अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 42/ मन्त्र 1
ऋषि: - भृग्वङ्गिरा
देवता - मन्युः
छन्दः - भुरिगनुष्टुप्
सूक्तम् - परस्परचित्तैदीकरण सूक्त
53
अव॒ ज्यामि॑व॒ धन्व॑नो म॒न्युं त॑नोमि ते हृ॒दः। यथा॒ संम॑नसौ भू॒त्वा सखा॑याविव॒ सचा॑वहै ॥
स्वर सहित पद पाठअव॑ । ज्याम्ऽइ॑व । धन्व॑न: । म॒न्युम् । त॒नो॒मि॒ । ते॒ । हृ॒द: । यथा॑ । सम्ऽम॑नसौ । भू॒त्वा । सखा॑यौऽइव । सचा॑वहै ॥४२.१॥
स्वर रहित मन्त्र
अव ज्यामिव धन्वनो मन्युं तनोमि ते हृदः। यथा संमनसौ भूत्वा सखायाविव सचावहै ॥
स्वर रहित पद पाठअव । ज्याम्ऽइव । धन्वन: । मन्युम् । तनोमि । ते । हृद: । यथा । सम्ऽमनसौ । भूत्वा । सखायौऽइव । सचावहै ॥४२.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (2)
विषय
क्रोध की शान्ति के लिये उपदेश।
पदार्थ
[हे मनुष्य !] (ते) तेरे (हृदः) हृदय से (मन्युम्) क्रोध को (अव तनोमि) मैं उतारता हूँ, (इव) जैसे (धन्वनः) धनुष से (ज्याम्) डोरी को। (यथा) जिस से (समनसौ) एकमन (भूत्वा) होकर (सखायौ इव) दो मित्रों के समान (सचावहै) हम दोनों मिले रहें ॥१॥
भावार्थ
मनुष्यों को ईर्ष्या द्वेष छोड़कर सदा मित्र होकर रहना चाहिये ॥१॥
टिप्पणी
१−(ज्याम्) अ० १।१।३। मौर्वीम् (इव) यथा (धन्वनः) धनुषः (मन्युम्) क्रोधम् (अव तनोमि) अवरोपयामि। अवतरामि (ते) तव (हृदः) हृदयात् (यथा) येन प्रकारेण (संमनसौ) समानमनस्कौ परस्परानुरागिणौ (भूत्वा) (सखायौ) सुहृदौ (सचावहै) षच समवाये−लोट्। समवेतौ नित्यसंगतौ भवाव ॥
Vishay
…
Padartha
…
Bhavartha
…
English (1)
Subject
Freedom from Anger
Meaning
I relax the tension of anger from your mind like releasing the string from the bow so that you and I, being good and happy at heart, may live together like friends.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Dhiman
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal