अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 35/ मन्त्र 5
ऋषिः - प्रजापतिः
देवता - अतिमृत्युः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - मृत्युसंतरण सूक्त
59
यः प्रा॑ण॒दः प्रा॑ण॒दवा॑न्ब॒भूव॒ यस्मै॑ लो॒का घृ॒तव॑न्तः॒ क्षर॑न्ति। ज्योति॑ष्मतीः प्र॒दिशो॒ यस्य॒ सर्वा॒स्तेनौ॑द॒नेनाति॑ तराणि मृ॒त्युम् ॥
स्वर सहित पद पाठय: । प्रा॒ण॒द: । प्रा॒ण॒दऽवा॑न् । ब॒भूव॑ । यस्मै॑ । लो॒का: । घृ॒तऽव॑न्त: । क्षर॑न्ति । ज्योति॑ष्मती: । प्र॒ऽदिश॑: । यस्य॑ । सर्वा॑: । तेन॑ । ओ॒द॒नेन॑ । अति॑ । त॒रा॒णि॒ । मृ॒त्युम् ॥३५.५॥
स्वर रहित मन्त्र
यः प्राणदः प्राणदवान्बभूव यस्मै लोका घृतवन्तः क्षरन्ति। ज्योतिष्मतीः प्रदिशो यस्य सर्वास्तेनौदनेनाति तराणि मृत्युम् ॥
स्वर रहित पद पाठय: । प्राणद: । प्राणदऽवान् । बभूव । यस्मै । लोका: । घृतऽवन्त: । क्षरन्ति । ज्योतिष्मती: । प्रऽदिश: । यस्य । सर्वा: । तेन । ओदनेन । अति । तराणि । मृत्युम् ॥३५.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पदार्थ
(यः) जो परमेश्वर (प्राणदः) प्राण देनेवाला और (प्राणदवान्) प्राणदाताओं [सूर्य पृथिवी वायु आदि] का रखनेवाला (बभूव) हुआ और (यस्मै) जिसके लिये (घृतवन्तः) प्रकाशमान वा सारवान् (लोकाः) सब लोक (क्षरन्ति) बहते हैं। और (यस्य) जिस की ही (सर्वाः) सब (ज्योतिष्मतीः=०-त्यः) तेजोमय (प्रदिशः) बड़ी दिशाएँ हैं। (तेन) उस (ओदनेन) बढ़ानेवाले वा अन्नरूप परमात्मा के साथ... म० १ ॥५॥
भावार्थ
सब लोक-लोकान्तर और सब पदार्थ परमेश्वर के वशवर्ती हैं। उसकी आज्ञा पालन से हम सदा सुखी रहें ॥५॥
टिप्पणी
५−(यः) ओदनः। परमात्मा (प्राणदः) प्राणदाता (प्राणदवान्) प्राणदैः प्राणप्रदैः सूर्यपृथिवीवाय्वादिभिर्युक्तः (बभूव) (यस्मै) परमेश्वराय (लोकाः) दृश्यमानानि भुवनानि (घृतवन्तः) दीप्तिमन्तः। सारवन्तः (क्षरन्ति) स्रवन्ति (ज्योतिष्मतीः) प्रशस्ततेजस्काः। प्रकाशवत्यः (प्रदिशः) प्रकृष्टा दिशाः (यस्य) ओदनस्य सम्बन्धिन्यः सन्ति (सर्वाः) समस्ताः। अन्यत् पूर्ववत्। म० १ ॥
विषय
प्राण+प्रकाश
पदार्थ
१. (यः प्राणदः) = जो ज्ञानरूप ओदन प्राणशक्ति देनेवाला है, (प्राणदवान् बभूव) = जो प्राणशक्ति के तत्त्वों को देनेवाला है-प्राणदोंवाला है। ज्ञान वासना' को दग्ध करके सौम [वीर्य] का रक्षण करता है। इस सोम में ही सब प्राणदायी तत्त्वों का निवास है। (यस्मै) = जिस ज्ञान के लिए (घृतवन्त:) = दीसिवाले (लोकाः) = लोक (क्षरन्ति) = सुत होते हैं, अर्थात् जिसके द्वारा दीसिमय लोकों में जन्म प्राप्त होता है। २. (यस्य) = जिस ज्ञानरूप ओदन की (सर्वाः प्रदिश:) = सब दिशाएँ (ज्योतिष्मती:) = प्रकाशमय होती है, अर्थात् जिस ज्ञान के होने पर जीवन के सब मार्ग प्रकाशमय हो जाते हैं हमें सदा कर्तव्यमार्ग दिखता है, (तेन ओदनेन) = उस ज्ञानरूप भोजन से (मृत्युम) = मृत्यु को (अतिताणि) = तैर जाऊँ।
भावार्थ
ज्ञान वासनाओं को दग्ध करके प्राणशक्ति का रक्षण करता है। ज्ञान से दीप्तिमय लोकों की प्राप्ति होती है। ज्ञान से जीवन में कर्त्तव्यमार्ग दीखता है। इस ज्ञान से कर्तव्यों का पालन करते हुए हम मृत्यु से ऊपर उठे।
भाषार्थ
(यः) जो ओदन-परमेश्वर (प्राणदवान्) प्राणप्रदों का स्वामी हुआ (प्राणप्रदः) प्राणप्रदाता (बभूव) हुआ है, (यस्मै) जिसके लिए (लोकाः) पृथिवी आदि लोक (घृतवन्तः) घृतवाले हुए (क्षरन्ति) क्षरित होते हैं; (यस्य) जिसकी (सर्वाः प्रदिशः ) सब दिशाएँ (ज्योतिष्मती:) ज्योति:-सम्पन्न हैं, (तेन ओदनेन अति तराणि मृत्युम्) उस ओदन द्वारा मृत्यु को मैं तैर जाऊँ।
