अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 29/ मन्त्र 6
ऋषिः - उद्दालकः
देवता - शितिपाद् अविः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - अवि सूक्त
58
इरे॑व॒ नोप॑ दस्यति समु॒द्र इ॑व॒ पयो॑ म॒हत्। दे॒वौ स॑वा॒सिना॑विव शिति॒पान्नोप॑ दस्यति ॥
स्वर सहित पद पाठइरा॑ऽइव । न । उप॑ । द॒स्य॒ति॒ । स॒मु॒द्र:ऽइ॑व । पय॑: । म॒हत् । दे॒वौ । स॒वा॒सिनौ॑ऽइव । शि॒ति॒ऽपात् । न । उप॑ । द॒स्य॒ति॒ ॥२९.६॥
स्वर रहित मन्त्र
इरेव नोप दस्यति समुद्र इव पयो महत्। देवौ सवासिनाविव शितिपान्नोप दस्यति ॥
स्वर रहित पद पाठइराऽइव । न । उप । दस्यति । समुद्र:ऽइव । पय: । महत् । देवौ । सवासिनौऽइव । शितिऽपात् । न । उप । दस्यति ॥२९.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य परमेश्वर की भक्ति से सुख पाता है।
पदार्थ
(शितिपात्) प्रकाश और अन्धकार में गतिवाला परमेश्वर (इरा इव) भूमि वा विद्या के समान और (समुद्रः) समुद्र, अर्थात् (महत्) बड़े (पयः इव) जलराशि के समान (न) नहीं (उप दस्यति) घटता है, और (देवौ) दिव्य गुणवाले (सवासिनौ इव) साथ-साथ निवास करनेवाले दोनों [प्राण और अपना वा दिनरात] के समान वह (न) नहीं (उप दस्यति) घटता है ॥६॥
भावार्थ
जैसे भूमि, विद्या, जल, वायु आदि उचित प्रयोग से अधिक-अधिक उपकारी होते हैं, इसी प्रकार ईश्वर का उपकारी कोश विज्ञान द्वारा मनुष्य को बढ़ाता चला जाता है ॥६॥
टिप्पणी
६−(इरा) ऋज्रेन्द्राग्रवज्र०। उ० २।२८। इति इण् गतौ-रक्। अथवा, इं कामं सुकामनां राति ददाति। रा दाने-क। टाप्। भूमिः। वाक्। विद्या (नोपदस्यति) म० २। नोपक्षीयते (समुद्रः) जलधिः। अन्तरिक्षं वा (पयः) जलौघः (महत्) विशालम् (देवौ) दिव्यगुणयुक्तौ (सवासिनौ) सह समानं वा निवसन्तौ। अश्विनौ प्राणापानौ। अन्यद् व्याख्यातम् ॥
विषय
इरा इव, समुद्र इव, सवासिनी देवी इव
पदार्थ
१. (इरा इव) = इस भूमि के समान (शितिपात्) = शुद्ध आचरणवाला राजा (न उपदस्यति) = प्रजा का कभी क्षय नहीं करता। भूमि माता के समान सदा अन्नों को देनेवाली है। इसीप्रकार राजा प्रजा को कभी अन्नाभाव से मृत नहीं होने देता। २.यह सदाचारी राजा (समुद्रः इव) = समुद्र के समान (महत् पय:) = महान् जल-राशि है। समुद्र का जल क्षीण नहीं होता। इस राजा का कोश भी सदा परिपूर्ण रहता है। ३. (सवासिनौ) = सदा साथ रहनेवाले (देवौ इव) = प्राणापानरूप अश्विनीदेवों के समान यह राजा है। यह प्रजा में प्राणशक्ति का सञ्चार करता है, प्रजा से मलिनताओं को दूर करता है। इसप्रकार यह (शितिपात्) = राजा (न उपदस्थति) = प्रजा का क्षय नहीं करता।
भावार्थ
राजा प्रजा के लिए अन्नाभाव नहीं होने देता। यह अपने कोष को क्षीण नहीं होने देता। यह प्रजा में प्राणशक्ति का सञ्चार करता हुआ सब मलिनताओं को दूर करता है।
भाषार्थ
(शितिपात्) निर्मल शारीरिक पाद आदि अवयवोंवाला [रक्षक राजा, मन्त्र ४] (इरा इव) भूमि की तरह (न उपदस्थति) नहीं क्षीण होता, (समुद्र: इव पयो महत्) समुद्र जैसे महा जलराशि द्वारा क्षीण नहीं होता, तथा (इव) जैसे (सवासिनौ देवी) सहवासी दो देव अश्विनी क्षीण नहीं होते वैसे शितिपात् (नोप दस्यति) नहीं क्षीण होता।
टिप्पणी
[इरा=पृथिवीनाम (निघं० १।१)। शीतपात् -राजा, यतः अवि है, प्रजारक्षक है, अतः वह राजपद से क्षीण नहीं होता, प्रजा द्वारा पदच्युत नहीं किया जाता।]
विषय
राजसभा के सदस्यों के कर्तव्य ।
भावार्थ
