अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 29/ मन्त्र 7
ऋषिः - उद्दालकः
देवता - कामः
छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा उपरिष्टाद्दैवी बृहती ककुम्मतीगर्भा विराड्जगती
सूक्तम् - अवि सूक्त
102
क इ॒दं कस्मा॑ अदा॒त्कामः॒ कामा॑यादात्। कामो॑ दा॒ता कामः॑ प्रतिग्रही॒ता कामः॑ समु॒द्रमा वि॑वेश। कामे॑न त्वा॒ प्रति॑ गृह्णामि॒ कामै॒तत्ते॑ ॥
स्वर सहित पद पाठक: । इ॒दम् । कस्मै॑ । अ॒दा॒त् । काम॑: । कामा॑य । अ॒दा॒त् । काम॑: । दा॒ता । काम॑: । प्र॒ति॒ऽग्र॒ही॒ता । काम॑: । स॒मु॒द्रम् । आ । वि॒वे॒श॒ । कामे॑न । त्वा॒ । प्रति॑ । गृ॒ह्णा॒मि॒ । काम॑ । ए॒तत् । ते॒ ॥२९.७॥
स्वर रहित मन्त्र
क इदं कस्मा अदात्कामः कामायादात्। कामो दाता कामः प्रतिग्रहीता कामः समुद्रमा विवेश। कामेन त्वा प्रति गृह्णामि कामैतत्ते ॥
स्वर रहित पद पाठक: । इदम् । कस्मै । अदात् । काम: । कामाय । अदात् । काम: । दाता । काम: । प्रतिऽग्रहीता । काम: । समुद्रम् । आ । विवेश । कामेन । त्वा । प्रति । गृह्णामि । काम । एतत् । ते ॥२९.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य परमेश्वर की भक्ति से सुख पाता है।
पदार्थ
(कः) किसने (इदम्) यह [कर्मफल] (कस्मै) किसको (अदात्) दिया है ? [इसका उत्तर] (कामः) मनोरथ [वा कामना योग्य परमेश्वर] ने (कामाय) मनोरथ [वा कामना करनेवाले जीव] को (अदात्) दिया है। (कामः) मनोरथ [वा कमनीय ईश्वर] (दाता) देनेवाला और (कामः) मनोरथ [वा कामनावाला जीव] (प्रतिग्रहीता) लेनेवाला है। (कामः) मनोरथ ने (समुद्रम्) समुद्र [पार्थिव समुद्र वा अन्तरिक्ष] में (आ विवेश) प्रवेश किया है। (काम) हे मनोरथ ! [वा कमनीय ईश्वर] (त्वा) तुझको (प्रति गृह्णामि) मैं जीव ग्रहण करता हूँ, (एतत्) यह [सब काम] (ते) तेरा है ॥७॥
भावार्थ
संसार में देना लेना अर्थात् सब उपकारी काम कामना से सिद्ध होते हैं, कामना से ही प्रयत्न के साथ मन देने पर मनुष्य के सब कठिन कामों को परमेश्वर सुगम कर देता है ॥७॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद ७।४८ में है। उसका अर्थ यहाँ श्रीमद् दयानन्द सरस्वती के भाष्य के आधार पर किया है। को॑ऽदा॒त् कस्मा॑ अ॒दात् कामो॑ऽदा॒त् कामा॑यादात्। कामो॑ दा॒ता कामः॑ प्रतिग्र॒हीता कामैतत्ते॑ ॥ य० ७।४८ ॥ (कः) किसने [कर्मफल] (अदात्) दिया है, और [कस्मै] किसको [अदात्] दिया है। इन दो प्रश्नों के उत्तर, (कामः) कामना योग्य परमेश्वर ने (अदात्) दिया है, और (कामाय) कामना करनेवाले जीव को (अदात्) दिया है। (कामः) योगीजनों के कामना योग्य परमेश्वर [दाता] देनेवाला है। (कामः) कामना करनेवाला जीव (प्रतिग्रहीता) लेनेवाला है। (काम) हे कामना करनेवाले जीव ! (ते) तेरे लिये (एतत्) यह सब है ॥
टिप्पणी
७−(इदम्) कर्मफलम् (अदात्) दत्तवान् (कामः) कमु-घञ्। कामना। सर्वैः कमनीयः परमेश्वरः। कामयमानो जीवः (दाता) कर्मफलस्य प्रदायकः (प्रतिग्रहीता) स्वीकर्ता (समुद्रम्) अगम्यस्थानम्। जलधिम्। अन्तरिक्षम्। (आ विवेश) प्रविष्टवान्। प्राप्तवान् (त्वा) कामम् (प्रति गृह्णामि) अङ्गीकरोमि (एतत्) कर्म (ते) तुभ्यम्। अन्यत् सुगमम् ॥
विषय
कामः दाता, काम: प्रतिग्रहीता
पदार्थ
