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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 10 के मन्त्र
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अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 5
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - विराट्
छन्दः - विराड्गायत्री
सूक्तम् - विराट् सूक्त
56
तस्या॒ इन्द्रो॑ व॒त्स आसी॑द्गाय॒त्र्यभि॒धान्य॒भ्रमूधः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठतस्या॑: । इन्द्र॑: । व॒त्स: । आसी॑त् । गा॒य॒त्री । अ॒भि॒ऽधानी॑ । अ॒भ्रम् । ऊध॑: ॥११.५॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्या इन्द्रो वत्स आसीद्गायत्र्यभिधान्यभ्रमूधः ॥
स्वर रहित पद पाठतस्या: । इन्द्र: । वत्स: । आसीत् । गायत्री । अभिऽधानी । अभ्रम् । ऊध: ॥११.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पदार्थ
(तस्याः) उस [विराट्] का (इन्द्रः) जीव (वत्सः) उपदेष्टा, (गायत्री) गानयोग्य वेदविद्या (अभिधानी) कथन शक्ति (अभ्रम्) मेघ (ऊधः) सेचनसामर्थ्य (आसीत्) हुआ ॥५॥
भावार्थ
उस ईश्वरशक्ति विराट् के आश्रय सब प्राणी हैं ॥५॥
टिप्पणी
५−(तस्याः) विराजः (इन्द्रः) इन्द्रियमिन्द्रलिङ्गमिन्द्रदृष्ट०। पा० ५।२।९३। जीवः (वत्सः) वद कथने-स। उपदेष्टा (आसीत्) (गायत्री) अ० ८।९।१४। गानयोग्या वेदवाणी (अभिधानी) कथनशक्तिः (अभ्रम्) मेघः (ऊधः) श्वेः संप्रसारणं च। उ० ४।१९३। वह प्रापणे-असुन्, यद्वा उन्दी क्लेदने-असुन्, ऊधादेशः। सेचनसामर्थ्यम् ॥
विषय
विराट् रूप कामधेनु
पदार्थ
१. उल्लिखित विराट् को-विशिष्ट दीप्तिवाली शासन-व्यवस्था को कामधेनु के रूप में चित्रित करते हुए कहते हैं कि-(तस्या:) = उस विराटप कामधेनु का (इन्द्रः वत्सः आसीत्) = एक जितेन्द्रिय पुरुष बत्स [बछड़ा] है अथवा प्रिय पुत्र है। इस कामधेनु की (गायत्री अभिधानी) = गान करनेवाले का जाण करनेवाली [गायन्तं त्रायते] यह वेदवाणी बन्धन-रजु है। (अभ्रम् ऊध:) = इस विराटप कामधेनु का मेघ ही दुग्धाशय है। जहाँ विराट् होती है, वहाँ पुरुष जितेन्द्रिय होते हैं, वेदविद्या का गान करते हुए वे अपना त्राण करते हैं, उस राष्ट्र में मेघ समय पर बरसकर अन्नादि की कमी नहीं होने देता। २. इस विराट्रूप कामधेनु के (बृहत् च रथन्तरं च) = बृहत् और रथन्तर (द्वौ स्तनौ आस्ताम्) = दो स्तन हैं। (यज्ञायज्ञियं च वामदेव्यं च द्वौ) = और यज्ञायज्ञिय तथा वामदेव दो स्तन हैं। ('द्यौर्वै बृहत्') = शत०९।१।३।३७ के अनुसार बृहत् का अर्थ [लोक है। ('इयं पृथिवी वै रथन्तरम्') = शत०९।१।३।३६ के अनुसार पृथिवी 'रथन्तर' है। ('चन्द्रमा वै यज्ञायज्ञियम्') = शत०१।१२।३९ के अनुसार यज्ञायज्ञिय का अर्थचन्द्रमा है। ('प्राणो वै वामदेव्यम्') = शत०९।१।२।३८ में वामदेव्य का अर्थ प्राण किया गया है।
भावार्थ
विराट्रूप कामधेनु का वत्स 'इन्द्र' है, अभिधानी 'गायत्री' है तथा ऊधस् [अभ्र] है, अर्थात् दोस शासन-व्यवस्थावाले राष्ट्र में पुरुष जितेन्द्रिय होते हैं, वेदविद्या का गान होता है, वहाँ समय पर बादल बरसता है। इस कामधेनु के धुलोक व पृथिवीलोक, चन्द्र व प्राण-चार स्तन है।
