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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - शङ्खमणिः, कृशनः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शङ्खमणि सूक्त
    62

    श॒ङ्खेनामी॑वा॒मम॑तिं श॒ङ्खेनो॒त स॒दान्वाः॑। श॒ङ्खो नो॑ वि॒श्वभे॑षजः॒ कृश॑नः पा॒त्वंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒ङ्खेन॑ । अमी॑वाम् । अम॑तिम् । श॒ङ्खेन॑ । उ॒त । स॒दान्वा॑: । श॒ङ्ख: । न॒: । वि॒श्वऽभे॑षज: । कृश॑न: । पा॒तु॒ । अंह॑स: ॥१०.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शङ्खेनामीवाममतिं शङ्खेनोत सदान्वाः। शङ्खो नो विश्वभेषजः कृशनः पात्वंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शङ्खेन । अमीवाम् । अमतिम् । शङ्खेन । उत । सदान्वा: । शङ्ख: । न: । विश्वऽभेषज: । कृशन: । पातु । अंहस: ॥१०.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विघ्नों के हटाने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (शङ्खेन) सबों के विचार करनेवाले परमेश्वर से (अमीवाम्) अपनी पीड़ा और (अमतिम्) कुमति को (उत) और भी (शङ्खेन) सबों के देखनेवाले परमेश्वर से (सदान्वाः) सदा चिल्लानेवाली, यद्वा, दानवों, दुष्टों के साथ रहनेवाली निर्धनता आदि विपत्तियों को [विषहामहे म० २] [हम दबाते हैं म० २]। (शङ्खः) शान्ति देनेवाला, (विश्वभेषजः) सब भय का जीतनेवाला, (कृशनः) सूक्ष्म रचना करनेवाला परमात्मा (नः) हमको (अंहसः) पाप से (पातु) बचावे ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य जगदीश्वर के सर्वोपकारक गुणों को विचारता हुआ प्रयत्न करके दुष्कर्मों से अपनी रक्षा करे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(शङ्खेन) म० १ तथा २ (अमीवाम्) इण्शीभ्यां वन्। उ० १।१५२। इति अम रोगे-वन्। ईडागमः। टाप्। पीडाम्। रोगम्। (अमतिम्) कुमतिम्। अज्ञानम् (उत) अपि च (सदान्वाः) अ० २।१४।१। सदा नोनूयमानाः शब्दायमानाः। यद्वा। सदानवाः, दानवैः सह वर्तमाना दरिद्रतादिविपत्तीः, “विषहामहे”-इत्यनुषज्यते−मा० २ (शङ्खः) म० १। (नः) अस्मान् (विश्वभेषजः) अ० २।४।३। सर्वभयजेता। सर्वौषधः (कृशनः पातु अंहसः) व्याख्यातं म० १ ॥

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    विषय

    प्रभु'विश्वभेषज' हैं

    पदार्थ

    १. (शङ्खेन) = इन्द्रियों की शान्ति देनेवाले प्रभु के द्वारा हम (अमीवाम्) = सब रोगों को अभिभूत करते हैं। अजितेन्द्रियता में ही खान-पान का संयम न रहने से रोग पनपते हैं। इस शङ्क के द्वारा ही (अमतिम्) = सब अनर्थों के मूल अज्ञान को दूर करते हैं (उत) = और (शङ्खेन) = इन्द्रियों की शान्ति देनेवाले प्रभु की उपासना से ही (सदान्वाः) = [सदा नोनूयमानाः] सदा पीड़ित करनेवाली [रुलानेवाली] अलक्ष्मियों को दूर करते हैं। २. यह शल-इन्द्रियों को शान्ति देनेवाले प्रभु (न:) = हमारे लिए (विश्वभेषज:) = सब रोगों के औषध हैं, (कृशन:) = सब क्लेशों को क्षीण करनेवाले हैं। ये प्रभु हमें (अंहसः पातु) = पाप से रक्षित करें।

    भावार्थ

    प्रभु की उपासना हमें रोगों से बचाती है, हमारे अज्ञान को दूर करती है, अलक्ष्मी का विनाश करती है। प्रभु की उपासना सब रोगों का औषध है।


