अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 38/ मन्त्र 1
ऋषि: - अथर्वा
देवता - बृहस्पतिः, त्विषिः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - वर्चस्य सूक्त
34
सिं॒हे व्या॒घ्र उ॒त या पृदा॑कौ॒ त्विषि॑र॒ग्नौ ब्रा॑ह्म॒णे सूर्ये॒ या। इन्द्रं॒ या दे॒वी सु॒भगा॑ ज॒जान॒ सा न॒ ऐतु॒ वर्च॑सा संविदा॒ना ॥
स्वर सहित पद पाठसिं॒हे । व्या॒घ्रे । उ॒त । या । पृदा॑कौ । त्विषि॑: । अ॒ग्नौ । ब्रा॒ह्म॒णे । सूर्ये॑ । या । इन्द्र॑म् । या । दे॒वी । सु॒ऽभगा॑ । ज॒जान॑ । सा । न॒: । आ । ए॒तु॒ । वर्च॑सा । स॒म्ऽवि॒दा॒ना ॥३८.१॥
स्वर रहित मन्त्र
सिंहे व्याघ्र उत या पृदाकौ त्विषिरग्नौ ब्राह्मणे सूर्ये या। इन्द्रं या देवी सुभगा जजान सा न ऐतु वर्चसा संविदाना ॥
स्वर रहित पद पाठसिंहे । व्याघ्रे । उत । या । पृदाकौ । त्विषि: । अग्नौ । ब्राह्मणे । सूर्ये । या । इन्द्रम् । या । देवी । सुऽभगा । जजान । सा । न: । आ । एतु । वर्चसा । सम्ऽविदाना ॥३८.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (2)
विषय
ऐश्वर्य पाने के लिये उपदेश।
पदार्थ
(या) जो (त्विषिः) ज्योति (सिंहे) सिंह में, (व्याघ्रे) बाघ में (उत) और (पृदाकौ) फुँसकारते हुए साँप में, और (या) जो (अग्नौ) अग्नि में, (ब्राह्मणे) वेदवेत्ता पुरुष में और (सूर्ये) सूर्य में है, (या) जिस (देवी) दिव्य गुणवाली, (सुभगा) बड़े ऐश्वर्यवाली [ज्योति] ने (इन्द्रम्) परम ऐश्वर्य को (जजान) उत्पन्न किया है, (सा) वह (वर्चसा) अन्न से (संविदाना) मिलती हुई (नः) हमें (आ) आकर (एतु) मिले ॥१॥
भावार्थ
मनुष्य संसार के सब बलवान् तेजस्वी पदार्थों में संयम करके ऐश्वर्य और पराक्रम प्राप्त करे ॥१॥ यही भावार्थ अगले मन्त्रों भी समझो ॥
टिप्पणी
१−(सिंहे) अ० ४।८।७। हिंसके जन्तौ (व्याघ्रे) अ० ४।३।१। शार्दूले (उत) अपि (या) (पृदाकौ) अ० ३।२७।३। कुत्सितशब्दकारिणि सर्पे (त्विषिः) इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। इति त्विष दीप्तौ−इन् कित्। कान्तिः। उत्साहशक्तिः (अग्नौ) पावके (ब्राह्मणे) अ० २।६।३। वेदज्ञे पुरुषे (सूर्य्ये) आदित्ये (या) (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्यम् (देवी) दिव्यगुणा (सुभगा) बह्वैश्वर्ययुक्ता (जजान) जनयामास (सा) त्विषिः (नः) अस्मान् (आ) आगत्य (एतु) प्राप्नोतु (वर्चसा) अन्नेन−निघ० २।७। (संविदाना) अ० २।१८।२। संगच्छमाना ॥
Vishay
…
Padartha
…
Bhavartha
…
English (1)
Subject
Energy and Splendour of Life
Meaning
That energy, brilliancy and splendour which is in the lion, tiger, cobra, fire, the Brahmana, and in the sun, which, divine spirit of majesty and good fortune, creates and consecrates the ruling power, Indra, may, we pray, come bearing the lustre and splendour of life and bless us.
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