अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 14/ मन्त्र 3
ऋषि: - बभ्रुपिङ्गल
देवता - बलासः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - बलासनाशन सूक्त
27
निर्बला॑से॒तः प्र प॑ताशु॒ङ्गः शि॑शु॒को य॑था। अथो॒ इट॑ इव हाय॒नोऽप॑ द्रा॒ह्यवी॑रहा ॥
स्वर सहित पद पाठनि: । ब॒ला॒स॒ । इ॒त: । प्र । प॒त॒ । आ॒शुं॒ग: । शि॒शु॒क: । य॒था॒ । अथो॒ इति॑ । इट॑:ऽइव । हा॒य॒न: । अप॑ । द्रा॒हि॒ । अवी॑रऽहा ॥१४.३॥
स्वर रहित मन्त्र
निर्बलासेतः प्र पताशुङ्गः शिशुको यथा। अथो इट इव हायनोऽप द्राह्यवीरहा ॥
स्वर रहित पद पाठनि: । बलास । इत: । प्र । पत । आशुंग: । शिशुक: । यथा । अथो इति । इट:ऽइव । हायन: । अप । द्राहि । अवीरऽहा ॥१४.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (2)
विषय
रोग के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(बलास) हे बल घटानेवाले क्षयरोग ! (इतः) यहाँ से (निः=निष्क्रम्य) निकल कर (प्रपत) चला जा, (यथा) जैसे (आशुंगः) शीघ्रगामी (शिशुकः) छोटा बछड़ा। (अथो) और भी (अवीरहा) वीरों का न नाश करनेवाला तू (अप=अपेत्य) हटकर (द्राहि) भाग जा, (इव) जैसे (हायनः) प्रति वर्ष होनेवाला (इटः) घास ॥३॥
भावार्थ
मनुष्यों को रोग और अज्ञान नाश करने में शीघ्रता करनी चाहिये, जिससे वीरों की सदा जय रहे ॥३॥
टिप्पणी
३−(निः) निष्क्रम्य (बलास) हे बलनाशक क्षयरोग (इतः) अस्मात् स्थानात् (प्र) प्रकर्षेण (पत) दूरं गच्छ (आशुंगः) आशु+गमेः−खच्, स च डित्। आशुगामी (शिशुकः) वत्सतरः (यथा) (अथो) अपि च (इटः) इट गतौ−क। घासः (इव) यथा (हायनः) हायन−अर्शआद्यच्। प्रतिवर्षभवः (अप) अपेत्य (द्राहि) द्रा कुत्सायां गतौ। पलायस्व (अवीरहा) वीराणाम् अहन्ता त्वम् ॥
Vishay
…
Padartha
…
Bhavartha
…
English (1)
Subject
Cancer and Consumption
Meaning
Let the consumption go out from here as a bolting foal, and go away without doing any damage to the patient, like withered sedge of yester year.
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