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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 10
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - तक्मनाशनः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - तक्मनाशन सूक्त
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    यत्त्वं शी॒तोऽथो॑ रू॒रः स॒ह का॒सावे॑पयः। भी॒मास्ते॑ तक्मन्हे॒तय॒स्ताभिः॑ स्म॒ परि॑ वृङ्ग्धि नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । त्वम् । शी॒त: । अथो॒ इति॑ । रू॒र: । स॒ह । का॒सा । अवे॑पय: । भी॒मा: । ते॒ । त॒क्म॒न् । हे॒तय॑: । ताभि॑: । स्म॒ । परि॑ । वृ॒ङ्गि॒ध । न॒: ॥२२.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्त्वं शीतोऽथो रूरः सह कासावेपयः। भीमास्ते तक्मन्हेतयस्ताभिः स्म परि वृङ्ग्धि नः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । त्वम् । शीत: । अथो इति । रूर: । सह । कासा । अवेपय: । भीमा: । ते । तक्मन् । हेतय: । ताभि: । स्म । परि । वृङ्गिध । न: ॥२२.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 22; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रोग नाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्) जिस कारण (शीतः) शीत (अथो) और (रूरः) क्रूर (त्वम्) तूने (कासा=कासेन) (सह) खाँसी के साथ [हमें] (अवेपयः) कँपा दिया है। (तक्मन्) हे दुःखित जीवन करनेवाले ज्वर ! (ते) तेरी (हेतयः) चोटें (भीमाः) भयानक हैं, (ताभिः) उनसे (नः) हमको (स्म) अवश्य (परि वृङ्ग्धि) छोड़ दे ॥१०॥

    भावार्थ

    मनुष्य यत्नपूर्वक नीरोग रहकर शारीरिक और मानसिक बल बढ़ावें ॥१०॥ (तक्मा) ज्वर विषय का अ० का० १ स–० २५ से मिलान करो ॥

    टिप्पणी

    १०−(यत्) यस्मात् कारणात् (त्वम्) (शीतः) अ० १।२५।४। शीतलः (अथो) अपि च (रूरः) अ० १।२५।४। रुङ् वधे−रक्, दीर्घः। पीडकः (सह) सहितः (कासा) अ० १।१२।३। विभक्तेराकारः। कासेन। रोगविशेषेण (अवेपयः) टुवेपृ कम्पने णिच्−लङ्। कम्पितवानसि (भीमाः) करालाः (ते) तव (तक्मन्) हे ज्वर (हेतयः) हननशक्तयः (ताभिः) हेतिभिः (स्म) अवश्यम् (परि) (वृङ्ग्धि) वृजी वर्जने। परित्यज (नः) अस्मान् ॥

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    विषय

    शीत: ज्वरः

    पदार्थ

    १. हे (तक्मन्) = ज्वर ! (यत् त्वम्) = जो तू (शीत:) = सर्दी लगकर आनेवाला है, (अथो) = अथवा (रूर:) = [अग्निर्वै रूर:-ता० ५.७.१०]सन्ताप करता हुआ आता है अथवा (कासा सह अवेपय:) = खाँसी के साथ हमें कम्पित कर देता है। २. हे ज्वर! (ते हेतयः) = तेरे अस्त्र (भीमा:) =  भंयकर हैं। ताभि: उन सब अस्त्रों से (न:) = हमें (परि वृग्धिः स्म) = छोड़ देनेवाला हो। तेरे अस्त्र हमपर प्रहार करनेवाले न हों।

    भावार्थ

    ज्वर हमें अपने सर्दी, गर्मी, खाँसी आदि भयंकर अस्त्रों से आहत करनेवाला न हो।

     

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    भाषार्थ

    (यत्) जो (त्वम्) तू [ हे तक्मन्!] (शीत:) शीतरूप है, (अथो) तथा (रूरः) गर्मरूप है, और (कासा, सह) खाँसी के साथ (अवेपयः) तूने कम्पित कर दिया है, (तक्मन्) हे तक्मा-ज्वर (ते) तेरे (हेतयः) अस्त्र (भीमा:) भयानक हैं, (ताभिः) उन अस्त्रों के साथ तू (न:) हमें (परिवृङ्ग्धी) पूर्णतया परित्यक्त कर दे।

    टिप्पणी

    [रूर:=रक्ष। या हिंसावाला, जीवनापहारी; रुङ् रेषणे (भ्वादिः) रेषणम्=हिंसा।]

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    विषय

    ज्वर का निदान और चिकित्सा।

    भावार्थ

    (यत्) जब (त्वं शीतः) तू शीत है, सर्दी देकर आता है (अथो रूरः) तब अधिक पीड़ादायक या तापदायक होता है। और (कासा सह) खांसी के साथ तू शरीर को (अवेपयः) कंपा डालता है। हे (तक्मन्) ज्वर ! (ते हेतयः) तेरे शस्त्र (भीमाः) बड़े भयानक हैं। (ताभिः) उनसे (नः) हमें (परि वृङ्धि स्म) बचाये रख।

    टिप्पणी

    अग्निर्वैरूरः। तां० ७। ५। १०॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वङ्गिरसो ऋषयः। तक्मनाशनो देवता। १, २ त्रिष्टुभौ। (१ भुरिक्) ५ विराट् पथ्याबृहती। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cure of Fever

    Meaning

    When it comes with cold and shivering, with pain such as headache, or with cough and shivers, then the attack of fever is really severe. Better it is kept away from us.

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    Translation

    You, that come with shivering, or with aching, and that shake the patient with cough, O fever, terrible are your weapons; with them may you keep away from us.

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    Translation

    This fever is sometimes due to cold, sometimes due to heat, it creates cough and trembles the body. Its attacks are very dreadful. Let it be away from us.

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    Translation

    Since thou now cold, now burning hot, with cough besides, hast made us shake, terrible, Fever are thy darts: forbear to injure us with these.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(यत्) यस्मात् कारणात् (त्वम्) (शीतः) अ० १।२५।४। शीतलः (अथो) अपि च (रूरः) अ० १।२५।४। रुङ् वधे−रक्, दीर्घः। पीडकः (सह) सहितः (कासा) अ० १।१२।३। विभक्तेराकारः। कासेन। रोगविशेषेण (अवेपयः) टुवेपृ कम्पने णिच्−लङ्। कम्पितवानसि (भीमाः) करालाः (ते) तव (तक्मन्) हे ज्वर (हेतयः) हननशक्तयः (ताभिः) हेतिभिः (स्म) अवश्यम् (परि) (वृङ्ग्धि) वृजी वर्जने। परित्यज (नः) अस्मान् ॥

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