१. राजा के लिए प्रजा कर देती है, राजा प्रजा से कर लेता है। वस्तुत: (क:) = कौन (इदम्) = कररूप इस धन को (कस्मै) = किसके लिए (अदात्) = देता है (कामः कामाय अदात्) = काम ही काम के लिए देता है। प्रजा में यह कामना होती है कि उसे अन्तः व बाह्य उपद्रवों के भय से कोई रक्षित करनेवाला हो तथा राजा के अन्दर भी 'मैं इतनी विशाल प्रजा का राजा हूँ' ऐसा कहलाए जानेरूप यश की कामना होती है। यह कामना ही प्रजा व राजा के सम्बन्ध को स्थिर रखती है। (कामः दाता) = काम ही देनेवाला है, (कामः प्रतिग्रहीता) = काम ही लेनेवाला है। २. (कामः समुद्रम् आविवेश) = यह काम समुद्र की भौति निरवधिक [अनन्त] रूप को प्राप्त होता है ('समुद्र इव हि कामः, नैव हि कामस्यान्तोऽस्ति') = [तै० २.२.५.६]। राजा कहता है कि हे कररूप द्रव्य! मैं (त्वा) = तुझे (कामेन) = प्रजारक्षा की कामना से ही (प्रतिगृहामि) = लेता हूँ। हे काम प्रजारक्षण की इच्छे! (एतत्) = यह सब धन (ते) = तेरा ही है। राजा इस सारे धन का विनियोग प्रजोन्नति के कार्यों में ही करता है।
भावार्थ
प्रजा कर देती है, राजा कर लेता है। यह लेना-देना कामना से ही होता है। प्रजा राजा के द्वारा रक्षण की कामना करती है, राजा प्रजारक्षण से प्राप्य यश की कामनावाला होता है।
भाषार्थ
(क:) किसने (इदम्) यह राजपद (अदात्) दिया है, (कस्मै) किसके लिए दिया है। (कामः) कामना ने (कामाय अदात्) कामना के लिए दिया है। (कामः दाता) कामना देनेवाली है, (कामः प्रतिग्रहीता) कामना ग्रहण करनेवाली अर्थात् स्वीकार करनेवाली है, (कामः) कामना (समुद्रम् आविवेश) हृदय-समुद्र में प्रविष्ट हुई है। (कामेन) कामना द्वारा (त्वा) तुझ राजपद को (प्रतिगृह्णामि) मैं राजा स्वीकार करता हूँ। (काम) हे कामना ! (एतत्) यह राजपद (ते) तेरे लिए या तेरा है।
टिप्पणी
[अभिप्राय यह कि प्रजा ने यदि राजा को राजपद दिया, तो अपनी कामना की पूर्ति के लिए दिया, ताकि उसकी सुरक्षा हो सके, और राजा ने जो राजपद ग्रहण किया, वह इसलिए की प्रजा में उसका मान और यश हो सके। इस प्रकार प्रदान-और-प्रतिग्रह परस्पर की स्वार्थपूर्ति के लिए हैं। इस प्रदान और प्रतिग्रह की कामना का स्त्रोत हृदय-समुद्र है। हृदयात्समुद्रात् (यजु० १७।९३) तथा (अथर्व० १६।३।६)। इस प्रकार सांसारिक व्यवहार "प्रदान-प्रतिग्रह" स्वार्थपूर्ति के अधीन हैं। कामना के सम्बन्ध में तत्त्वदर्शन की व्याख्या के लिए देखो याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी का संवाद (अध्याय ४। ब्राह्मण ५। सन्दर्भ बृहदारण्यक उपनिषद्)।]
विषय
राजसभा के सदस्यों के कर्तव्य ।
भावार्थ
पूर्व मन्त्रों में ‘ शितिपाद्’ का वर्णन किया है। इसमें इस का निर्णय करते हैं कि कौन किस को क्या देता है। (कः इदं कस्मै अदात्) कौन इस ‘अवि’ आत्मा को किस के प्रति समर्पित करता है। पूर्वोक्त मन्त्रों में इसका निर्णय नहीं किया, उसका रहस्य भी बतलाते हैं। (कामः अदात्) काम—कामना करने हारे जीव ने अपने आत्मा को (कामाय अदात्) सब के अभिलाषा करने योग्य, कमनीय परब्रह्म के प्रति अर्पित किया। (कामः दाता, कामः प्रति-ग्रहीता) काम ही दान करता है-काम ही प्रतिग्रह अर्थात् स्वीकार करने वाला है। अर्थात् (कामः) काम= कामना करने वाला जीव स्वयं (समुद्रं) उस महान् रस के सागर में (आविवेश) प्रवेश करता है। इसलिये हे जीव ! (वा) तुझ को मैं परमात्मा (कामेन) तेरे काम अभिलाषा से ही तुझको (प्रति गृह्णामि) स्वयं अपने में आश्रय देता हूं (काम एतत् ते) हे काम ! यह तेरा स्वरूप काम = कामनामय ही है। अर्थात् जिस कामना में जीव रहता है तदनुरूप ही लोक उसे प्राप्त होता है। इसलिये आत्मा को कामनावश ही (लोकेन संमितः) लोक के समान कहा है। इसी प्रकार परस्पर-अभिलाषा में मग्न स्त्री पुरुष भी परस्पर एक दूसरे को समर्पण करते हुए कहते हैं । प्र० - (कः इदं कस्मै अदात्) किसने किसको सौंपा ? उत्तर- (कामः कामाय अदात) कामः=परस्पर की अभिलाषा ने ही उस अभिलाषा के निमित्त एक दूसरे को सौंप दिया । अर्थात् (कामो दाता कामः प्रतिग्रहीता) सौंपने वाला भी अभिलाषुक है और लेने वाला भी उसी प्रकार का इच्छुक है। लेने वाला मैं पति (कामेन त्वा-प्रति-गृह्णामि) अभिलाषा से प्रेरित होकर ही तुझ को स्वीकार करता हूं । (काम) हे काम ! अभिलाषुक (ते एतत्) यही तेरी अभिलाषा पूर्ण हो ।
टिप्पणी
‘कामः समुद्रमाविश’ इति तै० आ०। को अदात् कस्मा अदात्। कामोदात कामायादात् । ‘कामो दाता कामः प्रतिगृहीता कामैतत्ते’ इति यजु०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
उद्दालक ऋषिः। शितिपादोऽविर्देवता। ७ कामो देवता। ८ भूमिर्देवता। १, ३ पथ्यापंक्तिः, ७ त्र्यवसाना षट्षदा उपरिष्टादेवीगृहती ककुम्मतीगर्भा विराड जगती । ८ उपरिष्टाद् बृहती २, ४, ६ अनुष्टुभः। अष्टर्चं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (4)
Subject
Taxation, Development, Administration
Meaning
Who gives this homage of contribution? To whom? For what? It is love that gives. To love, for love, it gives. Love is the giver. Love is the receiver. It is love that enters and rolls in the ocean of existence. And so says the mother earth: I receive you and welcome you with love. It is all a play of divine love, it is all for you, O man, child of Divinity.
Subject
Kamah - Passion and Sex
Translation
Who gives it and to whom? Kama (desire) gives it to Kama. The desire is the giver. The desire is the receiver. The desire enters into the Ocean. I accept you with desire. O desire, let yours be this.
Translation
Who does give this world and does give to whom? God desiring the dispensation of justice gives this world and He's gives it to souls who desire the worldly enjoyments and emancipation. God desiring good of souls is the giver and souls desiring emancipation are the receivers. God desiring the creation enters into the vast space full of material atoms. O Divinity; I, the soul attain your knowledge and declare that all this play is yours.
Translation
