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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 13/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मृत्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - मृत्युञ्जय सूक्त
    56

    नम॑स्ते अधिवा॒काय॑ परावा॒काय॑ ते॒ नमः॑। सु॑म॒त्यै मृ॑त्यो ते॒ नमो॑ दुर्म॒त्यै त॑ इ॒दं नमः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नम॑: । ते॒ । अ॒धि॒ऽवा॒काय॑ । प॒रा॒ऽवा॒काय॑ । ते॒ । नम॑: । सु॒ऽम॒त्यै । मृ॒त्यो॒ इति॑ । ते॒ । नम॑: । दु॒:ऽम॒त्यै । ते॒ । इ॒दम्। नम॑: ॥१३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमस्ते अधिवाकाय परावाकाय ते नमः। सुमत्यै मृत्यो ते नमो दुर्मत्यै त इदं नमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नम: । ते । अधिऽवाकाय । पराऽवाकाय । ते । नम: । सुऽमत्यै । मृत्यो इति । ते । नम: । दु:ऽमत्यै । ते । इदम्। नम: ॥१३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मृत्यु की प्रबलता का उपदेश।

    पदार्थ

    (ते) तेरे (अधिवाकाय) अनुग्रह वचन को (नमः) नमस्कार और (ते) तेरे (परावाकाय) पराजय वचन को (नमः) नमस्कार है। (मृत्यो) हे मृत्यु ! (ते) तेरी (सुमत्यै) सुमति को (नमः) नमस्कार है और (ते) तेरी (दुर्मत्यै) दुर्मति को (इदम्) यह (नमः) नमस्कार है ॥२॥

    भावार्थ

    अनुग्रहकारी, पराजयकारी, सुमतिवाले और दुर्मतिवाले सब ही मृत्युवश हैं। मनुष्यों को सदा धर्मात्मा रहना चाहिये ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(नमः) सत्कारः (ते) तव (अधिवाकाय) वच परिभाषणे−घञ्, कुत्वम्। अनुग्रहवचनाय (परावाकाय) पराभववचनाय (सुमत्यै) शोभनायै बुद्ध्यै (मृत्यो) हे मरण ! (दुर्मत्यै) कठोरायै बुद्ध्यै (इदम्) क्रियमाणम् ॥

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    विषय

    अधिवाक, परावाक, सुमति, दुर्मति

    पदार्थ

    १. हे (मृत्यो) = मृत्यो! (ते) = तेरे कारणभूत (अधिवाकाय) = अनुकूल वचन के लिए हम (नमः) = नमन करते हैं। अनुकूल वचनों का अतिरेक होने से अविवेक उत्पन्न होकर मृत्यु होती है, अत: इनसे बचना ही ठीक है, (ते) = तेरे कारणभूत (परावाकाय) = प्रतिकूल वचनों के लिए (नमः) = नमस्कार हो। प्रतिकूल वचनों से निराशा होकर मृत्यु होती है। २. हे मृत्यो। (ते) = तेरी कारणभूत (सुमत्यै) = सुमति के लिए भी नमः नमस्कार हो। केवल सुमति हमें शरीर के प्रति उदासीन करके मृत्यु की ओर ले-जाती है और (ते) = तेरी कारणभूत (दुर्मत्यै) = दुर्मति के लिए (इदं नम:) = यह नमस्कार हो। दुर्मति तो सदा मृत्यु का कारण बनती ही है।

    भावार्थ

    हर समय अनुकूल वचनों को ही सुननेवाला अविवेकवश मृत्यु का शिकार हो जाता है। प्रतिक्षण प्रतिकूल वचनों का श्रवण हमें निराश करके मार डालता है। सुमति में हम बौद्धिक कार्यों की ओर ही झुककर शरीर का ध्यान नहीं करते और दुर्मति तो सतत विनाश का कारण है ही।

