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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 15 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 7
    ऋषिः - अथर्वा देवता - प्रजापतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वाणिज्य
    60

    उप॑ त्वा॒ नम॑सा व॒यं होत॑र्वैश्वानर स्तु॒मः। स नः॑ प्र॒जास्वा॒त्मसु॒ गोषु॑ प्रा॒णेषु॑ जागृहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ । त्वा॒ । नम॑सा । व॒यम् । होत॑: । वै॒श्वा॒न॒र । स्तु॒म: । स: । न॒: । प्र॒ऽजासु॑ । आ॒त्मऽसु॑ । गोषु॑ । प्रा॒णेषु॑ । जा॒गृ॒हि॒ ॥१५.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उप त्वा नमसा वयं होतर्वैश्वानर स्तुमः। स नः प्रजास्वात्मसु गोषु प्राणेषु जागृहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उप । त्वा । नमसा । वयम् । होत: । वैश्वानर । स्तुम: । स: । न: । प्रऽजासु । आत्मऽसु । गोषु । प्राणेषु । जागृहि ॥१५.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 15; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    व्यापार के लाभ का उपदेश।

    पदार्थ

    (होतः) हे दानशील ! (वैश्वानर) हे सब नरों के हितकारक, वा सबके नायक पुरुष ! (वयम्) हम लोग (नमसा) नमस्कार के साथ (त्वा) तुझको (उप) आदर से (स्तुमः) सराहते हैं। (सः=सः त्वम्) सो तू (नः) हमारी (प्रजासु) प्रजाओं पर, (आत्मसु) आत्माओं वा शरीरों पर (गोषु) गौओं पर और (प्राणेषु) प्राणों वा जीवनों पर (जागृहि) जागता रह ॥७॥

    भावार्थ

    व्यापारी लोग सर्वहितकारी, कर्मकुशल पुरुष को प्रधान बनाकर अपने धनादि की रक्षा करें ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(उप)। पूजायाम्। (त्वा)। त्वाम्। इन्द्रम्। (नमसा)। नमस्कारेण। (वयम्)। व्यापारिणः। (होतः)। हु दाने-तृच्। हे दातः। (वैश्वानर)। अ० १।१०।४। हे सर्वनरहित ! हे सर्वनायक ! (स्तुमः)। प्रशंसामः। (सः)। सत्यम्। (नः। अस्माकम्। (प्रजासु)। पुत्रपौत्रभृत्यादिषु। (आत्मसु)। अ० १।१८।३। जीवेषु। शरीरेषु। (गोषु)। धेनुषु। (प्राणेषु)। जीवनेषु। (जागृहि)। बुध्यस्व। सावधानो वर्तस्व ॥

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    विषय

    नमसा उपस्तुमः

    पदार्थ

    १. हे (होत:) = सब पदार्थों के देनेवाले (वैश्वानर) = सब मनुष्यों का हित करनेवाले प्रभो! (वयम्) = हम (त्वा) = आपको प्राप्त होकर (नमसा) = नमन के साथ (उपस्तुमः) = स्तुत करते हैं। प्रात:-सायं नम्रतापूर्वक आपकी स्तुति करते हैं। २. (स:) = वे आप (न:) = हमारी (प्रजास) = प्रजाओं के विषय में (आत्मसु) = हमारे विषय में तथा (गोषु, प्राणेषु) = हमारी इन्द्रियों और प्राणों के विषय में (जागृहि) = सदा जाग्रत् रहिए। इनका रक्षण आपको ही तो करना है।

    भावार्थ

    हम प्रात:-सायं नम्रता से प्रभुका स्तवन करें, प्रभु ही हमारी सन्तानों व हमारा रक्षण करनेवाले हैं।

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    भाषार्थ

    (वैश्वानर) हे सब नर नारियों के हितकारी, (होत:)१ तथा सबके दाता परमेश्वर!] (वयम्) हम (नमसा) नमस्कारपूर्वक (त्वा उप) तेरे समीप हुए (स्तुमः) तेरी स्तुति करते हैं। (सः) वह तू (न:) हमारी (प्रजासु) पुत्रादि प्रजाओं में, (आत्मसु) हमारी आत्माओं में, (गोषु) हमारी इन्द्रियों में, (प्राणेषु) हमारे प्राणों में (जागृहि) जागरित रह।

    टिप्पणी

    [राष्ट्र का प्रत्येक प्रजाजन परमेश्वर से प्रार्थना करता है कि तू हमारी प्रजा आदि की रक्षा के लिए, उनमें व्याप्त हुआ, सदा जागरित रहे, हम सब नमस्कारों द्वारा तेरी स्तुति करते हैं । वैश्वानर=विश्वनरहित (सायण)। वैदिक धर्म अनुसार राष्ट्र का प्रत्येक जन परमेश्वर की उपासना तथा स्तुति किया करे, इसका विधान मन्त्र में हुआ है। वैदिक राष्ट्र secular अर्थात् धर्मनिरपेक्ष नहीं, अपितु धर्मभावनाओंवाला है।] [ १. हु दानादनयोः (जुहोत्यादि)।]

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    विषय

    वणिग्-व्यापार का उपदेश ।

    भावार्थ

    हे (होतः) दान प्रतिदान करने वाले ! और हे (वैश्वानर) समस्त पुरुषों में व्यापक ! परमेश्वर ! (त्वा) तेरी (नमसा) बड़े आदर से (उप स्तुमः) स्तुति करते हैं । (सः) वह तू (नः प्रजासु) हमारी प्रजाओं में, (आत्मसु) हमारे आत्माओं में, (गोषु) हमारी ज्ञान-इन्द्रियों और उनकी चेष्टाओं में और (प्राणेषु) कर्म-इन्द्रियों में (जागृहि) तू सदा जागृत रहता है, तुझे साक्षी करके हम सब व्यवहार करें ।

