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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 13/ मन्त्र 1
    ऋषिः - भृगुः देवता - वरुणः, सिन्धुः, आपः छन्दः - निचृदनुष्टुप् सूक्तम् - आपो देवता सूक्त
    143

    यद॒दः सं॑प्रय॒तीरहा॒वन॑दता ह॒ते। तस्मा॒दा न॒द्यो॒ नाम॑ स्थ॒ ता वो॒ नामा॑नि सिन्धवः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । अ॒द: । स॒म्ऽप्र॒य॒ती॒: । अहौ॑ । अन॑दत । ह॒ते । तस्मा॑त् । आ । न॒द्य᳡: । नाम॑ । स्थ॒ । ता । व॒: । नामा॑नि । सि॒न्ध॒व॒: ॥१३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यददः संप्रयतीरहावनदता हते। तस्मादा नद्यो नाम स्थ ता वो नामानि सिन्धवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । अद: । सम्ऽप्रयती: । अहौ । अनदत । हते । तस्मात् । आ । नद्य: । नाम । स्थ । ता । व: । नामानि । सिन्धव: ॥१३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 13; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    जल के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (सिन्धवः) हे बहनेवाली नदियों ! (संप्रयतीः=संप्रयत्यः+यूयम्) मिलकर आगे बढ़ती हुई तुमने (अहौ हते) मेघ के ताड़े जाने पर (अदः) वह (यत्) जो (अनहत) नाद किया है। (तस्मात्) इसलिये (आ) ही (नद्यः) नाद करनेवाली, नदी (नाम) नाम (स्थ) तुम हो, (ता=तानि) वह [वैसे ही] (वः) तुम्हारे (नामानि) नाम हैं ॥१॥

    भावार्थ

    जब मेघ आपस में टकराकर गरजकर बरसते हैं, तब वह जल पृथिवी पर एकत्र होकर नाद करता हुआ बहता है, इससे उसका नदी नाम है। इसी प्रकार वैदिक शब्दों की व्युत्पत्ति समझकर अर्थ करना चाहिये ॥१॥ अजमेर पुस्तक में ‘संप्रयतिः’ है, हमने अन्य पुस्तकों से ‘संप्रयतीः’ पाठ लिया है ॥

    टिप्पणी

    १−(यत्)। यत् किंचित्। (अदः)। तत्। (संप्रयतीः)। इण् गतौ शतृ, ङीप्। वा छन्दसि। पा० ६।१।१०६। इति पूर्वसवर्णदीर्घः। संभूय, प्रयान्त्यः। (अहौ)। अ० २।५।५। मेघे। (अनदत)। णद, नदट्। वा अव्यक्ते शब्दे-लङ्। सांहितिको दीर्घः। यूयं ध्वनिं कृतवत्यः। (हते)। ताडिते। (तस्मात्)। तस्मात् कारणात्। (आ)। अवधारणे। (नद्यः)। नदट् पचाद्यच्। टिड्ढाणञ्०। पा० ४।१।१५। इति ङीप् नद्यः कस्मान्नदना भवन्ति शब्दवन्त्यः-निरु० २।२४। नदनशीलाः। सरितः। (नाम)। अ० १।२४।३। नामधेयम्। (स्थ)। भवथ। (ता)। तानि। (वः)। युष्माकम्। (सिन्धवः)। अ० १।१५।१। स्यन्दनशीलाः। नद्यः ॥

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    विषय

    नदनात् 'नद्यः'

    पदार्थ

    १. (अदः) = [अमुष्मिन्] उस (अहौ) = आहन्तव्य मेघ के (हते) = ताड़ित होने पर हे जलो! तुम (यत्) = चूँकि (संप्रयती:) = मिलकर इधर-उधर हुए (अनदत) = शब्द करते हो, (तस्मात्) = इस कारण से तुम (आ) = अभिमुख्येन-अव्यवधानेन ही (नद्यः नाम स्थ) = 'नद्यः' इस नामवाले हो। २. हे (सिन्धवः) = स्यन्दनशील जलो! (वः) = तुम्हारे (ता) = वे (नामानि) = 'आपः, उदकम्' आदि नाम भी अन्वर्थ ही है |

