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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 21 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 21/ मन्त्र 11
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - वानस्पत्यो दुन्दुभिः छन्दः - बृहतीगर्भा त्रिष्टुप् सूक्तम् - शत्रुसेनात्रासन सूक्त
    85

    यू॒यमु॒ग्रा म॑रुतः पृश्निमातर॒ इन्द्रे॑ण यु॒जा प्र मृ॑णीत॒ शत्रू॑न्। सोमो॒ राजा॒ वरु॑णो॒ राजा॑ महादे॒व उ॒त मृ॒त्युरिन्द्रः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यू॒यम् । उ॒ग्रा: । म॒रु॒त॒: । पृ॒श्नि॒ऽमा॒त॒र॒: । इन्द्रे॑ण । यु॒जा । प्र । मृ॒णी॒त॒ । शत्रू॑न् । सोम॑:। राजा॑ । वरु॑ण: । राजा॑ । म॒हा॒ऽदे॒व: । उ॒त । मृ॒त्यु: । इन्द्र॑: ॥२१.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यूयमुग्रा मरुतः पृश्निमातर इन्द्रेण युजा प्र मृणीत शत्रून्। सोमो राजा वरुणो राजा महादेव उत मृत्युरिन्द्रः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यूयम् । उग्रा: । मरुत: । पृश्निऽमातर: । इन्द्रेण । युजा । प्र । मृणीत । शत्रून् । सोम:। राजा । वरुण: । राजा । महाऽदेव: । उत । मृत्यु: । इन्द्र: ॥२१.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 21; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रुओं को जीतने को उपदेश।

    पदार्थ

    (पृश्निमातरः) हे छूने योग्य पदार्थों के वा आकाश के नापनेवाले, (उग्राः) प्रचण्ड (मरुतः) शूर लोगो ! (यूयम्) तुम (इन्द्रेण) बड़े ऐश्वर्यवाले सेनापति (युजा) मित्र के साथ (शत्रून्) वैरियों को (प्र मृणीत) मार डालो। (इन्द्रः) वह बड़े ऐश्वर्यवाला सेनापति (सोमः) तत्त्वों का मथन करनेवाला (राजा) प्रकाशमान, (वरुणः) श्रेष्ठ (राजा) राजा (उत) और (मृत्युः) मृत्यु के समान (महादेवः) बड़ा देवता है ॥११॥

    भावार्थ

    महाप्रतापी सेनापति के साथ समस्त शूर सेनादल शत्रुओं को जीत लें ॥११॥

    टिप्पणी

    ११−(यूयम्) (उग्राः) प्रचण्डाः (मरुतः) अ० १।२०।१। ह शूरवीरा देवाः (पृश्निमातरः) अ० ४।२७।२। हे पृश्नीनां स्पर्शनीयानां पदार्थानाम्, अथवा, पृश्नेराकाशस्य मातरो मानकर्तारः (इन्द्रेण) परमैश्वर्यवता सेनापतिना (युजा) मित्रेण (प्र) प्रकर्षेण (मृणीत) मॄ हिंसायाम्, क्र्या०। मारयत (शत्रून्) अरीन् (सोमः) षुञ् अभिषवे−मन्। तत्त्वानां मन्थिता (राजा) प्रकाशमानः (वरुणः) वरणीयः श्रेष्ठः (राजा) शासकः (महादेवः) पूजनीयो देवः (उत) अपि (मृत्युः) मृत्युर्यथा (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सेनापतिः ॥

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    विषय

    राजा-सोमः, वरुणः, इन्द्रः महादेवः मृत्युः

    पदार्थ

    १. हे (मरुतः) = सैनिको! (यूयम्) = तुम (उग्रा:) = तेजस्वी हो, (पृश्निमातरः) = भूमि [पृश्नि] को अपनी माता समझनेवाले हो। (इन्द्रेण युजा) = शत्रुविद्रावक सेनापति के साथ मिलकर (शत्रून् प्रमृणीत) = शत्रुओं को कुचल दो। २. तुम्हारे राष्ट्र का (राजा) = शासक (सोमः) = बड़े सौम्य स्वभाव का व सोम [शक्ति] का पुञ्ज है। वह (राजा) = शासक (वरुण:) = प्रजा के कष्टों का निवारण करनेवाला है (उत) = और (इन्द्रः) = यह शत्रुविद्रावक सेनापति (महादेवः) = महान् विजिगीषु है [दिव् विजिगीषायाम], शत्रुओं को जीतने की कामनावाला है। यह तो शत्रुओं के लिए (साक्षात् मृत्यु:) = मौत ही है।

