace and blessings, Thou art truly a sprinkler of comforts and well-beings.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
मन्त्र ४-८ ऋग्वेद में हैं १०।१३।१-; मन्त्र ४ सामवेद पू० २।९।१ ॥ ४−(ईङ्खयन्तीः) ईखि गतौ-शतृ। गच्छन्त्यः। चेष्टमानाः (अपस्युवः) अपः कर्मात्मन इच्छन्त्यः (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं परमात्मानम् (जातम्) प्रादुर्भूतम् (उप आसते) परिचरन्ति (भेजानासः) छान्दसं रूपम्। भजमानाः (सुवीर्यम्) शोभनं बलम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমেশ্বরোপাসনোপদেশঃ
भाषार्थ
(ঈঙ্খয়ন্তীঃ) চেষ্টারত, (অপস্যুবঃ) কর্ম অভিলাষী, (সুবীর্যম্) বিশাল সামর্থ্য (ভেজানাসঃ) সেবন পূর্বক প্রজাগণ (জাতম্) প্রাদুর্ভূত (ইন্দ্রম্) ইন্দ্রের [পরম ঐশ্বর্যযুক্ত পরমাত্মার] (উপ আসতে) উপাসনা করে ॥৪॥
भावार्थ
এই সকল পদার্থ পরমেশ্বরের নিয়মে প্রচেষ্টাপূর্বক এবং নিজ কর্তব্য সম্পাদন পূর্বক জগদীশ্বরের আজ্ঞায় রত থাকে ॥৪॥ মন্ত্র ৪-৮ ঋগ্বেদ ১০।১৫৩।১-৫; মন্ত্র ৪ সামবেদ পূ০ ২।৯।১ ॥
भाषार्थ
(অপস্যুবঃ) সৎকর্ম কামনা করে (ঈঙ্খয়ন্তীঃ) প্রগতিশীল প্রজাগণ, (জাতম্ ইন্দ্রম্) সাক্ষাৎ পরমেশ্বরের (উপাসতে) উপাসনা করে, এবং (সুবীর্যম্) সাত্ত্বিক শক্তিসম্পন্ন পরমেশ্বরের (ভেজানাসঃ) ভজন করে।
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