अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 34/ मन्त्र 8
इ॒ममो॑द॒नं नि द॑धे ब्राह्म॒णेषु॑ विष्टा॒रिणं॑ लोक॒जितं॑ स्व॒र्गम्। स मे॒ मा क्षे॑ष्ट स्व॒धया॒ पिन्व॑मानो वि॒श्वरू॑पा धे॒नुः का॑म॒दुघा॑ मे अस्तु ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मम् । ओ॒द॒नम् । नि । द॒धे॒ । ब्रा॒ह्म॒णेषु॑ । वि॒ष्टा॒रिण॑म् । लो॒क॒ऽजित॑म् । स्व॒:ऽगम् । स: । मे॒ । मा । क्षे॒ष्ट॒ । स्व॒धया॑ । पिन्व॑मान: । वि॒श्वऽरू॑पा । धे॒नु: । का॒म॒ऽदुघा॑ । मे॒ । अ॒स्तु॒ ॥३४.८॥
स्वर रहित मन्त्र
इममोदनं नि दधे ब्राह्मणेषु विष्टारिणं लोकजितं स्वर्गम्। स मे मा क्षेष्ट स्वधया पिन्वमानो विश्वरूपा धेनुः कामदुघा मे अस्तु ॥
स्वर रहित पद पाठइमम् । ओदनम् । नि । दधे । ब्राह्मणेषु । विष्टारिणम् । लोकऽजितम् । स्व:ऽगम् । स: । मे । मा । क्षेष्ट । स्वधया । पिन्वमान: । विश्वऽरूपा । धेनु: । कामऽदुघा । मे । अस्तु ॥३४.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पदार्थ
(ब्राह्मणेषु) ब्रह्मज्ञानियों के बीच (विष्टारिणम्) विस्तारवाले (लोकजितम्) सब लोक के जीतनेवाले (स्वर्गम्) सुखस्वरूप (इमम्) इस (ओदनम्) सींचने वा बढ़ानेवाला वा अन्नरूप परमात्मा को (नि) निरन्तर (दधे) धरता हूँ। (स्वधया) अपनी धारण शक्ति से (पिन्वमानः) बढ़ता हुआ (सः) वह ईश्वर (मे) मेरे लिये (मा क्षेष्ट) कभी न घटे। (विश्वरूपाः) सब अङ्गों से सिद्ध (धेनुः) यह तृप्त करनेवाली वेदवाणी (मे) मेरे लिये (कामदुघा) उत्तम कामनाओं की पूर्ण करनेवाली (अस्तु) होवे ॥८॥
भावार्थ
ब्रह्मज्ञानी महात्मा लोग परमात्मा की महिमा को साक्षात् करके सुखी होते हैं, सब मनुष्य परमकल्याणी वेदवाणी को प्राप्त कर उस जगदीश्वर के ज्ञान से सदा आनन्द भोगें ॥८॥
टिप्पणी
८−(इमम्) निर्दिष्टम् (ओदनम्) सेचनशीलं प्रवर्धकम् अन्नरूपं वा परमात्मानं (नि) नितराम् (दधे) धरामि (ब्राह्मणेषु) अ० ४।६।१। वेदवेत्तृषु पण्डितेषु (विष्टारिणम्) म० १। विस्तारवन्तम् (लोकजितम्) सर्वलोकजेतारम् (स्वर्गम्) सुष्ठु अर्जनीयं सुखस्वरूपम् (सः) ओदनः (मे) मह्यम् (मा क्षेष्ट) क्षि क्षये, माङि लुङ्। क्षयं मा प्राप्नोतु (स्वधया) स्वधारणशक्त्या। (पिन्वमानः) वर्धमानः (विश्वरूपा) सर्वाङ्गसिद्धा (धेनुः) अ० ३।१०।१। वाङ्नाम-निघ० १।१२। तर्पयित्री वेदवाणी (कामदुघा) दुहः कब्घश्च। पा० ३।२।७०। इति काम+दुह प्रपूरणे-कप्, हस्य घः। उत्तमकामानां दोग्ध्री प्रपूरयित्री। अभीष्टसम्पादयित्री (मे) मह्यम् (अस्तु) ॥
विषय
'विश्वरूपा कामदुधा' धेनुः
पदार्थ
१. प्रभु कहते हैं कि (इमम् ओदनम्) = इस ब्रह्मौदन [ज्ञान- भोजन] को (ब्राह्मणेषु निदधे) = ज्ञानप्रधान जीवनवाले व्यक्तियों में उपस्थित करता हूँ। यह ओदन (विष्टारिणम्) = शक्तियों का विस्तार करनेवाला है, (लोकजितम्) = पुण्यलोक [ब्रह्मलोक] का विजय करनेवाला है, यह (स्वर्गम्) = सुख प्राप्त करानेवाला है। २. (सः) = वह (मे) = मेरा ज्ञान-भोजन (मा क्षेष्ठ) = क्षय को प्रात न हो। (स्वधया पिन्वमान:) = यह मुझे आत्मधारणशक्ति से सींचनेवाला हो। (विश्वरूपा) = सब सत्यविद्याओं का निरूपण करनेवाली यह (धेनु:) = वेदवाणीरूप कामधेनु (मे) = मेरे लिए (कामदुघा) = 'आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, द्रविण व ब्रह्मवर्चस्' रूप सब काम्य वस्तुओं का दोहन करनेवाली (अस्तु) = हो।