    टिप्पणी

    (च०) ‘अग्ने माते’, ‘अहरप्रयावं भरन्तोऽश्वायेष तिष्ठते द्यासमस्मै’ इति यजु०। ‘रात्रिं रात्रिमप्रयातं’ इति अथवं १९। ५५। १०॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पण्यकामोऽथर्वा ऋषिः। विश्वेदेवाः उत इन्द्राग्नी देवताः। १ भुरिक्, ४ त्र्यवसाना बृहतीगर्भा विराड् अत्यष्टिः । ५ विराड् जगती । ७ अनुष्टुप् । ८ निचृत् । २, ३, ६ त्रिष्टुभः। अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Business and Finance

    Meaning

    O hota, performer and organiser of the human nation’s economic yajna, O Vaishvanara, universal spirit of life and light vibrating and shining at the heart of every human being, we admire, adore and exalt you with salutations and offer of the best we have for the common good. O Lord, spirit of yajnic economy and spirit of universal growth, pray keep awake and be inspiring among our people, in our soul at heart, in the mind and senses, in our cows, keep vibrating in our pranic energies. Never let our universal awareness and individual and social enthusiasm wane away and subside into sleep.

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    Translation

    O fire divine, invoker of enlightened ones and benefactor of all men, we approach you with praise and homage. May you keep awake in our progeny (prajāsu), in ourselves, in our sense organs (gosu and in our vital breaths (prāņesu).

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    Translation

    O’ All-creating and All-desolving Impeller of the universe, We pray you with reverence. Please have your watch over bodies, spirits, organs, and lives.

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    Translation

    With reverence we sing Thy praise, O God, the Bestower of gifts, the Well-wisher of all. Keep Thou watch over our children, over our souls and bodies, organs and lives.

    Footnote

    Griffith considers this verse to be an interpolation. He has assigned no reason for these remarks, which are wide of the mark. Traders are exhorted in this verse to carry on their business with full faith in God.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(उप)। पूजायाम्। (त्वा)। त्वाम्। इन्द्रम्। (नमसा)। नमस्कारेण। (वयम्)। व्यापारिणः। (होतः)। हु दाने-तृच्। हे दातः। (वैश्वानर)। अ० १।१०।४। हे सर्वनरहित ! हे सर्वनायक ! (स्तुमः)। प्रशंसामः। (सः)। सत्यम्। (नः। अस्माकम्। (प्रजासु)। पुत्रपौत्रभृत्यादिषु। (आत्मसु)। अ० १।१८।३। जीवेषु। शरीरेषु। (गोषु)। धेनुषु। (प्राणेषु)। जीवनेषु। (जागृहि)। बुध्यस्व। सावधानो वर्तस्व ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (বৈশ্বানর) হে সকল নর-নারীদের হিতকারী, (হোতঃ)১ এবং সবার দাতা পরমেশ্বর! (বয়ম্) আমরা (নমসা) নমস্কারপূর্বক (ত্বা উপ) তোমার সমীপে/কাছে এসে (স্তুমঃ) তোমার স্তুতি করছি/করি। (সঃ) সেই তুমি (নঃ) আমাদের (প্রজাসু) পুত্রাদি প্রজাদের মধ্যে (আত্মসু) আমাদের আত্মার মধ্যে, (গোষু) আমাদের ইন্দ্রিয়-সমূহের মধ্যে, (প্রাণেষু) আমাদের প্রাণ-সমূহের মধ্যে (জাগৃহি) জাগরিত থাকো।

    टिप्पणी

    [রাষ্ট্রের প্রত্যেক প্রজা পরমেশ্বরের কাছে/প্রতি প্রার্থনা করে যে, তুমি আমাদের প্রজা আদির রক্ষার জন্য, তাদের মধ্যে ব্যাপ্ত হয়ে, সদা জাগরিত থাকো, আমরা সবাই নমস্কারের দ্বারা তোমার স্তুতি করছি/করি। বৈশ্বানর=বিশ্বনরহিত (সায়ণ)। বৈদিক ধর্ম অনুসারে রাষ্ট্রের প্রত্যেক মনুষ্য পরমেশ্বরের উপাসনা ও স্তুতি করুক, এর বিধান মন্ত্রে হয়েছে। বৈদিক রাষ্ট্র secular অর্থাৎ ধর্মনিরপেক্ষ নয়, বরং ধর্ম ভাবনাসম্পন্ন।] [১. হু দানাদনয়োঃ (জুহোত্যাদি)।]

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    मन्त्र विषय

    ব্যাপারলাভোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (হোতঃ) হে দানশীল ! (বৈশ্বানর) হে সকল নরের হিতকারক, বা সকলের নায়ক পুরুষ ! (বয়ম্) আমরা (নমসা) নমস্কারপূর্বক (ত্বা) তোমাকে (উপ) আদরপূর্বক (স্তুমঃ) স্তুতি করি। (সঃ=সঃ ত্বম্) সেই তুমি (নঃ) আমাদের (প্রজাসু) প্রজাদের প্রতি, (আত্মসু) আত্মার বা শরীরের প্রতি (গোষু) গাভীদের প্রতি এবং (প্রাণেষু) প্রাণ বা জীবনের প্রতি (জাগৃহি) জাগরিত থাকো ॥৭॥

    भावार्थ

    ব্যবসায়ীরা সর্বহিতকারী, কর্মকুশল পুরুষকে প্রধান করে নিজের ধন-সম্পদের রক্ষা করুক ॥৭॥

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