Who has granted this fruit of action to whom God has given it to thesoul. God, is the Giver, and soul the receiver. The soul full of. desires, passes into God, the ocean of felicity. All business of the world is the manifestation of desire.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(इदम्) कर्मफलम् (अदात्) दत्तवान् (कामः) कमु-घञ्। कामना। सर्वैः कमनीयः परमेश्वरः। कामयमानो जीवः (दाता) कर्मफलस्य प्रदायकः (प्रतिग्रहीता) स्वीकर्ता (समुद्रम्) अगम्यस्थानम्। जलधिम्। अन्तरिक्षम्। (आ विवेश) प्रविष्टवान्। प्राप्तवान् (त्वा) कामम् (प्रति गृह्णामि) अङ्गीकरोमि (एतत्) कर्म (ते) तुभ्यम्। अन्यत् सुगमम् ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(কঃ) কে (ইদম্) এই রাজপদ (অদাৎ) দিয়েছে, (কস্মৈ) কার জন্য দিয়েছে। (কামঃ) কামনা (কামায় অদাৎ) কামনার জন্য দিয়েছে। (কামঃ দাতা) কামনা হলো দাতা, (কামঃ প্রতিগ্রহীতা) কামনা হলো গ্রহণকারী অর্থাৎ স্বীকারকারী, (কামঃ) কামনা (সমুদ্রম্ আবিবেশ) হৃদয়-সমুদ্রে প্রবিষ্ট হয়েছে। (কামেন) কামনা দ্বারা (ত্বা) তোমাকে [রাজপদকে] (প্রতিগৃহ্ণামি) আমি রাজা স্বীকার করি। (কাম) হে কামনা ! (এতৎ) এই রাজপদ (তে) তোমার জন্য বা তোমার।
टिप्पणी
[অভিপ্রায় হলো যে, প্রজা যদি রাজাকে রাজপদ দেয়, তাহলে নিজের কামনার পূর্তির জন্য দিয়েছে, যাতে তাঁদের সুরক্ষা হয়, এবং রাজা যে রাজপদ গ্রহণ করেছে, তা এইজন্য যে, প্রজাদের মধ্যে যেন তাঁর মান ও যশ হয়। এইভাবে প্রদান-ও-প্রতিগ্রহ হচ্ছে পরস্পরের স্বার্থপূর্তির জন্য। এই প্রদান ও প্রতিগ্রহ-এর কামনার স্রোত হলো হৃদয়-সমুদ্র। হৃদয়াৎসমুদ্রাৎ (যজু০ ১৭।৯৩) এবং (অথর্ব০ ১৬।৩।৬)। এইভাবে সাংসারিক ব্যবহার "প্রদান-প্রতিগ্রহ," স্বার্থপূর্তির অধীন। কামনার সম্বন্ধে তত্বদর্শনের ব্যাখ্যার জন্য দেখো যাজ্ঞবল্ক্য ও মৈত্রেয়ীর সংবাদ (অধ্যায় ৪। ব্রাহ্মণ ৫। সন্দর্ভ ৬ বৃহদারণ্যক উপনিষদ্)।]
मन्त्र विषय
মনুষ্যঃ পরমেশ্বরভক্ত্যা সুখং লভতে
भाषार्थ
(কঃ) কে (ইদম্) এই [কর্মফল] (কস্মৈ) কাকে (অদাৎ) দিয়েছে/প্রদান করেছে? [এর উত্তর] (কামঃ) মনোরথ [বা কামনা যোগ্য পরমেশ্বর] (কামায়) মনোরথ [বা কামনাকারী জীব] কে (অদাৎ) দিয়েছেন/প্রদান করেছেন। (কামঃ) মনোরথ [বা কমনীয় ঈশ্বর] (দাতা) দাতা এবং (কামঃ) মনোরথ [বা কামনাকারী জীব] (প্রতিগ্রহীতা) হলো গ্রহীতা/গ্ৰহণকারী। (কামঃ) মনোরথ (সমুদ্রম্) সমুদ্র [পার্থিব সমুদ্র বা অন্তরিক্ষে] (আ বিবেশ) প্রবেশ করেছে/প্রবিষ্ট হয়েছে। (কাম) হে মনোরথ ! [বা কমনীয় ঈশ্বর] (ত্বা) তোমাকে (প্রতি গৃহ্ণামি) আমি জীব গ্রহণ করি, (এতৎ) এই [সব কর্ম] (তে) তোমার ॥৭॥
भावार्थ
সংসারে দান-গ্রহণ/আদান-প্রদান অর্থাৎ সমস্ত উপকারী কার্য কামনা দ্বারা সিদ্ধ হয় কামনা থেকেই প্রচেষ্টাপূর্বক মন নিয়োজিত করলে মনুষ্যের সমস্ত কঠিন কার্যকে পরমেশ্বর সুগম করেন॥৭॥ এই মন্ত্র কিছুটা আলাদাভাবে যজুর্বেদ ৭।৪৮ এ আছে। এর অর্থ এখানে শ্রীমদ্ দয়ানন্দ সরস্বতীর ভাষ্যের ভিত্তিতে করা হয়েছে। কো॑ঽদা॒ৎ কস্মা॑ অ॒দাৎ কামো॑ঽদা॒ৎ কামা॑য়াদাৎ। কামো॑ দা॒তা কামঃ॑ প্রতিগ্র॒হীতা কামৈতত্তে॑ ॥ য০ ৭।৪৮ ॥ (কঃ) কে [কর্মফল] (অদাৎ) দিয়েছে/প্রদান করেছেন, এবং [কস্মৈ] কাকে [অদাৎ] দিয়েছে/প্রদান করেছেন। এই দুটি প্রশ্নের উত্তর, (কামঃ) কামনা যোগ্য পরমেশ্বর (অদাৎ) দিয়েছে/প্রদান করেছেন, এবং (কামায়) কামনাকারী জীবকে (অদাৎ) দিয়েছে/প্রদান করেছেন। (কামঃ) যোগীদের কামনা যোগ্য পরমেশ্বর হলেন প্রদানকারী [দাতা]। (কামঃ) কামনাকারী জীব (প্রতিগ্রহীতা) হলো গ্রহীতা/গ্ৰহণকারী। (কাম) হে কামনাকারী জীব ! (তে) তোমার জন্য (এতৎ) এই সবকিছু।
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