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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 108 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 108/ मन्त्र 3
    ऋषिः - शौनक् देवता - मेधा छन्दः - पथ्याबृहती सूक्तम् - मेधावर्धन सूक्त
    68

    यां मे॒धामृ॒भवो॑ वि॒दुर्यां मे॒धामसु॑रा वि॒दुः। ऋष॑यो भ॒द्रां मे॒धां यां वि॒दुस्तां मय्या वे॑शयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याम् । मे॒धाम् । ऋ॒भव॑: । वि॒दु: । याम् ।मे॒धाम् । असु॑रा: । वि॒दु: । ऋष॑य:। भ॒द्राम् । मे॒धाम् । याम् । वि॒दु: । ताम् । मयि॑ । आ । वे॒श॒या॒म॒सि॒ ॥१०८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यां मेधामृभवो विदुर्यां मेधामसुरा विदुः। ऋषयो भद्रां मेधां यां विदुस्तां मय्या वेशयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    याम् । मेधाम् । ऋभव: । विदु: । याम् ।मेधाम् । असुरा: । विदु: । ऋषय:। भद्राम् । मेधाम् । याम् । विदु: । ताम् । मयि । आ । वेशयामसि ॥१०८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 108; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    बुद्धि और धन की प्राप्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (याम्) जिस (मेधाम्) शुभगुण धारण करनेवाली बुद्धि वा सम्पत्ति को (ऋभवः) सत्य के साथ चमकनेवाले महात्मा (विदुः) जानते हैं, (याम्) जिस (मेधाम्) धारणावती बुद्धि वा सम्पत्ति को (असुराः) बड़े बुद्धिमान् पुरुष (विदुः) जानते हैं। (याम्) जिस (भद्राम्) कल्याण करनेवाली (मेधाम्) निश्चल बुद्धि वा सम्पत्ति को (ऋषयः) ऋषि लोग (विदुः) जानते हैं (ताम्) उसी को (मयि) अपने में (आ) सब ओर से (वेशयामसि) हम स्थापित करते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य बड़े आप्त विज्ञानी पुरुषों के समान निश्चल बुद्धि और सम्पत्ति प्राप्त करके धर्म के आचरण के साथ सदा उपकार करें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(याम्) (मेधाम्) म० १। निश्चलां बुद्धिं सम्पत्तिं वा (ऋभवः) अ० १।२।३। ऋतेन भान्तीति वा−निरु० ११।१५। (विदुः) विदन्ति। जानन्ति (असुराः) प्रज्ञावन्तः−निरु० १०।३४। (ऋषयः) सन्मार्गदर्शकाः (भद्राम्) कल्याणीम्। वेदशास्त्रादिविषयाम् (मयि) आत्मनि (आ) समन्तात् (वेशयामसि) प्रवेशयामः। स्थापयामः ॥

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    विषय

    ऋभवः, असुराः, ऋषयः [वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण]

    पदार्थ

    १. (यां मेधाम्) = जिस मेधाबुद्धि को (ऋभव:) = [उरु भान्ति] विविध कला-कौशल के ज्ञान से सुशोभित शिल्पी (विदु:) जानते हैं, (यां मेधाम्) = जिस मेधाबुद्धि को (असराः) = प्राणसाधना करनेवाले [असु-प्राण] और प्राणसाधना द्वारा शत्रुओं को परे फेंकने [अस् क्षेपणे] (विदुः) = जानते हैं और (याम्) = जिस (भद्राम) = कल्याणी व स्तुत्य (मेधाम्) = मेधाबुद्धि को (ऋषयः) = तत्त्वद्रष्टा लोग (विदुः) = जानते हैं, (ताम्) = उस मेधा को (मयि) = हम सब अपने में (आवेशयामसि) = सब प्रकार से स्थापित करते हैं।

    भावार्थ

    बुद्धि ही हमें सब कलाओं में प्रवीण करती है [ऋभव:]। यही हमें शत्रुओं को विनष्ट करने की शक्ति प्रदान करती है [असुराः], इसी से हम तत्त्वद्रष्टा बनकर कल्याण को सिद्ध कर पाते हैं [ऋषयः]। इसे प्राप्त करने के लिए हम यत्नशील हों।

