अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वा
देवता - गर्भदृंहणम्, पृथिवी
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गर्भदृंहण सूक्त
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यथे॒यं पृ॑थि॒वी म॒ही दा॒धारे॒मान्वन॒स्पती॑न्। ए॒वा ते॑ ध्रियतां॒ गर्भो॒ अनु॒ सूतुं॒ सवि॑तवे ॥
स्वर सहित पद पाठयथा॑ । इ॒यम् । पृ॒थि॒वी । म॒ही । दा॒धार॑ । इ॒मान् । वन॒स्पती॑न् । ए॒व । ते॒ । ध्रि॒य॒ता॒म् । गर्भ॑: । अनु॑ । सूतु॑म् । सवि॑तवे ॥१७.२॥
स्वर रहित मन्त्र
यथेयं पृथिवी मही दाधारेमान्वनस्पतीन्। एवा ते ध्रियतां गर्भो अनु सूतुं सवितवे ॥
स्वर रहित पद पाठयथा । इयम् । पृथिवी । मही । दाधार । इमान् । वनस्पतीन् । एव । ते । ध्रियताम् । गर्भ: । अनु । सूतुम् । सवितवे ॥१७.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गर्भाधान का उपदेश।
पदार्थ
(यथा) जैसे (इयम्) इस (मही) बड़ी (पृथिवी) पृथिवी ने (इमान्) इन (वनस्पतीन्) सेवा करनेवालों के रक्षक, वृक्ष आदि को (दाधार) धारण किया है (एव) वैसे ही (ते) तेरा... म० १ ॥२॥
टिप्पणी
२−(दाधार) धृतवती (इमान्) परिदृश्यमानान् (वनस्पतीन्) अ० १।१२।३। सेवकानां रक्षकान् वृक्षान्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
अनुसूतं सवितवे
पदार्थ
१. (यथा) = जैसे (इयम्) = यह (मही पृथिवी) = विशाल पृथिवी (भूतानाम्) = सब प्राणियों के (गर्भम्) = मूलभूत बीज को (आदधे) = धारण करती है (एव) = इसीप्रकार हे प्रियतमे! (ते) = तेरा (गर्भ:) = गर्भ घियताम् धारण किया जाए। यह गर्भ (अनु सूतं सवितवे) = पुत्र को अनुकूल समय पर जन्म देने के लिए हो। २.( यथा इयं मही पृथिबी) = जिस प्रकार यह विशाल पृथिवी इमान् वनस्पतीन् दाधार-इन वनस्पतियों को धारण करती है, (एव) = इसीप्रकार ते (गर्भ ध्रियताम्) = तेरा यह गर्भ धारण किया जाए और (अनु सूतुं सवितवे) = पुत्र को अनुकूल समय पर जन्म देनेवाला हो। ३. (यथा इयं मही पृथिवी) = जैसे यह विशाल पृथिवी (पर्वतान् गिरीन्) = इन बड़े पर्वतों और छोटी पहाड़ियों को दाधार-धारण करती है। इसीप्रकार तेरा गर्भ धारण किया जाए और वह अनुकूल समय पर सन्तान को जन्म देनेवाला हो। ४. (यथा इयं मही पृथिवी) = जैसे यह विशाल पृथिवी (विष्ठितं जगत् दाधार) = नाना प्रकार से विभक्त-व्यवस्थित चराचर जगत् को धारण करती है उसी प्रकार तेरा यह गर्भ धारण किया जाए और वह अनुकूल समय पर सन्तान को जन्म देनेवाला हो।
भावार्थ
माता पृथिवी के समान है। पृथिवी की भाँति ही सब भूतों के गर्भ को धारण करती है और अनुकूल समय पर सन्तान को जन्म देती है।
विशेष
अथर्वा ही अगले सूक्त का ऋषि है। इसमें यह 'ईर्ष्या' को एक महान् दोष के रूप में देखता है। माता में ईर्ष्या की वृत्ति गर्भस्थ बालक की मृत्यु का भी कारण बन जाती है, अत: ईर्ष्या के त्याग का उपदेश करते हैं
भाषार्थ
(यथा) जैसे (इयम्, मही, पृथिवी) इस महती पृथिवी ने (इमान्, वनस्पतीन्) इन वनस्पतियों को [गर्भरूप में] (दाधार) धारण किया (एवा ते, इत्यादि) इसी प्रकार [हे पत्नी ] तेरा गर्भ, इत्यादि, पूर्ववत् ।
टिप्पणी
[पृथिवी बीजरूप में गर्भ धारण करती है, और उससे नियत समय पर वनस्पतियां पैदा होती हैं, इसी प्रकार [हे पत्नी ! तू पूर्ववत्]।
विषय
गर्भधारण, प्रजनन-विद्या।
भावार्थ
(यथा) जिस प्रकार (इयम् मही पृथिवी) यह बड़ी विशाल पृथिवी (इमान् वनस्पतीन्) इन वनस्पतियों को (दाधार) अपने में धारण करती और अपने रस से उनको पुष्ट करती है (एवा ते गर्भः ध्रियताम्) हे स्त्रि ! इसी प्रकार तेरा यह गर्भ भी धारण किया जाकर पुष्ट हो जिससे (अनु सूतुं सवितवे) बाद में पुत्र की उत्पत्ति हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। गर्भगृहणं देवता। अनुष्टुप्। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Garbhadrnhanam
Meaning
Just as this great mother earth bears these herbs and trees, so may your womb bear the seed of life to mature and deliver the child.
Translation
As this vast earth bears these mighty trees, so may your embryo form and develop for birth under favourable conditions.
Translation
Even as this vast earth bears these trees and plants so may the germs of life be laid in you, O wife! to give birth to child.
Translation
Just as this mighty Earth bears the stately forest trees, so may the germ of life be borne in thee that thou mayst bear a son.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(दाधार) धृतवती (इमान्) परिदृश्यमानान् (वनस्पतीन्) अ० १।१२।३। सेवकानां रक्षकान् वृक्षान्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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