    भावार्थ

    मेघ के विद्युत् से आहत होकर बरसने पर ये जल शब्द करते हुए आगे बढ़ते हैं, अत: 'नद्यः' कहलाते हैं [नद शब्दे]।

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    भाषार्थ

    (अहौ) मेघ के (हते) हनन हो जाने पर (यत्) जो (अदः) उस प्रदेश में (सं प्रयती:) मिलकर प्रयाण करती हुई "आप:" ने (अनदत) नाद किया, (तस्मात्) उससे (आ) आभिमुख्य रूप में (नद्यः नाम स्थ) नदीनामवाली तुम हो, (व:) [हे आपः!] तुम्हारे (ता=तानि नामानि) वे नाम हैं, (सिन्धवः) अर्थात् सिन्धु।

    टिप्पणी

    [अहौ=मेघे, “अहिवतु खलु मन्त्रवर्णा ब्राह्मणवादाश्च" (निरुक्त २।५।१६), तथा "अहिः अयनात् एति अन्तरिक्षे" (निरुक्त २।५।१७)। मन्त्र में दो नामों के निर्वचन दिए हैं, नद्यः का निर्वचन नदन द्वारा और सिन्धवः का निर्वचन स्यन्दन द्वारा।]

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    विषय

    जलों के नामों के निर्वाचन ।

    भावार्थ

    एक पदार्थ के भिन्न २ नाम रखने के विज्ञान का उपदेश करते हैं । उदाहरण के लिये जल के नामों की व्याख्या करते हैं । हे (आपः) जलो ! (अदः अहौ) इस मेघ के (हते) विद्युत् और वायु द्वारा ताड़ित होने पर (सं प्रयतीः) एकत्र होकर बहते हुए (अनदत) ध्वनि करते हो, इसलिये तुम (नद्यः नाम) नदी नाम से (आ स्थ) पुकारे जाते हो (तस्मात्) इसी कारण हे (सिन्धवः) प्रस्रवणशील, बहने वाले जलो ! (वः) तुम्हारे (ताः) वे नाना प्रकार के (नामानि) नाम भी हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृगुर्ऋषिः । वरुणः सिन्धुर्वा देवता । १ निचृत् । ५ विराड् जगती । ६ निचृत् त्रिष्टुप् । २-४, ७ अनुष्टुभः । सप्तर्चं सूक्तम् ।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Water

    Meaning

    O waters which, on the break of the cloud, flow on together, roaring, roaring, for which reason you have the names ‘nadyah’, i.e., those that flow, roaring. For that very reason, your names are ‘Sindhavah’, i.e., those that flow as floods. (‘Nadyah’ and Sindhavah are plural forms of ‘nadi’ and ‘sindhu’. Every stream is nadi and every river is sindhu. Hence the river Indus also is called Sindha or Sindhu which now is a particular name through the historical process of particularisation. But in the Veda, Sindhu is a general name for any river, the reason being that it is the name of water flowing in flood anywhere.)

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    Subject

    Rivers - Varuņah

    Translation

    Term "nādī".- Since you roar while this charged cloud (ahi) is burst, clearly for that reason your name is nadī or nadyah (one that roars). O sindhus, (flowing ones, the rivers) your other names. also are similar(i.e.conveying their meaning).

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    Translation

    As these rivers, at the time of the destruction of cloud, flow forth roaring together therefore they are called Nadyah(roaring). This bears various names.

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    Translation

    As ye, when the cloud was burst, flowed forth together with a roar, so are ye called the roaring ones: such like, O Ye rivers, are your names!

