अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वा
देवता - इन्द्रः
छन्दः - भुरिगनुष्टुप्
सूक्तम् - वर्चः प्राप्ति सूक्त
51
इन्द्रे॒मं प्र॑त॒रं कृ॑धि सजा॒ताना॑मसद्व॒शी। रा॒यस्पोषे॑ण॒ सं सृ॑ज जी॒वात॑वे ज॒रसे॑ नय ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑ । इ॒मम् । प्र॒ऽत॒रम् । कृ॒धि॒ । स॒ऽजा॒ताना॑म् । अ॒स॒त् । व॒शी । राय: । पोषे॑ण । सम् । सृ॒ज॒। जीवात॑वे । जरसे॑ । नय ॥५.२॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रेमं प्रतरं कृधि सजातानामसद्वशी। रायस्पोषेण सं सृज जीवातवे जरसे नय ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र । इमम् । प्रऽतरम् । कृधि । सऽजातानाम् । असत् । वशी । राय: । पोषेण । सम् । सृज। जीवातवे । जरसे । नय ॥५.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
धन और जीवन की वृद्धि का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्र) हे परम ऐश्वर्यवाले जगदीश्वर ! (इमम्) इस पुरुष को (प्रतरम्) अधिक ऊँचा (कृधि) कर, यह (सजातानाम्) समान जन्मवाले बन्धुओं का (वशी) वश में रखनेवाला, अधिष्ठाता (असत्) होवे। (रायः) धन की (पोषेण) पुष्टि से (सम् सृज) संयुक्त कर और (जीवातवे) बड़े जीवन के लिये और (जरसे) स्तुति के लिये (नय) आगे बढ़ा ॥२॥
भावार्थ
मनुष्य परमेश्वर की आज्ञा पालन करके अपने बन्धुओं को उत्तम बर्ताव से वश में रख कर धन की वृद्धि करके पूर्ण यश प्राप्त करें ॥२॥
टिप्पणी
२−(इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् भगवन् (इमम्) धर्मात्मानम् (प्रतरम्) अधिकप्रवृद्धम् (कृधि) कुरु (सजातानाम्) समानजन्मनां बन्धूनाम् (असत्) भवेत् (वशी) वशयिता। अधिष्ठाता (रायः) धनस्य (पोषेण) वर्धनेन (सम् सृज) संयोजय (जीवातवे) जीवेरातुः। उ० १।७८। इति जीव प्राणधारणे−आतु। चिरजीवनाय (जरसे) अ० १।३०।२। स्तुतये (नय) प्रेरय ॥
विषय
जीवातवे जरसे [नय]
पदार्थ
१. हे (इन्द्रः) = शत्रु-विद्रावक प्रभो ! (इमम्) = इस यज्ञशील पुरुष को (प्रतरं कृधि) = अधिक उत्कृष्ट बनाइए-इसे भवसागर से तर जानेवाला बनाइए। यह (सजातानाम्) = समान जन्मवालों का (वशी असत्) = वश में करनेवाला हो अथवा 'सजात' काम-क्रोध आदि भाव हैं-('इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ')। यह इनका वशीभूत करनेवाला होता है। हे इन्द्र! आप इस पुरुष को (रायस्पोषेण) = धन के पोषण से (संसृज) = संसृष्ट कीजिए तथा (जीवातवे) = दीर्घजीवन के लिए और (जरसे) = पूर्ण वृद्धावस्था के लिए अथवा स्तुति के लिए (नय) = ले-चलिए।
भावार्थ
इन्द्र के अनुग्रह से हम उत्कृष्ट जीवनवाले, सजातों को वश में करनेवाले और धन से युक्त जीवनवाले बनें।
भाषार्थ
(इन्द्र) हे परमैश्वर्य के स्वामिन् परमेश्वर (इमम् ) इस गृहस्थ व्यक्ति को (प्रतरम्) औरों की अपेक्षा प्रकृष्ट (कृधि) कर, (सजातानाम्) ताकि समान घर में उत्पन्न हुओं को (वशी) वश में करने वाला (असत्) यह हो जाय। (रायस्पोषेण) धन की सम्पुष्टि के साथ (संसृज) इस का संसर्ग कर। (जीवातवे) जीने के लिये इसे (जरसे) जरावस्था तक (नय) प्राप्त करा, पहुंचा।
टिप्पणी
[गृहस्थ व्यक्ति गृह में बड़ा भाई प्रतीत होता है। यह अन्य भाईयों को निज प्रबन्ध में रख सके, यह इन्द्र से प्रार्थना की गई है। प्रबन्ध में रखने के लिये बड़े भाई की "आर्थिक समृद्धि" चाहिये ताकि वह परिवार के सब व्यक्तियों का पालन पोषण कर सके। इसलिये "धन की पुष्टि" के साथ उस का संसर्ग भी आवश्यक है]।
विषय
तेज, बल और ऐश्वर्य की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (इन्द्र) ईश्वर ! (इमम्) इस पुरुष को (सजातानाम्) सजातियों में (प्रतरम्) पार उतारने वाला, उनसे उत्कृष्ट (कृधि) बना। (वशी असद्) वह उन पर वश करने वाला हो। इस पुरुष को (रायस्पोषेण सं सृज) धन ऐश्वर्य की पुष्टि से युक्त कर। और (जीवातवे) चिर जीवन के लिये इसे (जरसे नय) बुढ़ापे के काल तक प्राप्त करा। उसे बुढ़ापे के पूर्व मृत्यु के वश न होने दे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। इन्द्राग्नी देवते। १-३ अनुष्टुभौ। २ भुरिग् अनुष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Progress by Yajna
Meaning
Indra, let this man rise higher so that he can be the leader and controller of his equals around. Bless him with abundant growth, and for a full healthy life take him to fullness of age with gratitude to divinity.
Subject
Indra
Translation
O resplendent Lord, may you augment this sacrificer, so that he may have sway over his kinsmen. May you endow him with riches and nourishment; lead him to ripe old age for (enjoyment of) long life.
Translation
Let the fire enkindled in the household life uplift yajmana to high status and make him superior to all his contemporaries. Let it give him sufficiency of wealth and bring him long life through the maturity of old age.
Translation
Advance him, O God. Let him be ruler of all his relatives. Grant him sufficiency of wealth, guide him for life to old age
Footnote
Him' refers to the man, who daily performs Havan.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् भगवन् (इमम्) धर्मात्मानम् (प्रतरम्) अधिकप्रवृद्धम् (कृधि) कुरु (सजातानाम्) समानजन्मनां बन्धूनाम् (असत्) भवेत् (वशी) वशयिता। अधिष्ठाता (रायः) धनस्य (पोषेण) वर्धनेन (सम् सृज) संयोजय (जीवातवे) जीवेरातुः। उ० १।७८। इति जीव प्राणधारणे−आतु। चिरजीवनाय (जरसे) अ० १।३०।२। स्तुतये (नय) प्रेरय ॥
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