टिप्पणी
[प्राणदवान्= प्राणद अर्थात् प्राणप्रदा हैं, अग्नि, वायु, सूर्यादि; ओदन इन प्राणप्रदों का स्वामी है, प्राणद +मतुप् और इन द्वारा प्राणप्रदाता हुआ है। घृतवन्तः= इन लोकों से जो शक्तियाँ हमें प्राप्त हो रही हैं वे मानो घृत हैं, घृत के सदृश पुष्टिदायिका हैं। सब प्रदिशाएँ, द्युलोक के तारामण्डलों और सुर्य-चन्द्र द्वारा मानो जगमगा रही हैं; रात्रि में तारामण्डलों और चन्द्र द्वारा और दिन में सूर्य द्वारा।]
विषय
प्रजापति की उपासना से मृत्यु को तरना।
भावार्थ
(यः) जो वह परम शक्ति (प्राणदः) सब को प्राण, जीवन देने वाली है (प्राणद-वान्) प्राण देने वाले वायु, सूर्य, जल आदि दिव्य पदार्थों की स्वामिनी (बभूव) है। (यस्मै) जिसके निमित्त, जिसके बल पर, जिसके शासन से (घृतवन्तः) तेजस्वी, प्रकाशवान् सूर्य आदि (लोकाः) लोक (क्षरन्ति) जीवन रस को भूमण्डल पर फेंक रहे हैं। और (यस्य) जिसके सामर्थ्य से (सर्वाः प्र-दिशः) समस्त दिशाएं (ज्योतिष्मतीः) ज्योतिर्मय नक्षत्र सूर्यों से जगमगा रही हैं, मैं (तेन, ओदनेन, मृत्युम् अतितराणि) उस परम सामर्थ्यमय। परमात्म शक्ति से मौत को पार करूं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिर्ऋषिः। मृत्योरेतिक्रमण देवताः। ३ भुरिक्। ४ जगती, १, २, ५-७ त्रिष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Conquest of Death
Meaning
He that is the life source of the life-givers of existence, in whose service universal regions of life abound in ghrta and shower the nectar of life, whose light of life all quarters of space hold and radiate, by that very spiritual food of Brahma I too would conquer and outlive death and attain to life eternal.
Translation
Which is bestower of life; which contains the life-bestowing element; for which all the worlds drip with clarified butter, with whom all the regions of midspace are illuminated; with that-odana (cooked rice-mess) may I cross over death.
Translation
I, the observer of celibacy conquer mortality or death with this Odana which bestowing life is life-giver, to which the worlds full of light and water flow with their flood and to which belong all the refulgent regions of the heaven.
Translation
Who is breach-giver, and the Lord of life-infusing air, sun and water, under Whose control, the lustrous worlds diffuse life on Earth, under Whose sway, all the regions are full of refulgence, may I with the help of that God overcome death.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(यः) ओदनः। परमात्मा (प्राणदः) प्राणदाता (प्राणदवान्) प्राणदैः प्राणप्रदैः सूर्यपृथिवीवाय्वादिभिर्युक्तः (बभूव) (यस्मै) परमेश्वराय (लोकाः) दृश्यमानानि भुवनानि (घृतवन्तः) दीप्तिमन्तः। सारवन्तः (क्षरन्ति) स्रवन्ति (ज्योतिष्मतीः) प्रशस्ततेजस्काः। प्रकाशवत्यः (प्रदिशः) प्रकृष्टा दिशाः (यस्य) ओदनस्य सम्बन्धिन्यः सन्ति (सर्वाः) समस्ताः। अन्यत् पूर्ववत्। म० १ ॥
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