    Footnote

    when it rains on the bursting of the cloud, the rivers are filled with water. The flow together with a roar, and are called roaring streams, which have got different names.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(यत्)। यत् किंचित्। (अदः)। तत्। (संप्रयतीः)। इण् गतौ शतृ, ङीप्। वा छन्दसि। पा० ६।१।१०६। इति पूर्वसवर्णदीर्घः। संभूय, प्रयान्त्यः। (अहौ)। अ० २।५।५। मेघे। (अनदत)। णद, नदट्। वा अव्यक्ते शब्दे-लङ्। सांहितिको दीर्घः। यूयं ध्वनिं कृतवत्यः। (हते)। ताडिते। (तस्मात्)। तस्मात् कारणात्। (आ)। अवधारणे। (नद्यः)। नदट् पचाद्यच्। टिड्ढाणञ्०। पा० ४।१।१५। इति ङीप् नद्यः कस्मान्नदना भवन्ति शब्दवन्त्यः-निरु० २।२४। नदनशीलाः। सरितः। (नाम)। अ० १।२४।३। नामधेयम्। (स्थ)। भवथ। (ता)। तानि। (वः)। युष्माकम्। (सिन्धवः)। अ० १।१५।१। स्यन्दनशीलाः। नद्यः ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (অহৌ) মেঘের (হতে) হননের পর (যৎ) যা (অদঃ) সেই প্রদেশে (সং প্রয়তীঃ) মিলেমিশে/একসাথে প্রয়াণকারী/প্রস্থানকারী/গমনশীল "আপঃ" (অনদত) নাদ করেছে, (তস্মাৎ) সেই কারণে (আ) আভিমুখ্য রূপে (নদ্যঃ নাম স্থ) নদী নামবিশিষ্ট তুমি হও, (বঃ) [হে আপঃ !] তোমাদের (তা= তানি নামানি) সেই নাম, (সিন্ধবঃ) অর্থাৎ সিন্ধু।

    टिप्पणी

    [অহৌ= মেঘে, "অহিবত্তু খলু মন্ত্রবর্ণা ব্রাহ্মণবাদাশ্চ" (নিরুক্ত ২।৫।১৬), এবং "অহিঃ অয়নাৎ এতি অন্তরিক্ষে" (নিরুক্ত ২।৫।১৭)। মন্ত্রে দুটি নামের ব্যাখা দেওয়া হয়েছে, নদ্যঃ এর ব্যাখা নদন দ্বারা এবং সিন্ধবঃ এর ব্যাখা স্যন্দন দ্বারা।]

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    मन्त्र विषय

    অপাং গুণা উপদিশ্যন্তেঃ

    भाषार्थ

    (সিন্ধবঃ) হে প্রবাহমান নদীসমূহ ! (সংপ্রয়তীঃ=সংপ্রয়ত্যঃ+যূয়ম্) একসাথে অগ্ৰগামী তোমরা (অহৌ হতে) মেঘের সংঘর্ষে/তাড়নায় (অদঃ) তা (যৎ) যে (অনহত) নাদ/শব্দ করেছে। (তস্মাৎ) এইজন্য (আ)(নদ্যঃ) নাদ/শব্দকারী, নদী (নাম) নাম (স্থ) তোমরা হও, (তা=তানি) তা [তেমনই] (বঃ) তোমাদের (নামানি) নাম ॥১॥

    भावार्थ

    যখন মেঘ পরস্পরের সাথে সংঘর্ষে গর্জন করে বর্ষিত হয়, তখন সেই জল পৃথিবীতে একত্র হয়ে নাদ করে প্রবাহিত হয়, তাই তার নাম হচ্ছে নদী। এইভাবে বৈদিক শব্দের ব্যুৎপত্তি বুঝে অর্থ করা উচিত ॥১॥ অজমের পুস্তকে ‘সংপ্রয়তিঃ’ রয়েছে আমি অন্য পুস্তক থেকে ‘সংপ্রয়তীঃ’ পাঠ গ্রহণ করেছি॥

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