भावार्थ
ज्ञानप्रधान जीवनबाला बनकर मैं ज्ञान-भोजन का पात्र बनें। इससे मेरी शक्तियों का विस्तार होगा, उत्तम लोक की प्रासि होगी, प्रकाश व सुख मिलेगा। यह ज्ञान मुझे आत्मधारणशक्ति से युक्त करे और सब काम्य वस्तुओं को प्रास करानेवाला हो।
विशेष
इस ज्ञान के द्वारा सब प्रजाओं का रक्षण करनेवाला 'प्रजापति' अगले सूक्त का ऋषि है। ज्ञान के द्वारा मृत्यु को तैर जाने का इस सूक्त में उल्लेख है -
भाषार्थ
(विष्टारिणम्) जगत् का विस्तार करनेवाले, (लोकजितम्) लोक विजयी, (स्वर्गम्) सुखप्राप्त अर्थात् आनन्दस्वरूप (इमम्) इस (ओदनम्) ओदन नामक परमेश्वर को (ब्राह्मणेषु) ब्रह्मवेत्ताओं तथा वेदवेत्ताओं में (निदधे) मैं निधिरूप में स्थापित करता हूँ: (स्वधया) निज धारणशक्ति द्वारा (पिन्वमानः) सबका धारण करनेवाला, (सः) वह ओदन-नामक परमेश्वर (में) मेरे लिए (मा क्षेष्ट) निजप्रकाश से क्षीण न हो, अर्थात् सदा मुझे निजप्रकाश प्रदान करता रहे। (विश्वरूपा) विश्व को रूप देनेवाली, (कामदुधा) कामनाओं का दोहन करनेवाली परमेश्वर-माता (धेनुः) दुधार गौ के सदृश (मे अस्तु) मेरे लिए हो।
टिप्पणी
[मन्त्र में ओदन पद द्वारा परमेश्वर का वर्णन हुआ है। सूक्त ३४, मन्त्र ८ में ओदन नामक परमेश्वर का वर्णन कर, सूक्त ३५ के साथ सूक्त ३४ की एकविषयता का प्रदर्शन किया है। सूक्त ३५ में ओदन द्वारा परमेश्वर ही अभिप्रेत है, उसके लिए सूक्त ३५ की व्याख्या देखो, और विशेषरूप में सूक्त ३५ के मन्त्र ६ की व्याख्या। ब्राह्मण अर्थात् वेद तथा ब्रह्म के वेत्ता ही ब्राह्मनिधि को सुरक्षित रख सकते हैं, इस भाव को दर्शाने के लिए 'ब्राह्मणेषु' पद पठित हुआ है। मन्त्र में वेद और ब्रह्म के वेत्ता का परमयोगी द्वारा कथन हुआ है।] [विशेष वक्तव्य-यद्यपि सूक्त ३४ में गृह परिपक्व ओदन का वर्णन हुआ है, और सूक्त ३५ में तपश्चर्या द्वारा परिपक्व परमेश्वर का वर्णन है (मन्त्र १, तपसाऽपचत्), तथापि ओदन पद के समान होने से ओदनत्वरूप में समानविषयता दोनों सूक्तों में विद्यमान है। स्वर्गम्= अथवा इस पद द्वारा यह दर्शाया है कि परमेश्वररूप ओदन की प्राप्ति ही स्वर्ग है, स्वर्गलोक की प्राप्ति है।]
विषय
विष्टारी ओदन, परम प्रजापति की उपासना और फल।
भावार्थ
