Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 20 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 20/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - सोमः, अग्निः, आदित्यः, विष्णुः, ब्रह्मा, बृहस्पतिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रयिसंवर्धन सूक्त
    70

    सोमं॒ राजा॑न॒मव॑से॒ऽग्निं गी॒र्भिर्ह॑वामहे। आ॑दि॒त्यं विष्णुं॒ सूर्यं॑ ब्र॒ह्माणं॑ च॒ बृह॒स्पति॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोम॑म् । राजा॑नम् । अव॑से । अ॒ग्निम् । गी॒:ऽभि: । ह॒वा॒म॒हे॒ । आ॒दि॒त्यम् । विष्णु॑म् । सूर्य॑म् । ब्र॒ह्माण॑म् । च॒ । बृह॒स्पति॑म् ॥२०.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमं राजानमवसेऽग्निं गीर्भिर्हवामहे। आदित्यं विष्णुं सूर्यं ब्रह्माणं च बृहस्पतिम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोमम् । राजानम् । अवसे । अग्निम् । गी:ऽभि: । हवामहे । आदित्यम् । विष्णुम् । सूर्यम् । ब्रह्माणम् । च । बृहस्पतिम् ॥२०.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 20; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (अवसे) रक्षा के लिए (गीर्भिः) स्तुतियों से (सोमम्) ऐश्वर्य के कारण, (राजानम्) सबके शासक (अग्निम्) विद्वान् (आदित्यम्) बड़े दीप्यमान, (विष्णुम्) सबमें व्यापक, (सूर्यम्) चलानेवाले, (ब्रह्माणम्) सबमें बड़े वेदप्रकाशक ब्रह्मा (च) और (बृहस्पतिम्) बड़े बड़ों के रक्षक बृहस्पति [परमेश्वर वा मनुष्य] को (हवामहे) हम बुलाते हैं ॥४॥

    भावार्थ

    सब मनुष्य जगदीश्वर के गुण, कर्म स्वभाव के ज्ञान और बड़े लोगों के आश्रय से अपना सामर्थ्य बढ़ावें ॥४॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद ९।२६ में है ॥

    टिप्पणी

    ४−(सोमम्) अ० १।६।२। ऐश्वर्यहेतुम्। (राजानम्) अ० १।१०।१। सर्वशासकम्। (अवसे) रक्षणाय। (अग्निम्) विद्वांसम्। (गीर्भिः) वाणीभिः। स्तुतिभिः। (हवामहे) आह्वयामः। (आदित्यम्) अ० १।९।१। आदीप्यमानम्। (विष्णुम्) विषेः किच्च। उ० ३।३९। इति विष्लृ, व्याप्तौ-नु। विष्णुः, यज्ञः। निघ० ३।१७। पदनाम, निघ० ४।२। यद्विषितो भवति तद्विष्णुर्भवति विष्णुर्विशतेर्वा-निरु० १२।१८। व्यापकम्। (सूर्यम्) अ० १।३।५। सर्वप्रेरकम्। (ब्रह्माणम्) अ० २।६।२। सर्ववृद्धम्। वेदप्रकाशकम्। (बृहस्पतिम्)। अ० १।८।२। बृहतां महतां पालकम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सोम से बृहस्पति तक

    पदार्थ

    १. इस जीवन-यात्रा में हम (अवसे) = अपनी रक्षा के लिए (सोमम्) = सोम को तथा (राजानम्) = अपने पर शासन करने की वृत्ति को अपने जीवन को व्यवस्थित [regulated] करने की वृत्ति को हवामहे-पुकारते हैं। सोम को पुकारने का भाव है "शरीर में शक्ति को रक्षित करना'। सब उन्नतियों का मूल यही है कि हम शरीर में सोम का रक्षण करें। इसके लिए जीवन को बड़ा व्यवस्थित करें । ब्रह्मचर्याश्रम का मूलसूत्र यही है। अब गृहस्थ में (गीर्भि:) = स्तुति-बाणियों के द्वारा (अग्रिम्) = अग्रणी प्रभु को पुकारते हैं 'निरन्तर आगे बढ़ना' इसी को जीवन का नियम बनाते हैं। इसी उद्देश्य से (आदित्यम्) = अन्धकार को छिन्न करनेवाले प्रकाशमय प्रभु को पुकारते हैं, स्वाध्याय के द्वारा जीवन को प्रकाशमय बनाये रखते है। ३. गृहस्थ से ऊपर उठकर वानप्रस्थ में (विष्णु सूर्यम्) = उस सर्वव्यापक, निरन्तर सरण करनेवाले प्रभु को पुकारते हुए हम हदय को विशाल तथा जीवन को क्रियामय बनाने के लिए यत्नशील होते हैं [विष्णु व्याप्ती, सृ गतौ]। ४. (च) = और अब संन्यस्त होकर हम (ब्रह्माणम्) = ब्रह्मा व (बृहस्पतिम्) = बृहस्पति को पुकारते हैं। ब्रह्मा वह है जिसमें सारा ब्रह्माण्ड प्रविष्ट है। मैं भी 'वसुधैव कुटुम्बकम्' को जीवन का सूत्र बनाता हूँ और बृहस्पति की भाँति ज्ञान का प्रकाश करनेवाला होता हूँ।

