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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 57 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 57/ मन्त्र 3
    ऋषिः - शन्ताति देवता - रुद्रः छन्दः - पथ्याबृहती सूक्तम् - जलचिकित्सा सूक्त
    92

    शं च॑ नो॒ मय॑श्च नो॒ मा च॑ नः॒ किं च॒नाम॑मत्। क्ष॒मा रपो॒ विश्वं॑ नो अस्तु भेष॒जं सर्वं॑ नो अस्तु भेष॒जम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम् । च॒ । न॒: । मय॑: । च॒ । न॒: । मा । च॒ । न॒: । किम् । च॒न । आ॒म॒म॒त् । क्ष॒मा । रप॑: । विश्व॑म् । न॒: । अ॒स्तु॒ । भे॒ष॒ज॒म् । सर्व॑म् । न॒: । अ॒स्तु॒ । भे॒ष॒जम् ॥५७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शं च नो मयश्च नो मा च नः किं चनाममत्। क्षमा रपो विश्वं नो अस्तु भेषजं सर्वं नो अस्तु भेषजम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शम् । च । न: । मय: । च । न: । मा । च । न: । किम् । चन । आममत् । क्षमा । रप: । विश्वम् । न: । अस्तु । भेषजम् । सर्वम् । न: । अस्तु । भेषजम् ॥५७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 57; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    दोष के नाश के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (च) निश्चय करके (नः) हमारे लिये (शम्) शान्ति (च) और (नः) हमारे लिये (मयः) सुख होवे, (च) और (नः) हमें (किं चन) कोई भी दुःख (मा आममत्) न पीड़ा देवे। (रपः=रपसः) पाप की (क्षमा) क्षमा हो। (विश्वम्) सब जगत् (नः) हमारे लिये (भेषजम्) भयनिवारक (अस्तु) होवे, (सर्वम्) सब (नः) हमारे लिये (भेषजम्) रोगनाशक (अस्तु) होवे ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य रुद्र परमात्मा के अनुग्रह से पुरुषार्थपूर्वक अपने विघ्न हटा कर सुख भोगें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(शम्) शान्तिः। स्वास्थ्यम् (च) निश्चयेन (नः) अस्मभ्यम् (मयः) अ० १।१३।२। सुखम् (च) समुच्चये (नः) (च) (नः) अस्मान् (किंचन) किमपि दुःखम् (मा आममत्) अम पीडने−लुङि चङि रूपम्। न पीडयेत् (क्षमा) क्षमूष् सहने−अङ्। क्षान्तिः। उपशमः (रपः) अ० ४।१३।२। रपो रप्रमिति पापनामनी। भवतः−निरु० ४।२१। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति षष्ठ्या लुक्। रपसः। दोषस्य (विश्वम्) सर्वं जगत् (नः) अस्मभ्यम् (भेषजम्) भयनिवारकम् (सर्वम्) समस्तम् (नः) (अस्तु) (भेषजम्) रोगनाशकम् ॥

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    विषय

    सर्वरोग शमन

    पदार्थ

    १. हे देव ! (न:) = हमारे (शं च) = रोग का शमन भी हो (च) = और (नः मय:) = हमें रोगजनित द:ख की शान्ति से सुख प्राप्त हो (च) = और (नः) = हमारा (किंचन) = कोई भी (अङ्ग) = प्रत्यङ्गमा (आममत्) = रोगग्रस्त न हो। २. (रपः) = [रपसः] रोग के कारणभूत पाप का (क्षमा) = शमन-शान्ति हो। (नः) = हमारे लिए (विश्वम्) = सारे पदार्थ (भेषजम् अस्तु) = औषधरूप हों-हम भोज्यपदार्थों को भी क्षुधारूप रोग के औषध के रूप में ही सेवन करें। (सर्वम्) = [सर्व समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः] वे सर्वव्यापक प्रभु (न:) = हमारे लिए (भेषजम् अस्तु) = औषध हों। प्रभु-स्मरण हमें सब व्याधियों से बचाए।

    भावार्थ

    हमारे रोग शान्त हो गये, सब अङ्ग-प्रत्यङ्ग स्वस्थ हों। भोज्यद्रव्यों को हम औषधरूप से सेवन करें। प्रभु स्मरण हमारे पाप-रोगों का सर्वमहान् औषध हो।