मैं गृहस्थ (इमं) इस (विष्टारिणं) सर्वव्यापक (स्वर्गं) सुखमय मोक्षरूप (लोकजितं) लोक विजयी (ओदनं) प्रजापति अर्थात् परमेश्वर को (ब्राह्मणेषु) वेदज्ञानियों में (निदधे) प्रदान करता हूं, उपदेश करता हूं। (स्वधया पिन्वमानः) अन्न द्वारा सब प्राणियों को तृप्त करने वाला वह ओदन अर्थात् प्रजापति (मे) मुझ गृहस्थ के लिये (मा क्षेष्ट) नष्ट न हो प्रत्युत (मे) मुझ गृहस्थ के लिये वह प्रजापति अर्थात् परमेष्ठी ब्रह्म (विश्वरूपा धेनुः) सब प्रकार से कामधेनु होकर (कामदुधा) समस्त कामनाओं को पूर्ण करने हारा (अस्तु) हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। ब्रह्मास्यौदनं विष्टारी ओदनं वा देवता। १-३ त्रिष्टुभः। ५ त्र्यवसाना सप्तपदाकृतिः। ६ पञ्चपदातिशक्वरी। ७ भुरिक् शक्वरी, ८ जगती। अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Worship and Self-Surrender
Meaning
This paradisal food and fruit of yajna, expansive, life fulfilling, leading to paradisal bliss, I ordain and enjoin for preparation and yajnic homage to divinity among the lovers of Veda and the universal spirit of existence. May that never diminish for me and never be neglected by me. In stead, itself rising and raising us with its own innate strength and augmented by yajnic offers of fragrant food, may it be for us a universal mother giver of the fulfilment of our cherished desires and noble ambitions.
Translation
I serve to the intellectuals this well swollen odana (cooked rice), winner of world and carrier to the world of happiness. Swelling with abundant supply, may it never exhaust with me. May it be for me a cow having all forms and fulfilling all my desires.
Translation
I distribute in the men having mastery over Vedic Know ledge and speeches, this Odana which is the oblation element of Vistarin which conquers the world and which Provides with the pleasure of Svarga. Let it swelling with the pleasure of Svarga. Let it swelling by its nature not exhaust for me. May the perfect Vedic speech fulfill all my wishes.
Translation
I preach unto the learned, the true nature of the All-pervading, All-joyful, World-controlling God. May He, the Supplier of food to mankind, never forsake me. May this comprehensive, convincing Vedic speech fulfill all my wishes.
Footnote
I: A married man.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(इमम्) निर्दिष्टम् (ओदनम्) सेचनशीलं प्रवर्धकम् अन्नरूपं वा परमात्मानं (नि) नितराम् (दधे) धरामि (ब्राह्मणेषु) अ० ४।६।१। वेदवेत्तृषु पण्डितेषु (विष्टारिणम्) म० १। विस्तारवन्तम् (लोकजितम्) सर्वलोकजेतारम् (स्वर्गम्) सुष्ठु अर्जनीयं सुखस्वरूपम् (सः) ओदनः (मे) मह्यम् (मा क्षेष्ट) क्षि क्षये, माङि लुङ्। क्षयं मा प्राप्नोतु (स्वधया) स्वधारणशक्त्या। (पिन्वमानः) वर्धमानः (विश्वरूपा) सर्वाङ्गसिद्धा (धेनुः) अ० ३।१०।१। वाङ्नाम-निघ० १।१२। तर्पयित्री वेदवाणी (कामदुघा) दुहः कब्घश्च। पा० ३।२।७०। इति काम+दुह प्रपूरणे-कप्, हस्य घः। उत्तमकामानां दोग्ध्री प्रपूरयित्री। अभीष्टसम्पादयित्री (मे) मह्यम् (अस्तु) ॥
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