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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 9
    ऋषिः - अथर्वा देवता - इन्द्रः छन्दः - षट्पदा द्व्यनुष्टुब्गर्भा जगती सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    68

    अत्रै॑नानिन्द्र वृत्रहन्नु॒ग्रो मर्म॑णि विध्य। अत्रै॒वैना॑न॒भि ति॒ष्ठेन्द्र॑ मे॒द्यहं तव॑। अनु॑ त्वे॒न्द्रा र॑भामहे॒ स्याम॑ सुम॒तौ तव॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अत्र॑ । ए॒ना॒न् । इ॒न्द्र॒ । वृ॒त्र॒ऽह॒न् । उ॒ग्र: । मर्म॑णि । वि॒ध्य॒ । अत्र॑ । ए॒व । ए॒ना॒न् । अ॒भि । ति॒ष्ठ॒ । इन्द्र॑ । मे॒दी । अ॒हम् । तव॑ । अनु॑ । त्वा॒ । इ॒न्द्र॒ । आ । र॒भा॒म॒हे॒ । स्याम॑ । सु॒ऽम॒तौ । तव॑ ॥८.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अत्रैनानिन्द्र वृत्रहन्नुग्रो मर्मणि विध्य। अत्रैवैनानभि तिष्ठेन्द्र मेद्यहं तव। अनु त्वेन्द्रा रभामहे स्याम सुमतौ तव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अत्र । एनान् । इन्द्र । वृत्रऽहन् । उग्र: । मर्मणि । विध्य । अत्र । एव । एनान् । अभि । तिष्ठ । इन्द्र । मेदी । अहम् । तव । अनु । त्वा । इन्द्र । आ । रभामहे । स्याम । सुऽमतौ । तव ॥८.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 8; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के धर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (अत्र) यहाँ (वृत्रहन्) हे अन्धकारनाशक (इन्द्र) हे बड़े ऐश्वर्यवाले राजन् ! (उग्रः) तेजस्वी तू (एनान्) इन लोगों को (मर्मणि) मर्मस्थान में (विध्य) छेद। (इन्द्र) हे परम ऐश्वर्यवाले राजन् ! (अत्र एव) यहाँ पर ही (एनान्) इन को (अभितिष्ठ) दबा ले। (अहम्) मैं (तव) तेरा (मेदी) स्नेही हूँ। (इन्द्र) हे परम ऐश्वर्यवान् राजन् ! (त्वा अनु) तेरे पीछे-पीछे (आरभामहे) हम आरम्भ करते हैं। (तव) तेरी (सुमतौ) सुमति में (स्याम) हम रहें ॥९॥

    भावार्थ

    राजा दुष्टों का सर्वथा नाश करके प्रजापालन करे ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(अत्र) अस्मिन् स्थाने (एनान्) शत्रून् (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् ! (वृत्रहन्) अन्धकारनाशक (उग्रः) तेजस्वी (मर्मणि) मृङ् प्राणत्यागे-मनिन्। सन्धिस्थाने। जीवस्थाने (विध्य) ताडय (अत्र) (एव) (एनान्) (अभि तिष्ठ) अभिभव। पराजय (इन्द्र) (मेदी) स्नेही (अहम्) प्रजागणः (तव) (अनु) अनुलक्ष्य (इन्द्र) (आरभामहे) रभ औत्सुक्ये। उत्सुका भवामः (स्याम) भवेम। निवासाम (सुमतौ) दयाबुद्धौ (तव) ॥

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    विषय

    प्रभु की सहायता से काम आदि शत्रुओं का विनाश

    पदार्थ

    १. प्रभु कहते हैं कि (अत्र) = यहाँ-इसी जीवन में (एनान्) = इन शत्रुओं को हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष! (वृत्रहन्) = इन वासनाओं को विनष्ट करनेवाले पुरुष! तू (मर्मणि विध्य) = मर्मस्थलों में विद्ध करनेवाला हो। (अत्र एव) = यहाँ, इस जीवकाल में ही (एनान् अभितिष्ठ) = इन्हें पादाक्रान्त कर। हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष | (अहम्) = मैं [प्रभु] तव (मेदी) = तुझ जितेन्द्रिय पुरुष का स्नेही बनता हूँ। प्रभु जितेन्द्रिय के ही मित्र होते हैं। २. एक जितेन्द्रिय पुरुष उत्तर देता है कि हे (इन्द्र) = हमारे शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो! हम (त्वा अनु आरभामहे) = आपके पीछे-पीछे ही आपकी सहायता से ही इस शत्रु-विनाश के कार्य को प्रारम्भ करते हैं। हम सदा तव-आपकी सुमतौ स्याम-कल्याणी मति में हों।