    भावार्थ

    हम सोमरक्षण करनेवाले व व्यवस्थित जीवनवाले बनें। हमारे जीवन का सूत्र आगे बढ़ना व स्वाध्याय द्वारा अन्धकार को छिन्न करना हो। हम विशाल हृदय व क्रियाशील हों और अन्त में सम्पूर्ण पृथिवी को अपने परिवार में प्रविष्ट कर सर्वत्र ज्ञान का प्रसार करें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (सोमम् राजानम्) सर्वोत्पादक अतः सबके राजा परमेश्वर का, तथा (अग्निम्) अग्नि के सदृश प्रकाशमान परमेश्वर का, (अवसे) निज रक्षार्थ, (गोभिः) स्तुतिरूपा वेदवाणियों द्वारा (हवामहे) हम आह्वान करते हैं। तथा (आदित्यम्, विष्णुम्, सूर्यम्, ब्रह्माणम् च बृहस्पतिम्)१ आदित्य नामक, सर्वव्यापक, सर्वप्रेरक, चतुर्वेदविद्, बृहद्-ब्रह्माण्ड के पति परमेश्वर का स्तुतिवाणियों द्वारा हम आह्वान करते हैं।

    टिप्पणी

    [सोम=षु प्रसवे (भ्वादिः)। आदित्य= परमेश्वर, यथा "तदेवाग्निस्तदादित्यः (यजुः ३२।२), तथा आदित्यवर्णम्, तमसः परस्तात् (यजु:० ३१।१८)। विष्णुम्= विष्लृ व्याप्तौ (जुहोत्यादिः)। सूर्यम्=षू प्रेरणे (तुदादिः), सूर्य के प्रकाश में प्राणी निज कार्यों में प्रेरित होते हैं। ब्रह्मा है चतुर्वेदविद् परमेश्वर। सूक्त में अग्नि आदि नामों (मन्त्र १) द्वारा नाना देवता अभिमत नहीं, अपितु एक ही परमेश्वर के भिन्न भिन्न गुणकर्मों के प्रदर्शक हैं इन नामों द्वारा एक ही परमेश्वर का आह्वान किया है हदय में।] [१. बृहस्पति:=अथवा वृहती वेदवाणी का पति:। यथा "वृहस्पते प्रथमं वाचो अग्रम्" (ऋ० १०।७१।१)। ]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ईश्वर से उत्तम ऐश्वर्य और सद्गुणों की प्रार्थना ।

    भावार्थ

    (अवसे) अपनी रक्षा के लिये (अग्निम्) ज्ञान के प्रकाशक (सोमं) संसार के उत्पादक और प्रेरक (राजानम्) सब से अधिक प्रकाशमान एवं सब पर राजा के समान शासक (आदित्यम्) सूर्य के समान सब को रस देने और सब के आकर्षण करने हारे (विष्णुम्) सर्वव्यापक (ब्रह्माणम् च) और सब से बड़े (बृहस्पतिम्) और समस्त ब्रह्माण्ड और वेदादि विज्ञान के स्वामी प्रभु को (गीर्भिः) वाणियों द्वारा (हवामहे) हम वर्णन करते और स्तुति करते हैं।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘आदित्यान्’ इति ऋ०। (प्र०) ‘वरुणमग्ने’ इति साम०। (द्वि०) ‘अन्वारभामहे’ इति यजु०॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः । अग्निर्वा मन्त्रोक्ता नाना देवताः। १-५, ७, ९, १० अनुष्टुभः। ६ पथ्या पंक्तिः। ८ विराड्जगती। दशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Man’s Self-development

    Meaning

    With honest and earnest voice of the heart, we invoke, adore and pray to Soma, lord of peace and joy, Raja, refulgent ruler of the world, Agni, light and fire of life, Aditya, self-refulgent sun, Vishnu, all pervasive spirit of cosmic sustenance, Surya, refulgent sustainer of earth and life on earth, Brahmana, speaker of the Vedic lore, and Brhaspati, lord of the expansive universe and Infinity. We invoke them for protection and advancement.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    With our prayers, for protection we invoke the blissful Lord (soma), the sovereign (rājānam), also the adorable Lord (agni), the Lord of eternity (āditya), the omnipresent (visņu), the impeller (sūrya), the Lord of knowledge (brahmanam) and the Lord supreme (brhaspati). (Cf.Rv. X.141.3)

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    We describe with our words the splendid Property of Soma, the negative electricity of the world and describe with suitable terms Agnih, the positive electricity of the world. We speak of the evaporation, we tell others about the operation of the sun rays, we know and describe the function of the sun which is the battery of the World, we know the air and we describe the properties of Supreme Divine Power.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    For our protection, with prayers, we invoke God, the Creator of the universe, the Ruler of all, the Bestower of knowledge, the Giver of light to all like the Sun, the Omnipresent, the Almighty, the Lord of the knowledge of the Vedas.