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    भाषार्थ

    (याम् मेधाम्) जिस मेधा को (ऋभव:) ऋभु लोग (विदुः) जानते हैं, (याम् मेधाम्) जिस मेधा को (असुरा) असुर (विदुः) जानते हैं, (याम्) जिस (भद्राम्) सुखकारिणी और कल्याणी (मेधाम्) मेधा को (ऋषयः) मन्त्रद्रष्टा या मन्त्रार्थ द्रष्टा (विदुः) जानते हैं, (ताम्) उस वेदानुमोदित मेधा को (मयि) मुझ में (आवेशयामसि) हम प्रविष्ट करते हैं।

    टिप्पणी

    [समूह में बैठे मेधार्थी हैं (आवेशयामसि); उन में से प्रत्येक (मयि) मेदावेशन का इच्छुक है। ऋभवः = शिल्पी लोग, तथा सत्यानुष्ठान की ज्योति द्वारा प्रकाशमान् महात्मा। यथा 'ऋभव उरु भान्तीति वा। ऋतेन भान्तीति वा। ऋतेन भवन्तीति वा" (निरुक्त ११।२।१५)। असुरा: = "असुः प्राणनाम, तेन तद्वन्तः"। प्राणवाले अर्थात् बलिष्ठ (निरुक्त ३।२।८), पञ्चजनाः की व्याख्या में। तथा "असुः प्रज्ञानाम" (निघं० ३।९); असुराः प्रज्ञावन्तः।]

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    विषय

    मेधा का वर्णन।

    भावार्थ

    (याम्) जिस (मेधाम्) मेधा बुद्धि का (ऋभवः) ऋत अर्थात् सत्यज्ञान और वेद से प्रकाशित होने वाले विद्वान् और शिल्पी लोग (विदुः) लाभ करते हैं, और (यां मेधाम्) जिस मेधा बुद्धि का (असुराः विदुः) प्राणविद्या के जानने वाले, प्राणायाम के अभ्यासी लाभ करते हैं, और (यां भद्रां मेधाम्) जिस कल्याणकारिणी, सुखप्रद मेधा बुद्धि को (ऋषयः) मन्त्रार्थ के साक्षात् करने वाले ऋषिगण (विदुः) प्राप्त करते हैं, (ताम्) उसको हम (मयि) अपने आत्मा में (आ वेशयामसि) धारण करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शौनक ऋषिः। मेधा देवता। ४ अग्निर्देवता। १, ४, ५ अनुष्टुप्, २ उरोबृहती, ३ पथ्या वृहती। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Intelligence

    Meaning

    That divine intelligence which the Rbhus, divine artists, knew and had, that which the Asuras, vibrant men of energy and knowledge, knew and had, that excellent and auspicious intelligence which the Rshis knew, valued and enjoyed, that same we all invoke, inculcate and receive into ourselves.

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    Translation

    The understanding, which the technicians (rbhu) have acquired, the understanding, which the life-enjoyers (life-asuras) have acquired, and the benign understanding, which the seers have acquired, that may you induct into me.

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    Translation

    We secure into me that knowledge which is attained by the men of perspicacious effulgence, that which is attained the men of spiritual attainments and that good one which is attained by the seers.

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    Translation

    That excellent intelligence, which the learned know, and the yogis know, intelligence which the sages, we cause to enter our soul.

    Footnote

    Asurā: Controllers of breath, The yogis who practice Prānāyama: त्र्प्र vital breaths.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(याम्) (मेधाम्) म० १। निश्चलां बुद्धिं सम्पत्तिं वा (ऋभवः) अ० १।२।३। ऋतेन भान्तीति वा−निरु० ११।१५। (विदुः) विदन्ति। जानन्ति (असुराः) प्रज्ञावन्तः−निरु० १०।३४। (ऋषयः) सन्मार्गदर्शकाः (भद्राम्) कल्याणीम्। वेदशास्त्रादिविषयाम् (मयि) आत्मनि (आ) समन्तात् (वेशयामसि) प्रवेशयामः। स्थापयामः ॥

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