Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 10 के मन्त्र

मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 10/ मन्त्र 8
    ऋषि: - ब्रह्मा देवता - वास्तोष्पतिः छन्दः - पुरोधृत्यनुष्टुब्गर्भा पराष्टित्र्यवसाना चतुष्पदातिजगती सूक्तम् - आत्मा रक्षा सूक्त
    19

    बृ॑ह॒ता मन॒ उप॑ ह्वये मात॒रिश्व॑ना प्राणापा॒नौ। सूर्या॒च्चक्षु॑र॒न्तरि॑क्षा॒च्छ्रोत्रं॑ पृथि॒व्याः शरी॑रम्। सर॑स्वत्या॒ वाच॒मुप॑ ह्वयामहे मनो॒युजा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृ॒ह॒ता । मन॑: ।उप॑ । ह्व॒ये॒ । मा॒त॒रिश्व॑ना । प्रा॒णा॒पा॒नौ । सूर्या॑त् । चक्षु॑:। अ॒न्तरि॑क्षात् । श्रोत्र॑म् । पृ॒थि॒व्या: । शरी॑रम् । सर॑स्वत्या: । वाच॑म् । उप॑ । ह्व॒या॒म॒हे॒ । म॒न॒:ऽयुजा॑ ॥१०.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहता मन उप ह्वये मातरिश्वना प्राणापानौ। सूर्याच्चक्षुरन्तरिक्षाच्छ्रोत्रं पृथिव्याः शरीरम्। सरस्वत्या वाचमुप ह्वयामहे मनोयुजा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बृहता । मन: ।उप । ह्वये । मातरिश्वना । प्राणापानौ । सूर्यात् । चक्षु:। अन्तरिक्षात् । श्रोत्रम् । पृथिव्या: । शरीरम् । सरस्वत्या: । वाचम् । उप । ह्वयामहे । मन:ऽयुजा ॥१०.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 10; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (2)

    विषय

    ब्रह्म की उत्तमता का उपदेश।

    पदार्थ

    (बृहता) बढ़े हुए ज्ञान के साथ (मनः) मन को, (मातरिश्वना) आकाशगामी वायु के साथ (प्राणापानौ) भीतर और बाहिर जानेवाले श्वास को, (सूर्यात्) सूर्य से (चक्षुः) दृष्टि, (अन्तरिक्षात्) आकाश से (श्रोत्रम्) श्रवणशक्ति, और (पृथिव्याः) पृथिवी से (शरीरम्) शरीर को (उप ह्वये) मैं आदर से माँगता हूँ। (मनोयुजा) मन से जुड़ी हुई (सरस्वत्या) विज्ञानवाली विद्या के साथ (वाचम्) वाणी को (उप) आदर से (ह्वयामहे) हम माँगते हैं ॥८॥

    भावार्थ

    मनुष्य वेदविज्ञान द्वारा वायु, सूर्य, आकाश, और पृथिवी से उत्तम गुणों की प्राप्ति करके शारीरिक और मानसिक बल बढ़ावें ॥८॥ इति द्वितीयोऽनुवाकः ॥

    टिप्पणी

    ८−(बृहता) प्रवृद्धेन ज्ञानेन (मनः) चित्तम् (उप) आदरेण (ह्वये) याचे (मातरिश्वना) श्वन्नुक्षन्पूषन्०। उ० १।१५९। इति मातरि+टुओश्वि गतिवृद्ध्योः−कनिन्। मातरिश्वा वायुर्मातर्यन्तरिक्षे श्वसिति मातर्याश्वनितीति वा−निरु० ७।२६। मातरि मानकर्तरि आकाशे गमनशीलेन वायुना (प्राणापानौ) श्वासप्रश्वासौ (सूर्यात्) आदित्यात् (चक्षुः) दृष्टिम् (अन्तरिक्षात्) आकाशात् (श्रोत्रम्) श्रवणम् (पृथिव्याः) भूमेः (शरीरम्) देहम् (सरस्वत्या) ज्ञानवत्या विद्यया (वाचम्) वाणीम् (उप) (ह्वयामहे) याचामहे (मनोयुजा) मू० ७।५। मनसा युक्त्या ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Strength of Mind and Soul

    Meaning

    I call upon my mind and soul with the infinite potential of cosmic mind and Prajapati, I pray for energy of prana and apana from the winds, eye from the sun, ear from space, and body from the earth for the invincible cover of life. With Brhat Saman, we invoke and pray for the Word of Divinity from Mother Sarasvati, inspirer of mind, intellect and soul with knowledge and the strength and power that flows from knowledge.

    Top