Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 83 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 83/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अङ्गिरा देवता - सूर्यः, चन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - भैषज्य सूक्त
    61

    अ॒सूति॑का रामाय॒ण्यप॒चित्प्र प॑तिष्यति। ग्लौरि॒तः प्र प॑तिष्यति॒ स ग॑लु॒न्तो न॑शिष्यति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒सूति॑का । रा॒मा॒य॒णी । अ॒प॒ऽचित् । प्र । प॒ति॒ष्य॒ति॒ । ग्लौ: । इ॒त: । प्र । प॒ति॒ष्य॒ति॒ । स: । ग॒लु॒न्त: । ना॒शि॒ष्य॒ति॒ ॥८३.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    असूतिका रामायण्यपचित्प्र पतिष्यति। ग्लौरितः प्र पतिष्यति स गलुन्तो नशिष्यति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    असूतिका । रामायणी । अपऽचित् । प्र । पतिष्यति । ग्लौ: । इत: । प्र । पतिष्यति । स: । गलुन्त: । नाशिष्यति ॥८३.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 83; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रोग नाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (रामायणी) प्राण वायु के रमणस्थान नाड़ियों में मार्गवाली (अपचित्) सुख नाश करनेवाली गण्डमाला आदि पीड़ा (असूतिका) बाँझ होकर (प्र पतिष्यति) चली जायगी। (ग्लौः) हर्षनाशक घाव (इतः) इस [रोगी] से (प्र पतिष्यति) चला जावेगा (सः) वह [घाव] (गलुन्तः) गलाव से कोमल होकर (नशिष्यति) नष्ट हो जावेगा ॥३॥

    भावार्थ

    जिस प्रकार सद्वैद्य की ओषधि से रोग बढ़ने से रुककर नष्ट हो जाता है, वैसे ही मनुष्य विद्या की प्राप्ति से अविद्या को मिटा कर सुखी होता है ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(असूतिका) षूङ् प्राणिप्रसवे−क्त, स्वार्थे कन्। बन्ध्या। रोगानुत्पादिका सती (रामायणी) रमते आसु प्राणवायुरिति रामा नाड्यः, ता अयनं मार्गो यस्याः सा तथाभूता (अपचित्) म० १। हर्षनाशिका गण्डमालादिपीडा (प्रपतिष्यति) प्रकर्षेण गमिष्यति (ग्लौः) ग्लानुदिभ्यां डौः। उ० २।६४। इति ग्लै हर्षक्षये−डौ। हर्षनाशको व्रणः (इतः) एतस्माद् रोगिणः पुरुषात् (प्रपतिष्यति) (सः) ग्लौः (गलुन्तः) गल क्षरणे−क्विप्+उन्दी क्लेदने−क्त। नुदविदोन्द० पा० ८।२।५६। इति वैकल्पिकत्वाद् नत्वं न। गला गलनेन उन्तः उन्नः क्लिन्नः कोमलीकृतः (नशिष्यति) णश अदर्शने। अदृष्टो भविष्यति ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    असूतिका रामायणी

    पदार्थ

    १. (असूतिका) = पूयस्त्राव को पैदा न करती हुई–देर से पकनेवाली यह (रामायणी) = [रमते आसु प्राणवायुः इति रामाः नाड्यः, ता अयनं यस्याः] प्राणावायु के रमन स्थानाभूत नाड़ियों में मार्ग वाली यह (अपचित्) = गण्डमाला (प्रपतिष्यति) = अवश्य चली जाएगी। २. (ग्लौ) = वनजनित हर्षक्षय (इत:) = यहाँ से (प्रपतिष्यति) = दूर हो जाएगा और (सः) = वह घाव (गलुन्त:) = परिपक्व होकर गलने से (नशिष्यति) = नष्ट हो जाएगा-इससे सब पूय [पस] निकलकर घाव की समाप्ति हो जाएगी।

    भावार्थ

    औषध-प्रयोग से यह असूतिका रामायणी 'ग्लौ व गलुन्त' के रूप में होती हुई नष्ट हो जाएगी।