    Footnote

    See Yajur, 9-26.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(सोमम्) अ० १।६।२। ऐश्वर्यहेतुम्। (राजानम्) अ० १।१०।१। सर्वशासकम्। (अवसे) रक्षणाय। (अग्निम्) विद्वांसम्। (गीर्भिः) वाणीभिः। स्तुतिभिः। (हवामहे) आह्वयामः। (आदित्यम्) अ० १।९।१। आदीप्यमानम्। (विष्णुम्) विषेः किच्च। उ० ३।३९। इति विष्लृ, व्याप्तौ-नु। विष्णुः, यज्ञः। निघ० ३।१७। पदनाम, निघ० ४।२। यद्विषितो भवति तद्विष्णुर्भवति विष्णुर्विशतेर्वा-निरु० १२।१८। व्यापकम्। (सूर्यम्) अ० १।३।५। सर्वप्रेरकम्। (ब्रह्माणम्) अ० २।६।२। सर्ववृद्धम्। वेदप्रकाशकम्। (बृहस्पतिम्)। अ० १।८।२। बृहतां महतां पालकम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (সোমম্ রাজানম্) সর্বোৎপাদক অতঃ সকলের রাজা পরমেশ্বরের, এবং (অগ্নিম্) অগ্নির সদৃশ প্রকাশমান পরমেশ্বরের, (অবসে) নিজ রক্ষার্থে, (গীর্ভিঃ) স্তুতিরূপা বেদবাণীর দ্বারা (হবামহে) আমরা আহ্বান করছি/করি। এবং (আদিত্যম্, বিষ্ণুম্, সূর্যম্, ব্রহ্মাণম্ চ বৃহস্পতিম্)১ আদিত্য নামক, সর্বব্যাপক, সর্বপ্রেরক, চতুর্বেদবিদ্, বৃহৎ-ব্রহ্মান্ডের পতি পরমেশ্বরের স্তুতিবাণীর দ্বারা আমরা আহ্বান করছি/করি।

    टिप्पणी

    [সোম=ষু প্রসবে (ভ্বাদিঃ)। আদিত্য= পরমেশ্বর, যথা "তদেবাগ্নিস্তদাদিত্যঃ (যজুঃ০ ৩২।২), এবং আদিত্যবর্ণম্, তমসঃ পরস্তাৎ (যজুঃ০ ৩১।১৮)। বিষ্ণুম্= বিষ্লৃ ব্যাপ্তৌ (জুহোত্যাদিঃ)। সূর্যম্ = ষূ প্রেরণে (তুদাদিঃ), সূর্যের প্রকাশে প্রাণী নিজ কার্যে প্রেরিত হয়। ব্রহ্মা হলেন চতুর্বেদবিদ্ পরমেশ্বর। সূক্তে অগ্নি আদি নাম (মন্ত্র ১) দ্বারা নানা দেবতা অভিমত নয়, বরং একই পরমেশ্বরের ভিন্ন-ভিন্ন গুণকর্মের প্রদর্শক। এই নামগুলোর দ্বারা একই পরমেশ্বরের আহ্বান করা হয়েছে হৃদয়ে।] [১. বৃহস্পতিঃ= অথবা বৃহতী বেদবাণীর পতিঃ। যথা "বৃহস্পতে প্রথমং বাচো অগ্রম্" (ঋ০ ১০।৭১।১)।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    मन्त्र विषय

    ব্রহ্মজ্ঞানোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অবসে) রক্ষার জন্য (গীর্ভিঃ) স্তুতিসমূহ দ্বারা (সোমম্) ঐশ্বর্যের কারণ, (রাজানম্) সকলের শাসক (অগ্নিম্) বিদ্বান্ (আদিত্যম্) উত্তম দীপ্যমান, (বিষ্ণুম্) সর্বব্যাপক, (সূর্যম্) সর্বপ্রেরক, (ব্রহ্মাণম্) সর্ববৃদ্ধ বেদ প্রকাশক ব্রহ্মা (চ) এবং (বৃহস্পতিম্) বৃহৎ-মহৎদের রক্ষক বৃহস্পতি [পরমেশ্বর বা মনুষ্য] কে (হবামহে) আমরা আহ্বান করি ॥৪॥

    भावार्थ

    সকল মনুষ্য জগদীশ্বরের গুণ, কর্ম স্বভাবের জ্ঞান ও মহান মনুষ্যগণের আশ্রয়ের মাধ্যমে নিজেদের সামর্থ্য বৃদ্ধি করুক ॥৪॥ এই মন্ত্র কিছু ভেদে যজুর্বেদ ৯।২৬ রয়েছে।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top