     

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    भाषार्थ

    (शङ्खेन) शङ्ख द्वारा (अमीवाम्) रोग को, (अमतिम्) अज्ञान को, (उत) तथा (शङ्खेन) शङ्ख द्वारा (सदान्वा:) सदा सशब्द पीड़ाओं, चिल्लाहट पैदा करनेवाली पीड़ाओं को [विषहामहे, मन्त्र २] हम पराभुत करते है। (शङ्ख) शङ्ख (न:) हमारे लिए (विश्व-भेषज:) सब रोगों का औषध है। (कृशन:१) हिरण्य सदृश पीतवर्णी शङ्ख (अंहसः) हनन से (नः) हमारी (पातु) रक्षा करे।

    टिप्पणी

    [कृशन: हिरण्यनामैतत् (सायण)। शङ्ख अस्थि-रूप है [मन्त्र ७]। यह "विश्वभेषज" नहीं हो सकता। शङ्खभस्म को विश्व-भेषज कहा जा सकता है। शंख-भस्म नाना रोगों का शामक है, (देखो गन्त्र १ की व्याख्या)।] [१. कृश अर्थात् अल्पमात्रा में उत्पन्न हिरण्य-सदृश पीतवर्णी शङ्ख।]

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    विषय

    शंख के दृष्टान्त से आत्मा का वर्णन।

    भावार्थ

    (शंखेन) शंख=सुख के अभिलाषी या कल्याणस्वरूप उस आत्मा के स्वरूपज्ञान से हम (अमीवाम्) सब रोगों को और (अमतिं) अज्ञान को और उसी (शंखेन) कल्याणमय सुख रूप आत्मा से (सदान्वाः) सदा कष्टदायिनी दुष्ट पीड़ाओं को भी वश कर लेते हैं। वही (शंखः) शंख, आत्मा (नः) हमारे (विश्वभेषजः) सब रोग पीड़ाओं की एकमात्र ओषधि है। वह (कृशनः) सब दुःखों का नाशक, सूक्ष्मतम आत्मा (नः) हमें (अंहसः) पापों से (पातु) बचावे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। शंखमणिशुक्तयो देवताः। १-५ अनुष्टुभः, ६ पथ्यापंक्तिः, ७ पचपदा परानुष्टुप् शक्वरी । सप्तर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Shankha-mani

    Meaning

    By Shankha we challenge and destroy digestive ailments, weakness of mind and memory, and all other life-consuming weaknesses of health. May Shankha which is a universal golden remedy of ill health save us from sin and suffering.

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    Translation

    We banish disease as well as ignorance with (pearl) shell. With (pearl) shell we banish the perpetual bewailers. The (pearl) shell is all-heating panacea for us. May the pearl protect us from evil.

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    Translation

    I destroy the disease by the various kinds of application of conch; I destroy indigestion by the use of Conch-ashes and destroy the other troubles. This Conch is the destroyer of troubles; this is the medicine of various diseases and let it save us from diseases.

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    Translation

    Through soul's force, we subdue disease, ignorance and indigence, our soul is a panacea for all ills. May the subtlest soul preserve us from sins.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(शङ्खेन) म० १ तथा २ (अमीवाम्) इण्शीभ्यां वन्। उ० १।१५२। इति अम रोगे-वन्। ईडागमः। टाप्। पीडाम्। रोगम्। (अमतिम्) कुमतिम्। अज्ञानम् (उत) अपि च (सदान्वाः) अ० २।१४।१। सदा नोनूयमानाः शब्दायमानाः। यद्वा। सदानवाः, दानवैः सह वर्तमाना दरिद्रतादिविपत्तीः, “विषहामहे”-इत्यनुषज्यते−मा० २ (शङ्खः) म० १। (नः) अस्मान् (विश्वभेषजः) अ० २।४।३। सर्वभयजेता। सर्वौषधः (कृशनः पातु अंहसः) व्याख्यातं म० १ ॥

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