     

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (असूतिका) पूयस्राव न करती हुई (रामायणी) कृष्णा (अपचित्) गल-गण्डमाला (प्रपतिष्यति) शीघ्र उड़ जायगी, (ग्लौः) हर्षक्षय करनेवाली अर्थात् दुःखप्रदा गण्डमाला (इतः) इस रोगी से (प्रपतिष्यति) शीघ्र उड़ जायगी, (सः) वह रोग (गलुन्तः) गल कर, स्रवित होकर (नशिष्यति) नष्ट हो जायगा।

    टिप्पणी

    [असूतिका=पीप पैदा न करनेवाली गण्डमाला। रामायणी१= रामा अर्थात् काली गण्डमाला (मन्त्र २) (निरुक्त १२।२।१३), यथा 'रामोऽधस्तात् कृष्णः'। गलुन्तः= गलन्तः, उकारः छान्दसः। गल स्रवणे (चूरादिः) + झच् (उणा० ३।१२६), झोऽन्तः (अष्टा० ७।१।३), अतः गलुन्तः या गलन्तः= गण्ड, जो कि स्रवित होता है, पीपवाला है। गलन्तः= गल्+ अन्तः, यथा वसन्तः, भदन्तः, हेमन्तः आदि (उणा० ३।१२८-१३०]। [१. रामायणी = रामः कृष्णवर्णः, तस्य अयनम्, प्राप्तिः यस्यां गण्डमालायाम्, सा]।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    अपची या गण्डमाला रोग की चिकित्सा।

    भावार्थ

    (असूतिका) जो गण्डमाला पीप पैदा नहीं करती वह (रामायणी) रामा = रक्तनाड़ी में ही छिपी रहती है, ऐसी (अपचित्) अपची या गण्डमाला भी पूर्वोक्त उपचार से (प्र पतिष्यति) विनष्ट हो जायेगी। (इतः) इस स्थान से (ग्लौः) व्रण की पीड़ा भी (प्र पतिष्यति) विनष्ट हो जायगी। (सः) वह (गलुन्तः) गलने से, परिपक्व होजाने से (नशिष्यति) विनष्ट हो जायेगी।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अंगिरा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवता। १-३ अनुष्टुप्। ४ एकावसाना द्विपदा निचृद् आर्ची अनुष्टुप्। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cure of Scrofulous Inflammation

    Meaning

    Ramayani, apachit with its roots in the blood vessels, will go without leaving a trace of recurrence. The boil will go. The sore will go, disappear.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The malignant tumour, rooted in the veins, will fly away without producing another. The sceptic one will fly away and that morbid one will also vanish

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let Asutika Ramayani apachit, the pustule which does not suppurate and which remain the vessel of blood fly away, let Glauh, the boil fly away and let that of Glunta, the tumur vanish.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The pustule that does not emit puss, and remains hidden in blood veins shall be removed. The boil shall be removed from this part of the body, and shall vanish on maturity.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(असूतिका) षूङ् प्राणिप्रसवे−क्त, स्वार्थे कन्। बन्ध्या। रोगानुत्पादिका सती (रामायणी) रमते आसु प्राणवायुरिति रामा नाड्यः, ता अयनं मार्गो यस्याः सा तथाभूता (अपचित्) म० १। हर्षनाशिका गण्डमालादिपीडा (प्रपतिष्यति) प्रकर्षेण गमिष्यति (ग्लौः) ग्लानुदिभ्यां डौः। उ० २।६४। इति ग्लै हर्षक्षये−डौ। हर्षनाशको व्रणः (इतः) एतस्माद् रोगिणः पुरुषात् (प्रपतिष्यति) (सः) ग्लौः (गलुन्तः) गल क्षरणे−क्विप्+उन्दी क्लेदने−क्त। नुदविदोन्द० पा० ८।२।५६। इति वैकल्पिकत्वाद् नत्वं न। गला गलनेन उन्तः उन्नः क्लिन्नः कोमलीकृतः (नशिष्यति) णश अदर्शने। अदृष्टो भविष्यति ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top