भाषार्थ
(तस्याः) उस [चतुर्धा अन्तरिक्षव्यापिनी विराट् ?] का (वत्सः) वत्स (इन्द्रः आसीत्) इन्द्र था, (गायत्री) गायत्री (अभिधानी) बन्धन-रज्जु और (अभ्रम्) मेघ (ऊधः) दुग्धाशय था ।
टिप्पणी
[मन्त्र (५) में अन्तरिक्षव्यापिनी विराट को, गोरूप में रूपित किया है। वत्सरूपी इन्द्र है विद्युत् और विद्युत् में आविष्ट मेघ है ऊधस्१ दुग्धाशय। गायत्री को अभिधानी अर्थात् बन्धनरज्जु कहा है। गौ को रज्जु द्वारा बांधकर दोहा जाता है, ताकि वह इधर-उधर विचलित न हो सके। गौ, बिना वत्स के दूध नहीं देती। विराट् गौ का वत्स है विद्युत्। विद्युत् द्वारा आविष्ट अभ्र से वर्षा द्वारा जलदुग्ध प्राप्त होता है, अतः विद्युत् वत्सरूप है। अभ्र से जलदुग्ध प्राप्त होता है अतः अभ्र को ऊधः कहा है। गायत्री द्वारा गायत्री का अधिपति परमेश्वर अभिप्रेत है। यथा "यो गायत्र्याः अधिपतिर्बभूव" (अथर्व० ४।३५।६)। वह परमेश्वर अभिधानी रूप है। उस के नियम द्वारा अन्तरिक्ष में बन्धे अभ्र आदि जलदुग्ध [प्रदान करते हैं]। [१. ऊधः= ऊधर्=udder]।
विषय
विराट के ४ रूप ऊर्ग, स्वधा, सूनृता, इरावती, उसका ४ स्तनों वाली गौ का स्वरूप।
भावार्थ
(तस्याः) उस अन्नमयी ‘विराट् रूप’ गौ का (इन्द्रः वत्सः आसीत्) इन्द्र मेघ या पववन वत्स=बछड़े के समान है और (गायत्री अभिधानी) गायत्री बांधने की रस्सी है, (अभ्रम् ऊधः) और मेघ या आकाश दूध के भरे ऊधस के समान है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वाचार्य ऋषिः। विराड् देवता। १ त्रिपदा अनुष्टुप्। २ उष्णिग् गर्भा चतुष्पदा उपरिष्टाद् विराड् बृहती। ३ एकपदा याजुषी गायत्री। ४ एकपदा साम्नी पंक्तिः। ५ विराड् गायत्री। ६ आर्ची अनुष्टुप्। ८ आसुरी गायत्री। ९ साम्नो अनुष्टुप्। १० साम्नी बृहती। ७ साम्नी पंक्तिः। दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Virat
Meaning
Indra, electric energy of the middle region was the dear child of Virat, the Universal Cow, Gayatri was the rope that keeps the cow still and stable for milking, and the cloud was the udder wherefrom the milk for food, energy and self-sustenance with truth is received.
Translation
The aspirant was her calf, the Gayatri her halter, and the cloud was her udder.
Translation
Indra, the mighty electricity or air wasxit its calf, Gayatri metre became its rope, the cloud became its under.
Translation
Soul is the darling of God; praiseworthy Vedic knowledge is his speech, Cloud is His power of benefaction.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(तस्याः) विराजः (इन्द्रः) इन्द्रियमिन्द्रलिङ्गमिन्द्रदृष्ट०। पा० ५।२।९३। जीवः (वत्सः) वद कथने-स। उपदेष्टा (आसीत्) (गायत्री) अ० ८।९।१४। गानयोग्या वेदवाणी (अभिधानी) कथनशक्तिः (अभ्रम्) मेघः (ऊधः) श्वेः संप्रसारणं च। उ० ४।१९३। वह प्रापणे-असुन्, यद्वा उन्दी क्लेदने-असुन्, ऊधादेशः। सेचनसामर्थ्यम् ॥
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