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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 1 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 1/ मन्त्र 1
    ऋषि: - अथर्वा देवता - सविता छन्दः - त्रिपदा पिपीलिकमध्या साम्नी जगती सूक्तम् - अमृतप्रदाता सूक्त
    69

    दो॒षो गा॑य बृ॒हद्गा॑य द्यु॒मद्धे॑ह्याथ॑र्वण। स्तु॒हि दे॒वं स॑वि॒तार॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दो॒षो इत‍ि॑ । गा॒य॒ । बृ॒हत् । गा॒य॒ । द्यु॒ऽमत् । धे॒हि॒ । आथ॑र्वण । स्तु॒हि । दे॒वम् । स॒वि॒तार॑म् ॥१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दोषो गाय बृहद्गाय द्युमद्धेह्याथर्वण। स्तुहि देवं सवितारम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दोषो इत‍ि । गाय । बृहत् । गाय । द्युऽमत् । धेहि । आथर्वण । स्तुहि । देवम् । सवितारम् ॥१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (2)

    विषय

    ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (आथर्वण) हे निश्चल ब्रह्म के जाननेवाले महर्षि ! (देवम्) प्रकाशस्वरूप (सवितारम्) सब के प्रेरक परमात्मा को (दोषो) रात्रि में भी (गाय) गा, (बृहत्) विशाल रूप से (गाय) गा, (द्युमत्) स्पष्ट रीति से (धेहि) धारण कर और (स्तुहि) बड़ाई कर ॥१॥

    भावार्थ

    विद्वान् पुरुष परमेश्वर के गुणों को हृदय में धारण करके संसार में सदा प्रकाशित करे ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(दोषो) दोषा+उ। रात्रावपि। अहोरात्रे, इत्यर्थः (गाय) उच्चारय (बृहत्) विशालरूपेण (गाय) (द्युमत्) यथा तथा, प्रकाशेन (धेहि) धारय हृदये (आथर्वण) अथर्वा व्याख्यातः−अ० ४।१।७। तदधीते तद्वेद। पा० ४।२।५९। इति अर्थवन्−अण्। अन्। पा० ६।४।६७। इति टिलोपाभावः। अथर्वाणं निश्चलस्वभावं परमात्मानं यो महर्षिर्वेद जानाति तत्सम्बुद्धौ (स्तुहि) प्रशंस (देवम्) प्रकाशस्वरूपम् (सवितारम्) षू प्रेरणे−तृच्। सर्वप्रेरकं जगदीश्वरम् ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Lord of Immortality

    Meaning

    Atharva, O sage of stable mind, sing and celebrate the glory of Savita, lord of life. Sing of him night and day. Sing of him spontaneously and profusely. Hold the refulgent divine at heart. Worship the lord of light and life and exalt him.

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