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    भाषार्थ

    (मृत्यो) हे [युद्ध में होने वाली] मृत्यु ! (ते) तेरे [ स्वरूप के] (अधिवाकाय) अधिकृत वक्ता के लिये ( नम: ) नमस्कार हो, (ते ) तेरे (परावाकाय) पराविद्या के वक्ता के लिये ( नमः ) नमस्कार हो । ( ते) तेरे (सुमत्यै) सुमति वाले दूत के लिये (नमः) नमस्कार हो, ( ते) तेरे (दुर्मत्यै) दुर्मति वाले दूत के लिये ( इदम् ) यह ( नम: ) नमस्कार हो ।

    टिप्पणी

    [सायण के अनुसार मन्त्र में "दूतों" का वर्णन है (१३।२)। 'अधिवाक' तो युद्ध न चाहने वाले राष्ट्र का दूत है, जो कि युद्धेच्छु परराष्ट्र में निज दूतावास का अधिकृताधिकारी है, और "परावाक" है युद्धेच्छु पर-राष्ट्र का दूत, जो कि पराविद्या का जानने वाला शान्तिप्रिय राष्ट्र में निज दूतावास का अधिकृताधिकारी है। युद्धकाल में भी इन दूतों पर प्रहार न करना चाहिये, युद्धकाल में भी ये नमस्कार के योग्य हैं, आदर और सम्मान के योग्य हैं। मन्त्र के इस पूर्वार्ध में पुरुष-दूतों का वर्णन हुआ है। मन्त्र के उत्तरार्ध में स्त्रीदूतों का कथन हुआ है। जो स्त्रीदूत शान्तिप्रिय राष्ट्र का है उसे सुमति वाला कहा है, और जो स्त्रीदूत युद्धेच्छु राष्ट्र का है उसे दुर्मतिरूप कहा है। आप्टे कोश में अधिवचनम् का अर्थ है Advocacy । एतदनुसार अधिवाक का अर्थ होगा "Advocate" की योग्यता वाला अधिवक्ता। दूतावासों में दूत Advocates की योग्यता वाले होने चाहिए, यह अभिप्राय है। Ad(अधि) +vocate (वक्ता) ] ।

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    विषय

    मृत्यु और उसके उपाय।

    भावार्थ

    हे (मृत्यो) मृत्यो ! (ते अधि-वाकाय नमः) तेरे विषय में अनुकूल कहे गये ज्ञान को भी हम स्वीकार करते हैं ! (ते परा वाकाय नमः) और मेरे प्रतिकूल तुझे दूर करने के विषय में जो उपदेश हैं उनका भी हम (नमः) ज्ञान करें। हे मृत्यो ! (ते सुमत्यै नामः) तेरी दी सद्बुद्धि को भी आदर से स्वीकार करते हैं और (ते) तेरे कारण उत्पन्न (दुर्मत्यै) दुष्ट मति को भी (इदम् नमः) यह वश करने का साधन है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    स्वस्त्ययनकामोऽथर्वा ऋषिः। मृत्युर्देवता। १-३ अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Mrtyu

    Meaning

    Homage to your word of valediction, homage to the word of malediction, homage to the mind that appreciates you, homage to the mind that reviles and hates you. This word of homage to you, O Death.

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    Translation

    Our homage be to your blessings and to your curses; let our homage be. O death, homage be to your good-will and to your ill-will, let this our homage be. (adhivaka = blessing; paravaka = curse; sumatyai = good will; durmatyai = ill-will)

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    Translation

    My Word of appreciation is due to the plea advanced in favor of this death, my word of appreciation is due to the argument advanced against the death, my appreciation is due to the good instruction caused by this death and my word of appreciation is due to malevolence caused by this death.

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    Translation

    O Death, we fully consider all that is said for thee, we know what is said against thee. We respect thy good will, and subdue thy malevolence!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(नमः) सत्कारः (ते) तव (अधिवाकाय) वच परिभाषणे−घञ्, कुत्वम्। अनुग्रहवचनाय (परावाकाय) पराभववचनाय (सुमत्यै) शोभनायै बुद्ध्यै (मृत्यो) हे मरण ! (दुर्मत्यै) कठोरायै बुद्ध्यै (इदम्) क्रियमाणम् ॥

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