अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 65/ मन्त्र 3
ऋषिः - अथर्वा
देवता - इन्द्रः, पराशरः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
78
इन्द्र॑श्चकार प्रथ॒मं नै॑र्ह॒स्तमसु॑रेभ्यः। जय॑न्तु॒ सत्वा॑नो॒ मम॑ स्थि॒रेणेन्द्रे॑ण मे॒दिना॑ ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑: । च॒का॒र॒ । प्र॒थ॒मम् । नै॒:ऽह॒स्तम् । असु॑रेभ्य: । जय॑न्तु । सत्वा॑न: । मम॑ ।स्थि॒रेण॑ । इन्द्रे॑ण । मे॒दिना॑ ॥६५.३॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रश्चकार प्रथमं नैर्हस्तमसुरेभ्यः। जयन्तु सत्वानो मम स्थिरेणेन्द्रेण मेदिना ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र: । चकार । प्रथमम् । नै:ऽहस्तम् । असुरेभ्य: । जयन्तु । सत्वान: । मम ।स्थिरेण । इन्द्रेण । मेदिना ॥६५.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सेनापति के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्रः) बड़े ऐश्वर्यवाले सेनापति ने (असुरेभ्यः) असुर शत्रुओं को (नैर्हस्तम्) निहत्थापन (प्रथमम्) पहिले (चकार) किया था। (स्थिरेण) स्थिर स्वभाव, (मेदिना) स्नेही (इन्द्रेण) उस बड़े सेनापति के साथ (मम) मेरे (सत्वानः) वीर लोग (जयन्तु) जीतें ॥३॥
भावार्थ
जिस शूर सेनापति की सहायता से पहिले शत्रुओं को जीता है, उसकी सहायता से शत्रुओं को अब भी जीतें ॥३॥
टिप्पणी
३−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सेनापतिः (चकार) कृतवान् (प्रथमम्) पूर्वस्मिन् काले (नैर्हस्तम्) भावे−अण्। निर्हस्तत्वं हस्तसामर्थ्यवैक्ल्यम् (असुरेभ्यः) देवविरुद्धेभ्यः शत्रुभ्यः (जयन्तु) अभिभवन्तु शत्रून् (सत्वानः) अ० ५।२।८। उद्योगिनो वीराः (मम) प्रजागणस्य (स्थिरेण) दृढस्वभावेन (इन्द्रेण) सेनापतिना (मेदिना) अ० ३।६।२। शमित्यष्टाभ्यो घिनुण्। पा० ३।२।१४१। इति ञिमिदा स्नेहने−घिनुण्। स्नेहिना ॥
विषय
इन्द्रः सत्वानः
पदार्थ
१. (प्रथमम्) = पहले (इन्द्रः) = राष्ट्र का रक्षक राजा-देववृत्ति की प्रजाओं का रक्षण करानेवाला राजा (असुरेभ्यः) = आसुरवृति के पुरुषों के लिए राष्ट्र में डाके आदि उपद्रव करानेवाले पुरुषों के लिए (नैर्हस्तं चकार) = निहत्थेपन की व्यवस्था करता है उन्हें निगृहीत करके निहत्था करता है, इसप्रकार यह राजा आन्तर शत्रुओं का विनाश करता है। २. इस राजा की यह कामना होती है कि (स्थिरेण) = युद्धकर्म में दृढ़ (मेदिना) = सैनिकों के साथ स्नेह करनेवाले (इन्द्रेण) = शत्रविद्रावक सेनापति के साथ (मम) = मेरे (सत्वान:) = [सादयन्ति शत्रून् इति] शत्रुओं को विनष्ट करनेवाले सैनिक जयन्तु-शत्रुओं को पराजित करें।
भावार्थ
राजा राष्ट्र के आन्तर व बाह्य शत्रुओं का विनाश करे । सेनापति वीर और सैनिकों के प्रति स्नेहवाला हो।
भाषार्थ
(इन्द्रः) सम्राट् ने (प्रथमम्) पहिले (असुरेभ्यः) देवविरोधी प्राणपोषकों के लिये (नैर्हस्तम्) निहत्थेपन का (चकार) दण्ड दिया। (मेदिना) स्नेही तथा (स्थिरेण) साम्राज्य पद पर स्थिर (इन्द्रेण) सम्राट् की सहायता द्वारा (मम) मुझ सेनाधिपति के (सत्वानः) शक्तिशाली सैनिक (जयन्तु) शत्रु पर विजय पाएं।
टिप्पणी
[इन्द्रः= "इन्द्रश्च सम्राट् वरुणश्च राजा" (यजु० ८।३७)। असुरेभ्यः =जो केवल जीवन का उद्देश्य प्राणपोषण मात्र मानते हैं अतः देवविरोधी हैं, जो देव कि जीवन को दिव्य बनाने के पक्ष में हैं। इन्द्र स्नेही है। अतः युद्ध में स्वाश्रित सेनाधिपति को असुरों के साथ युद्ध में सब प्रकार की सहायता देता है]।
विषय
विजयी, दमनकारी राजा का शत्रुओं को निःशस्त्र करना।
भावार्थ
(इन्द्रः) इन्द्र राजा (प्रथमम्) सबसे पहले (असुरेभ्यः) असुरों, निर्दय, बलवान् शत्रुओं पर (नैर्हस्तम्) निहत्थापन के उपाय को (चकार) करे। तब (मम) मेरे (सत्वानः) वीर्यवान् भट(स्थिरेण) स्थायी (मेदिना) बलशाली (इन्द्रेण) सेनापति राजा के साथ (जयन्तु) विजय करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। चन्द्र उत इन्द्रः पराशरो देवता। १ पथ्यापंक्तिः, २-३ अनुष्टुभौ। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Victory Over Enemy
Meaning
Indra, supreme ruler of life, created and designed the first and highest armless disarming weapon against the negative and demonic forces of the world. May my enlightened warriors win their battles of life under the leadership of Indra, the Spirit inviolable, immovable, steadfast. (The battle that rages is between the positive and the negative forces without the search for balance and evolution. So it rages on, doesn’t end. The ultimate weapon of ultimate victory is the constructive, reconstructive and rejuvenating yajnic fragrance of love and indefatigable spirit of union and brotherhood.)
Translation
First of all, the resplendent Lord disarms the evil-doers. May my warriors win with the help of ever-unwavering adorable Lord.
Translation
The mighty electricity first uses the method handless weapon for destroying the clouds. Let our brave heroes be victorious with their mighty, firm commander.
Translation
The Commander of the army first made the foes bereft of the strength of hand. Victorious shall my heroes be with the help of the Commander as their constant friend.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सेनापतिः (चकार) कृतवान् (प्रथमम्) पूर्वस्मिन् काले (नैर्हस्तम्) भावे−अण्। निर्हस्तत्वं हस्तसामर्थ्यवैक्ल्यम् (असुरेभ्यः) देवविरुद्धेभ्यः शत्रुभ्यः (जयन्तु) अभिभवन्तु शत्रून् (सत्वानः) अ० ५।२।८। उद्योगिनो वीराः (मम) प्रजागणस्य (स्थिरेण) दृढस्वभावेन (इन्द्रेण) सेनापतिना (मेदिना) अ० ३।६।२। शमित्यष्टाभ्यो घिनुण्। पा० ३।२।१४१। इति ञिमिदा स्नेहने−घिनुण्। स्नेहिना ॥
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