    भावार्थ

    राष्ट्र के सैनिक मातृभूमि की रक्षा के लिए विजिगीषु व शत्रुओं के लिए मृत्यभूत सेनापति के साथ मिलकर शत्रुओं को कुचलनेवाले हों।

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    भाषार्थ

    (पृश्निमातरः) निज राष्ट्रभूमि को माता जाननेवाले, (उग्राः) उग्र, (मरुतः) मारने में कुशल हे सैनिको ! (यूयम् ) तुम (इन्द्रेण युजा) सम्राट् के सहयोग द्वारा ( शत्रून् ) शत्रुओं को (प्रमृणीत) मारो। (सोमः राजा) सेनाध्यक्ष राजा, (वरुणः राजा) राष्ट्रपति राजा (महादेवः) देवाधिदेव परमेश्वर, (उत) तथा (मृत्युः इन्द्रः) मृत्युरूप सम्राट् [इन सबके सहयोग द्वारा मारो।]

    टिप्पणी

    [पृश्निः= भूमिः (सायण, ऋ० १।२३।१०)। इन्द्र, वरुण= इन्द्रश्च सम्राड् वरुणश्च राजा (यजु:० ८।३७)। सोमः राजा (यजु:० १७।४०), मरुतः (यजु:० १७।४०)। महादेवः (अथर्व १३।४(१)।४)।]

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    विषय

    युद्धविजयी राजा को उपदेश।

    भावार्थ

    हे (उग्रा मरुतः) प्रबल वायुओं के समान मृत्यु के लाने वालो ! हे (पृश्निमातरः) आदित्य अर्थात् सूर्य समान तेजस्वी सेनापति को अपना मुखिया बनाने वाले वीर पुरुषो ! आप लोग (इन्द्रेण) अपने ऐश्वर्यशील सेनापति इन्द्र को (युजा) साथी बनाकर (शत्रून् प्रमृणीत) अपने शत्रुओं को खूब कुचल डालो। दह (राजा सोमः) राजा ‘सोम’ है, वही (वरुणः) वरुण है, (महादेवः इन्द्रः उत मृत्युः) वही महादेव, सबसे बड़ा तेजस्वी, दानी, योद्धा इन्द्र अर्थात् ऐश्वर्यवान् और वही साक्षात् मृत्यु अर्थात् दुःखों से छुड़ाने और शत्रुओं को मारने वाला है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। वानस्पत्यो दुन्दुभिर्देवता। आदित्यादिरूपेण देवप्रार्थना च। १, ४,५ पथ्यापंक्तिः। ६ जगती। ११ बृहतीगर्भा त्रिष्टुप्। १२ त्रिपदा यवमध्या गायत्री। २, ३, ७-१० अनुष्टुभः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War and Victory-the call

    Meaning

    O lustrous warriors, stormy children of the earth, joining Indra, destroy the enemies. Soma lord of peace is the ruler, Varuna, lord of justice is the ruler, Mahadeva, lord supreme, is the ruler, and Indra, lord omnipotent is the ruler, dispenser of death and life.

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    Translation

    O formidable storm-troopers, sons of mother-earth, may you crush the enemies with the resplendent Lord as your ally. The shining (raja) blissful Lord, the shining venerable Lord, the great enlightened one, the death and also the resplendent Lord.

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    Translation

    Let these strong army men whose mother is earth co-operated by the King destroy the enemies. Let shining men of generosity brilliant man of characteristics, the supreme sovereign of the world, death and powerful ruler cooperate us in our venture.

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    Translation

    O mighty warriors, who measure heaven in aerial flights, crush down our foemen, with Commander-in-chief as your supporter! The dignified Commander, is the solver of all intricate military problems, full of splendor, an excellent ruler, and a terrible lord like Death.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ११−(यूयम्) (उग्राः) प्रचण्डाः (मरुतः) अ० १।२०।१। ह शूरवीरा देवाः (पृश्निमातरः) अ० ४।२७।२। हे पृश्नीनां स्पर्शनीयानां पदार्थानाम्, अथवा, पृश्नेराकाशस्य मातरो मानकर्तारः (इन्द्रेण) परमैश्वर्यवता सेनापतिना (युजा) मित्रेण (प्र) प्रकर्षेण (मृणीत) मॄ हिंसायाम्, क्र्या०। मारयत (शत्रून्) अरीन् (सोमः) षुञ् अभिषवे−मन्। तत्त्वानां मन्थिता (राजा) प्रकाशमानः (वरुणः) वरणीयः श्रेष्ठः (राजा) शासकः (महादेवः) पूजनीयो देवः (उत) अपि (मृत्युः) मृत्युर्यथा (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सेनापतिः ॥

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