    भावार्थ

    प्रभु का आदेश है कि हम इस जीवन में काम-क्रोध आदि शत्रुओं का पराभव करने के लिए यत्नशील हों, अत: हम प्रभु की सहायता से इन्हें परास्त करनेवाले बनें।

    विशेष

    सब शत्रुओं का पराभव करके यह 'ब्रह्म' का सच्चा पुत्र 'ब्रह्मा' बनता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है।

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    भाषार्थ

    (वृत्रहन् इन्द्र) घेरा डालनेवालों का हनन करनेवाले हे सम्राट् ! (उग्रः) उग्र होकर, (अत्र) इस युद्धस्थल में (एनान् ) इन घेरा डालनेवालों को (मर्मणि) मर्मों में (विध्य) बींध। (इन्द्र) हे सम्राट् ! (अत्र एव ) यहां ही (एनान्, अभि तिष्ठ) इन्हें कुचल दे, ( अहम् ) मैं मुख्यसेनापति ( तव) तेरा (मेदी) स्नेही [सेरा सहायक] हूं। ( इन्द्र) हे सम्राट् ! (त्वा अनु) तेरी आज्ञानुसार ही (आरभामहे) हम सब युद्धारम्भ करते हैं, (तव) तेरी (सुमतौ) सुमति में ही ( स्याम) हम सैनिक आदि हों, रहें।

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    विषय

    सैनिकों और सेनापतियों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    अपराधकारी कैदियों से व्यवहार—हे (वृत्रहन्) विघ्नकारियों के विनाशकारी इन्द्र ! राजन् ! (अत्र) इस संग्राम के अवसर पर (एनान्) इनको तू (उग्रः) बलवान्, भयकारी होकर (मर्मणि विध्य) मर्म देशों में प्रहार कर। और (अत्र) इसी अवसर पर (एनान्) इन शत्रुओं पर (अभि तिष्ठ) आक्रमण कर। क्योंकि (अहं मेदी तव) मैं तेरा मित्र हूँ। हे इन्द्र ! हम सब (त्वा अनु (रभामहे) तेरी आज्ञानुसार कार्य करते हैं इसलिये (तत्र सुमतौ स्याम) तेरी शुभ मति के अधीन होकर हम रहें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। १, २ अग्निर्देवता। ३ विश्वेदेवाः। ४-९ इन्द्रः। २ त्र्यवसाना षट्-पदा जगती। ३, ४ भुरिक् पथ्यापंक्तिः। ६ प्रस्तार पंक्तिः। द्वयुष्णिक् गर्भा पथ्यापंक्तिः। ९ त्र्यवसाना षट्पदा द्व्युष्णिग्गर्भा जगती। नवर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Elimination of Enemies

    Meaning

    Here then, O destroyer of evil and enmity, Indra, blazing lustrous hero, fix them unto the vitals of their heart. Here and thus, O ruler and warrior, rule over them. We are your friends. Let us all love and support you. Let us all enjoy your favour and good will.

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    Translation

    O resplendent Lord, slayer of evil, may you, the fierce, pierce these (enemies) through their vitals. May you defeat them just here, O resplendent Lord. Your ally am I. We act according to you, O resplendent Lord. May we be in your good grace.

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    Translation

    O King, the killer of enemies! you are mighty one and pierce the vital parts of those enemies hero. O King! here even here attack them and I am your friend. O King! we act according to your command and may we subordinate ourselves to your guidance and order.

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    Translation

    O foe-slaying king, with thy strength, pierce thou their vital parts on the battlefield. Here, even here, attack them, O King. Thine own dear friend am I. O King, we closely follow thee. May we be in thy favoring grace.

    Footnote

    ‘Their’ refers to the foes. ‘Here’ refers to the battlefield. ‘I’ refers to the general of the army. ‘We’ refers to the officials and soldiers of the army.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(अत्र) अस्मिन् स्थाने (एनान्) शत्रून् (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् राजन् ! (वृत्रहन्) अन्धकारनाशक (उग्रः) तेजस्वी (मर्मणि) मृङ् प्राणत्यागे-मनिन्। सन्धिस्थाने। जीवस्थाने (विध्य) ताडय (अत्र) (एव) (एनान्) (अभि तिष्ठ) अभिभव। पराजय (इन्द्र) (मेदी) स्नेही (अहम्) प्रजागणः (तव) (अनु) अनुलक्ष्य (इन्द्र) (आरभामहे) रभ औत्सुक्ये। उत्सुका भवामः (स्याम) भवेम। निवासाम (सुमतौ) दयाबुद्धौ (तव) ॥

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