Loading...
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 7
    ऋषिः - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - साम्नी पङ्क्तिः सूक्तम् - विराट् सूक्त
    25

    ओष॑धीरे॒व र॑थन्त॒रेण॑ दे॒वा अ॑दुह्र॒न्व्यचो॑ बृ॒हता ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ओष॑धी: । ए॒व । र॒थ॒म्ऽत॒रेण॑ । दे॒वा: । अ॒दु॒ह्र॒न् । व्यच॑: । बृ॒ह॒ता ॥११.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओषधीरेव रथन्तरेण देवा अदुह्रन्व्यचो बृहता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ओषधी: । एव । रथम्ऽतरेण । देवा: । अदुह्रन् । व्यच: । बृहता ॥११.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 2; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (देवाः) गतिमान् लोकों ने (एव) अवश्य (ओषधीः) अन्न आदि ओषधियों को (रथन्तरेण) रथन्तर [रमणीय पदार्थों से पार लगानेवाले जगत्] द्वारा, (व्यचः) विस्तार को (बृहता) बृहत् [बड़े आकाश] द्वारा, (अपः) प्रजाओं को (वामदेव्येन) वामदेव [मनोहर परमात्मा] से जताये गये [भूतपञ्चक] द्वारा और (यज्ञम्) यज्ञ [संयोग-वियोग आदि] की (यज्ञायज्ञियेन) सब यज्ञों के हितकारी [वेदज्ञान] द्वारा (अदुह्रन्) दुहा है ॥७, ८॥

    भावार्थ

    उसी विराट् ईश्वरशक्ति से सब लोक-लोकान्तरों का जीवन और स्थिति है ॥७, ८॥

    टिप्पणी

    ७, ८−(ओषधीः) अन्नादिपदार्थान् (एव) अवश्यम् (रथन्तरेण) म० ६। जगद्द्वारा (देवाः) गतिशीला लोकाः (अदुह्रन्) अदुहन्। प्रपूरितवन्तः (व्यचः) निरु० ८।१०। विस्तारम् (बृहता) म० ६। प्रवृद्धेनाकाशेन (अपः) प्रजाः−दयानन्दभाष्ये, यजु० ६।२७। उत्पन्नान् पदार्थान् (वामदेव्येन) म० ६। मनोहरेण परमात्मना विज्ञापितेन भूतपञ्चकेन (यज्ञम्) संयोगवियोगव्यवहारम् (यज्ञायज्ञियेन) म० ६। सर्वयज्ञेभ्यो हितेन वेदज्ञानेन ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    रथन्तर, बृहत, वामदेव्य, यज्ञायजिय

    पदार्थ

    १. (देवा:) = देववृत्ति के पुरुषों ने (रथन्तरेण) = पृथिवी से (ओषधी: एव अदुह्रन्) ओषधियों का ही दोहन किया। ये ओषधियाँ ही उनका भोजन बनी। (बृहता) = धुलोक से (व्यच:) = विस्तार को [Expanse, Vastness] दोहा। धुलोक की भाँति ही अपने हदयाकाश को विशाल बनाया। विशालता ही तो धर्म है। (वामदेव्येन) = प्राण से-प्राणशक्ति से इन्होंने (अप:) = कर्मों का दोहन किया-प्राणशक्ति-सम्पन्न बनकर ये क्रियाशील हुए। (यज्ञायज्ञियेन) = चन्द्रमा के हेतु से-आहाद प्राप्ति के हेतु से [चदि आहादे] (यज्ञम्) = इन्होंने यज्ञों को अपनाया। २. (एवम्) = इसप्रकार यह जो विराट को वेद-ठीक से समझ लेता है, (असौ) = इस पुरुष के लिए (रथन्तरम्) = विराट का पृथिवी रूपी स्तन-(ओषधी: एव दुहे) = ओषधियों का दोहन करता है, (बृहत्) = धुलोकरूप स्तन (व्यचः) = हृदय की विशालता को प्राप्त कराता है। (वामदेव्यम्) = प्राणशक्तिरूप स्तन अपः कर्मों को प्राप्त कराता है और (यज्ञायज्ञियम्) = चन्द्ररूप स्तन यज्ञों को प्राप्त कराता है, अर्थात् यज्ञ करके यह वास्तविक आहाद को अनुभव करता है।

    भावार्थ

    विराटप कामधेनु हमें 'औषधियों, हृदय की विशालता, कर्म व यज्ञ' को प्रास कराती है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (देवाः) देवों ने (रथंतरेण) रथंतर द्वारा (ओषधीः एव) ओषधियों का ही (अद्रुहन्) दोहन किया, (बृहता) और बृहत् द्वारा (व्यचः) विस्तार का दोहन किया।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Virat

    Meaning

    Devas received Oshadhis, herbs and trees by Rathantara Sama from the beautiful world, and boundless expansion by Brhat from boundless space.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The enlightened ones milked only the (medicinal) plants out of Rathantara, and the space out of Brhat.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The physical forces milked herbs from this with Rathantara and the vast space with Brthati.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    The learned derived eatables from the Earth and the idea of vastness from the sky.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७, ८−(ओषधीः) अन्नादिपदार्थान् (एव) अवश्यम् (रथन्तरेण) म० ६। जगद्द्वारा (देवाः) गतिशीला लोकाः (अदुह्रन्) अदुहन्। प्रपूरितवन्तः (व्यचः) निरु० ८।१०। विस्तारम् (बृहता) म० ६। प्रवृद्धेनाकाशेन (अपः) प्रजाः−दयानन्दभाष्ये, यजु० ६।२७। उत्पन्नान् पदार्थान् (वामदेव्येन) म० ६। मनोहरेण परमात्मना विज्ञापितेन भूतपञ्चकेन (यज्ञम्) संयोगवियोगव्यवहारम् (यज्ञायज्ञियेन) म० ६। सर्वयज्ञेभ्यो हितेन वेदज्ञानेन ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top