अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 10
सूक्त - अथर्वा
देवता - अग्निः
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
सूक्तम् - वृष्टि सूक्त
34
अ॒पाम॒ग्निस्त॒नूभिः॑ संविदा॒नो य ओष॑धीनामधि॒पा ब॒भूव॑। स नो॑ व॒र्षं व॑नुतां जा॒तवे॑दाः प्रा॒णं प्र॒जाभ्यो॑ अ॒मृतं॑ दि॒वस्परि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒पाम् । अ॒ग्नि: । त॒नूभि॑: । स॒म्ऽवि॒दा॒न: । य: । ओष॑धीनाम् । अ॒धि॒ऽपा । ब॒भूव॑ । स: । न॒: । व॒र्षम् । व॒नु॒ता॒म् । जा॒तऽवे॑दा: । प्रा॒णम् । प्र॒ऽजाभ्य॑: । अ॒मृत॑म् । दि॒व: । परि॑॥१५.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
अपामग्निस्तनूभिः संविदानो य ओषधीनामधिपा बभूव। स नो वर्षं वनुतां जातवेदाः प्राणं प्रजाभ्यो अमृतं दिवस्परि ॥
स्वर रहित पद पाठअपाम् । अग्नि: । तनूभि: । सम्ऽविदान: । य: । ओषधीनाम् । अधिऽपा । बभूव । स: । न: । वर्षम् । वनुताम् । जातऽवेदा: । प्राणम् । प्रऽजाभ्य: । अमृतम् । दिव: । परि॥१५.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (1)
विषय
वृष्टि की प्रार्थना और गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(यः) जो (अग्निः) अग्नि [सूर्य ताप] (अपाम्) जलों के (तनूभिः) विस्तारों से (संविदानः) मिलता हुआ (ओषधीनाम्) चावल, यवादियों का (अधिपाः) विशेष पालनकर्ता (बभूव) हुआ है। (सः) वह (जातवेदाः) धनों का उत्पन्न करनेवाला, वा उत्पन्न पदार्थों में सत्तावाला अग्नि (नः प्रजाभ्यः) हम प्रजाओं के लिये (दिवः) अन्तरिक्ष से (परि) सब ओर (वर्षम्) बरसा, (प्राणम्) प्राण और (अमृतम्) अमृत [मरण से बचाव का साधन] (वनुताम्) देवे ॥१०॥
भावार्थ
जैसे सूर्य जल को खैंच लेकर फिर बरसा कर सब प्राणियों का जीवन आधार होता है, वैसे ही मनुष्य विद्या और धन प्राप्त करके संसार का उपकार करें ॥१०॥
टिप्पणी
९−(आपः) जलधाराः (विद्युत्) तडित् (अभ्रम्) उदकपूर्णो मेघः (वर्षम्) वृष्टिजलम् (प्र) प्रकर्षेण। अन्यद् यथा म० ७ ॥
इंग्लिश (1)
Subject
Song of Showers
Meaning
May Agni, Jataveda, all pervasive vitality of life, one with the form and spirit of waters and life forms, which is over all protector and promoter of the life and efficacy of herbs, bless us with nectar showers of water from over the heavens and the firmament as the very breath and energy of life for all people and other forms of life.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−(आपः) जलधाराः (विद्युत्) तडित् (अभ्रम्) उदकपूर्णो मेघः (वर्षम्) वृष्टिजलम् (प्र) प्रकर्षेण। अन्यद् यथा म० ७ ॥
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