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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 21 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 21/ मन्त्र 6
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - वानस्पत्यो दुन्दुभिः छन्दः - जगती सूक्तम् - शत्रुसेनात्रासन सूक्त
    65

    यथा॑ श्ये॒नात्प॑त॒त्रिणः॑ संवि॒जन्ते॒ अह॑र्दिवि सिं॒हस्य॑ स्त॒नथो॒र्यथा॑। ए॒वा त्वं दु॑न्दुभे॒ऽमित्रा॑न॒भि क्र॑न्द॒ प्र त्रा॑स॒याथो॑ चि॒त्तानि॑ मोहय ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । श्ये॒नात् । प॒त॒त्रिण॑: । स॒म्ऽवि॒जन्ते॑ । अह॑:ऽदिवि । सिं॒हस्य॑ । स्त॒नथो॑: । यथा॑ । ए॒व । त्वम् । दु॒न्दु॒भे॒ । अ॒मित्रा॑न् । अ॒भि । क्र॒न्द॒ । प्र । त्रा॒स॒य॒ । अथो॒ इति॑ । चि॒त्तानि॑ । मो॒ह॒य॒ ॥२१.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा श्येनात्पतत्रिणः संविजन्ते अहर्दिवि सिंहस्य स्तनथोर्यथा। एवा त्वं दुन्दुभेऽमित्रानभि क्रन्द प्र त्रासयाथो चित्तानि मोहय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । श्येनात् । पतत्रिण: । सम्ऽविजन्ते । अह:ऽदिवि । सिंहस्य । स्तनथो: । यथा । एव । त्वम् । दुन्दुभे । अमित्रान् । अभि । क्रन्द । प्र । त्रासय । अथो इति । चित्तानि । मोहय ॥२१.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 21; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रुओं को जीतने को उपदेश।

    पदार्थ

    (यथा) जैसे (श्येनात्) श्येन [वाज] से (पतत्रिणः) पक्षी (अहर्दिवि) प्रति दिन (संविजन्ते) डर कर भागते हैं, और (यथा) जैसे (सिंहस्य) सिंह की (स्तनथोः) गर्जन से, (एव) वैसे ही (दुन्दुभे) हे दुन्दुभि ! (त्वम्) तू (अमित्रान् अभि) वैरियों पर (क्रन्द) गर्ज, और (प्रत्रासय) डरा दे, (अथो) और भी (चित्तानि) उनके चित्तों को (मोहय) घबड़ा दे ॥६॥

    भावार्थ

    मन्त्र ४ के समान ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(यथा) येन प्रकारेण (श्येनात्) अ० ३।३।३। शीघ्रगतिपक्षिविशेषात् (पतत्रिणः) अ० १।१५।१। पक्षिणः (सं विजन्ते) भयेन चलन्ति (अहर्दिवि) दिने दिने (सिंहस्य) अ० ४।८।७। हिंसकजन्तुविशेषस्य (स्तनयोः) ट्वितोऽथुच्। पा० ३।३।८९। इति स्तन देवशब्दे−अथुच्, बाहुलकात्। गर्जनात्। अन्यत् पूर्ववत् म० ४ ॥

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    विषय

    वृकात् अजावयः, श्येनात् पतत्त्रिण:

    पदार्थ

    १. (यथा) = जैसे (अजा-अवयः) = भेड़-बकरियों (वृकात्) = भेड़िये से (बहु बिभ्यती:) = बहुत डरती हुई (धावन्ति) = भाग खड़ी होती है, (एव) = इसीप्रकार हे (दुन्दुभे) = युद्धवाद्य! (त्वम्) = तू (अमित्रान् अभिक्रन्द) = शत्रुओं पर गर्जना कर (प्रत्रासय) = उन्हें भयभीत कर दे, (अथ उ चित्तानि मोहय) = और उनके चित्तों को मूढ बना डाल । २. (यथा) = जैसे (श्येनात्) = बाजपक्षी से (पतत्रिण:) = पक्षी संविजन्ते भयभीत होकर उड़ जाते हैं और (यथा) = जैसे (अहर्दिवि) = दिन प्रतिदिन (सिंहस्य स्तनयो:) = सिंह की गर्जना से पशु भय-सञ्चलित हो जाते हैं, (एव) = उसी प्रकार हे (दुन्दुभे) = युद्धवाद्य ! (त्वम्) = तू (अमित्रान् अभिक्रन्द) = शत्रुओं पर गरज उठ, (प्रत्रासय) = उन्हें भयभीत कर दे (अथ उ) = और निश्चय से (चित्तानि मोहय) = उनके चित्तों को मूढ बना डाल।

    भावार्थ

    युद्धवाद्य के बजने पर शत्रु इसप्रकार भय-सञ्चलित हो जाएँ जैसे भेड़िये से भेड़-बकरियाँ, बाज़ से पक्षी व शेर की गर्जना से पशु भाग खड़े होते हैं।

     

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    भाषार्थ

    (यथा) जिस प्रकार (अहर्दिवि) दिन के प्रकाश में (पतत्रिणः) पक्षी (श्येनात्) वाजपक्षी से (सं विजन्ते) भय करते हैं, (यथा) जिस प्रकार (सिंहस्य स्तनथोः) शेर की गर्जना से [पशु भय करते हैं], (एवा) इस प्रकार, ( दुन्दुभे) हे दुन्दुभि ! (त्वम् ) तू (अमित्रान् अभि) शत्रुओं के संमुख ( क्रन्द) गर्ज, (प्रत्रासय) उन्हें खूब उद्विग्न कर, (अथो) तथा (चित्तानि ) उनके चित्तों को मोहय [कर्तव्याकर्तव्य के] ज्ञान से रहित कर।

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    विषय

    युद्धविजयी राजा को उपदेश।

    भावार्थ

    (यथा) जिस प्रकार (पतत्रिणः) पक्षिगण (श्येनात्) बाज़ से (सं-विजन्ते) भयभीत होकर व्याकुल हो जाते हैं या (अहर्दिवि) दिनों दिन (यथा) जिस प्रकार पशुगण (सिंहस्य) शेर की (स्तनथोः) दहाड़ से भय से व्याकुल होकर जान लेकर भागते हैं। हे (दुन्दुभे) नक्कारे के समान गर्जनशील वीर ! (एवा त्वं अमित्रान् अभिक्रन्द) उसी प्रकार तू अपने शत्रुओं तक अपनी गर्जना सुना। (प्र त्रासय, अथो चित्तानि मोहय) उनको खूब भयभीत कर और उन के चित्तों को मूढ़ कर दे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। वानस्पत्यो दुन्दुभिर्देवता। आदित्यादिरूपेण देवप्रार्थना च। १, ४,५ पथ्यापंक्तिः। ६ जगती। ११ बृहतीगर्भा त्रिष्टुप्। १२ त्रिपदा यवमध्या गायत्री। २, ३, ७-१० अनुष्टुभः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War and Victory-the call

    Meaning

    Just as birds shake with fear from the eagle, and animals day in and day out fear the lion’s roar, so, O call of the drum, roar and resound to the enemies, frighten their mind and paralyse their will.

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    Translation

    As the birds fly away in terror from a hawk day by day, as from a lion’s roar, even so, O drum, may you roar towards the enemies, frighten them thoroughly and then confuse their minds.

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    Translation

    Let this war-drum roar loudly against enemies, cause fear to them and create perplexity in their thoughts as the birds in the sky day by day fly in great feat from the roaring lion.

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    Translation

    As birds of air, day after day, fly in a wild terror from the hawk, as from a roaring lion's voice, even so do thou, O Drum or a hero, roar out against our foes to frighten them, and then bewilder thou their thoughts.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(यथा) येन प्रकारेण (श्येनात्) अ० ३।३।३। शीघ्रगतिपक्षिविशेषात् (पतत्रिणः) अ० १।१५।१। पक्षिणः (सं विजन्ते) भयेन चलन्ति (अहर्दिवि) दिने दिने (सिंहस्य) अ० ४।८।७। हिंसकजन्तुविशेषस्य (स्तनयोः) ट्वितोऽथुच्। पा० ३।३।८९। इति स्तन देवशब्दे−अथुच्, बाहुलकात्। गर्जनात्। अन्यत् पूर्ववत् म० ४ ॥

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