    विशेष

    अपने जीवन को रोग व पापशून्य बनाकर यह स्थिरवृत्तिवाला बनता है। इसका नाम 'अथर्वा' हो जाता है। यही अगले पाँच सूक्तों का ऋषि है -

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    भाषार्थ

    (नः) हमारे (शम् च) रोग शान्ति हो (नः) हमें (मय: च) और सुख हो, (नः च) और हमें (किं चन) कोई भो रोग (मा)(आममत्) रुग्ण करे। (रपः) [रोगजनक] पाप (क्षमा) क्षीण अर्थात् शान्त हो जाय, (विश्वम्) विश्व अर्थात् संसार (नः) हमारे लिये (भेषजम्, अस्तु) औषध रूप हो जाय, (सर्वम्) विश्व के सब तत्त्व (नः) हमारे लिये (भेषजम्, अस्तु) औषधरूप हो जाय।

    टिप्पणी

    [चकारद्वय समुच्चयार्थक हैं। आममत् = आ+अम रोगे (चुरादिः) +णिच् + चङ् (लुङि)। क्षमा =क्षै क्षये (भ्वादिः); क्षै + मनिन्= क्षमा अर्थात् पाप क्षीण हो जाय, उसका क्षय हो जाय]।

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    विषय

    व्रणचिकित्सा।

    भावार्थ

    (नः शं च) हमें शान्ति प्राप्त हो और (मय: च) सुख प्राप्त हो। (नः) हमारा (किं चन) कोई भी अंग (मा अममत्) रोगपीड़ित न हो। (रपः) पाप और पाप का फल दुःख सबको हम (क्षमाः) सहन करने और उसको वश करने में समर्थ हों। (नः) हमारे (विश्वम्) समस्त पदार्थ (भेषजम् अस्तु) दुःखनिवारक हो। (सर्वं नः भेषजम् अस्तु) हमारे सब पदार्थ रोगनाशक हों। अथवा (विश्वम्) विश्वमय और (सर्वं) सर्वमय परमात्मा सब भव-रोगों को शान्त करे।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘मो षु ते ’। ‘द्यौः पृथिवी क्षमा रपा’ इति ऋ०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंततिर्ऋषिः। १-२ रुद्रः, ३ भेषजं देवता। १ २ अनुष्टुभौ। ३ पथ्या बृहती। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Water Treatment

    Meaning

    Let there be peace and comfort with us. Let there be health and joy with us. Let nothing ail or injure us. Let there be freedom from sin and pain. Let life and the world be a sanative for us. Let all and every thing be giver of health and freedom from ailment and disease, balmy, healthful, pleasurable.

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    Subject

    Bhesajam : Remedy

    Translation

    May ours be the, weal and the happiness. And may. we not suffer from any disease. May the foreign matter (causing disease) calm down. May all the things be remedy to us; may everything be remedy to us.

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    Translation

    Let there be health for us, let there be pleasure for us, let not anything injure us, let our diseases be off, let all the objects of world be medicine for use and let whole be balm for us.

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    Translation

    Let us get peace and joy. Let no disease vex us. Down with the sin! Let all things relieve us from affliction. Let all substances release us from disease.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(शम्) शान्तिः। स्वास्थ्यम् (च) निश्चयेन (नः) अस्मभ्यम् (मयः) अ० १।१३।२। सुखम् (च) समुच्चये (नः) (च) (नः) अस्मान् (किंचन) किमपि दुःखम् (मा आममत्) अम पीडने−लुङि चङि रूपम्। न पीडयेत् (क्षमा) क्षमूष् सहने−अङ्। क्षान्तिः। उपशमः (रपः) अ० ४।१३।२। रपो रप्रमिति पापनामनी। भवतः−निरु० ४।२१। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति षष्ठ्या लुक्। रपसः। दोषस्य (विश्वम्) सर्वं जगत् (नः) अस्मभ्यम् (भेषजम्) भयनिवारकम् (सर्वम्) समस्तम् (नः) (अस्तु) (भेषजम्) रोगनाशकम् ॥

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