(इरा इव) भूमि या अन्न की न्याईं तथा (महत् पयः समुद्र इव) महान् जलराशि समुद्र के समान (न उपदस्यति) वह नष्ट नहीं होता, (सवासिनौ देवौ इव) एक निवासस्थान आकाश में रहने वाले सूर्य और चन्द्र देवों के समान (शितिपाद्ं) वह ज्ञानस्वरूप जीवात्मा (न उपदस्यति) नष्ट नहीं होता ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
उद्दालक ऋषिः। शितिपादोऽविर्देवता। ७ कामो देवता। ८ भूमिर्देवता। १, ३ पथ्यापंक्तिः, ७ त्र्यवसाना षट्षदा उपरिष्टादेवीगृहती ककुम्मतीगर्भा विराड जगती । ८ उपरिष्टाद् बृहती २, ४, ६ अनुष्टुभः। अष्टर्चं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Taxation, Development, Administration
Meaning
Firm as earth and deep as unfathomable sea of inexhaustible waters, such a man (ruler as well as citizen doing his duty) fears no fall. The nation of ruler and people, both united as twin divine Ashvins or as prana and apana energies of the living system, fears no fall while the two sustain the mother land against all possible negativities.
Translation
The white-footed (protection tax) never exhausts, like the earth, like the immense water of the ocean and like the twin bounties of Nature living in a common house.
Translation
This material cause of the world, the matter assuming the form of caure and effect does not ever clases to exist like the earth, like the ocean full of deep water and like the two eternal celestial substances-God and soul.
Translation
The conscious soul faileth not like knowledge, like the ocean full of vast water, like the Sun and Moon, companions in the sky.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(इरा) ऋज्रेन्द्राग्रवज्र०। उ० २।२८। इति इण् गतौ-रक्। अथवा, इं कामं सुकामनां राति ददाति। रा दाने-क। टाप्। भूमिः। वाक्। विद्या (नोपदस्यति) म० २। नोपक्षीयते (समुद्रः) जलधिः। अन्तरिक्षं वा (पयः) जलौघः (महत्) विशालम् (देवौ) दिव्यगुणयुक्तौ (सवासिनौ) सह समानं वा निवसन्तौ। अश्विनौ प्राणापानौ। अन्यद् व्याख्यातम् ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(শিতিপাৎ) নির্মল শারীরিক পাদ আদি অবয়বসমন্বিত [রক্ষক রাজা, মন্ত্র ৪] (ইরা ইব) ভূমির মতো (ন উপদস্যতি) ক্ষীণ হয় না, (সমুদ্রঃ ইব পয়ো মহৎ) সমুদ্র যেমন মহা জলরাশি দ্বারা ক্ষীণ হয় না, এবং (ইব) যেভাবে (সবাসিনৌ দেবৌ) সহবাসী দুই দেবতা অশ্বিনৌ ক্ষীণ হয় না তেমনই শিতিপাৎ (নোপ দস্যতি) ক্ষীণ হয় না।
टिप्पणी
[ইরা= পৃথিবীনাম (নিঘং০ ১।১) শিতিপাৎ– রাজা, যতঃ অবি, প্রজারক্ষক, অতঃ তিনি রাজপদ থেকে ক্ষীণ হয় না, প্রজা দ্বারা পদচ্যুত হয় না।]
मन्त्र विषय
মনুষ্যঃ পরমেশ্বরভক্ত্যা সুখং লভতে
भाषार्थ
(শিতিপাৎ) আলো ও অন্ধকারে গতিসম্পন্ন পরমেশ্বর (ইরা ইব) ভূমি বা বিদ্যার সমান এবং (সমুদ্রঃ) সমুদ্র, অর্থাৎ (মহৎ) বৃহৎ (পয়ঃ ইব) জলরাশির সমান (ন) না (উপ দস্যতি) হ্রাস পায়, এবং (দেবৌ) দিব্য গুণান্বিত (সবাসিনৌ ইব) একসাথে অবস্থানকারী দুই [প্রাণ ও অপান বা দিনরাত] এর সমান তিনি (ন) না (উপ দস্যতি) হ্রাস পায়॥৬॥
भावार्थ
যেভাবে ভূমি, বিদ্যা, জল, বায়ু প্রভৃতি উচিত রূপে প্রয়োগ করলে অধিক অধিক উপকারী হয়, এইভাবে ঈশ্বরের উপকারী কোশ বিজ্ঞান দ্বারা মনুষ্যের সমৃদ্ধি হয় ॥৬॥
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