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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 10 के मन्त्र
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अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 6
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - विराट्
छन्दः - आर्ची बृहती
सूक्तम् - विराट् सूक्त
83
तस्मा॑द्दे॒वेभ्यो॑ऽर्धमा॒से वष॑ट्कुर्वन्ति॒ प्र दे॑व॒यानं॒ पन्थां॑ जानाति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
स्वर सहित पद पाठतस्मा॑त् । दे॒वेभ्य॑: । अ॒र्ध॒ऽमा॒से । वष॑ट् । कु॒र्व॒न्ति॒ । प्र । दे॒व॒ऽयान॑म् । पन्था॑म् । जा॒ना॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑॥१२.६॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्माद्देवेभ्योऽर्धमासे वषट्कुर्वन्ति प्र देवयानं पन्थां जानाति य एवं वेद ॥
स्वर रहित पद पाठतस्मात् । देवेभ्य: । अर्धऽमासे । वषट् । कुर्वन्ति । प्र । देवऽयानम् । पन्थाम् । जानाति । य: । एवम् । वेद॥१२.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पदार्थ
(तस्मात्) इसलिये (देवेभ्यः) किरणों को [वा किरणों से] (अर्धमासे) आधे महीने में (वषट्) रस पहुँचाना वे [ईश्वरनियम] (कुर्वन्ति) करते हैं, वह (देवयानम्) किरणों के जाने योग्य (पन्थाम्) मार्ग को (प्र जानाति) जान लेता है, (यः एवम् वेद) जो ऐसा जानता है ॥६॥
भावार्थ
ब्रह्मज्ञानी पुरुष किरणों और अर्धमास आदि के सम्बन्ध को यथावत् जान लेता है ॥६॥
टिप्पणी
६−(देवेभ्यः) किरणानामर्थं किरणानां सकाशाद्वा (वषट्) अ० १।११।१। वह प्रापणे−डषटि। रसप्रापणम् (कुर्वन्ति) निष्पादयन्ति (देवयानम्) किरणैर्गन्तव्यम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
देवों का विराट को प्राप्त होना
पदार्थ
१. (सा उदक्रामत्) = वह विराट् उत्क्रान्त हुई। (सा देवान् आगच्छत्) = वह देवों को प्राप्त हुई। (देवा:) = देव (ताम् अघ्रत) = उसे प्राप्त हुए। (सा) = वह (अर्धमासे सम् अभवत्) = प्रत्येक अर्धमास में उनके साथ रही। (तस्मात) = इसी कारण से (देवेभ्यः) = देवों के लिए (अर्धमासे) = प्रत्येक अर्धमास पर. अर्थात् प्रत्येक पक्ष पर पूर्णिमा और अमावास्या के दिन (वषट् कुर्वन्ति) = अग्निहोत्र करते हैं। (यः एवं वेद) = जो इस तत्त्व को समझ लेता है कि प्रति पूर्णिमा और अमावास्या पर विशिष्ट यज्ञ करके वायु आदि देवों को शुद्ध करना आवश्यक है, वह (देवयानं पन्थां प्रजानाति) = देवयान मार्ग को भली प्रकार जान लेता है। इस देवयान मार्ग में चलता हुआ वह पुरुष 'सुर्यलोक' को प्राप्त करता है। सूर्य ही सर्वमुख्य देव है। देवयज्ञ करनेवाला सूर्यलोक को प्राप्त करता ही है।
भावार्थ
वायु आदि देवों की शुद्धि के लिए विराट्वाले देश में, पूर्णिमा व अमावास्या पर बड़े-बड़े यज्ञ होते हैं। इन यज्ञों के करनेवाले देवलोक को प्राप्त होते हैं।
भाषार्थ
(तस्मात्) इसलिये (देवेभ्यः) देवों के प्रति (अर्धमासे) अर्धमास में (वषट्) वषट् शब्द के उच्चारणपूर्वक (कुर्वन्ति) हविःप्रदान करते हैं, वह (देवयानं पन्थाम्) "देवयान" नामक मार्ग को (प्रजानाति) जानता है (यः) जो कि (एवम्) इस प्रकार के तत्त्व को (वेद) जानता है।
टिप्पणी
[अर्धमास में हविःप्रदान द्वारा दर्शपौर्णमास यज्ञों को सूचित किया है]।
विषय
विराड् के ४ रूप, वनस्पति, पितृ, देव और मनुष्यों के बीच में क्रम से रस, वेतन, तेज और अन्न।
भावार्थ
(सा उद् अक्रामत्) वह विराट् ऊपर उठी, (सा देवानु,आ अगच्छत्) वह देव, विद्वानों के पास प्राप्त हुई। (तां देवाः अघ्नत) उसको देवगण प्राप्त हुए। (सा अर्धमासे सम् अभवत्) वह आधे मास भर उनके संग रही। (तस्मात्) इसलिये (देवेभ्यः अर्धमासे वषट् कुर्वन्ति) देवगण विद्वान् लोगों को आधे मास पर प्रति पक्ष, पर्व के दिन ‘वषट्’ सत्कार सहित पालन रूप से अन्न आदि दिया जाता है। (यः एवं वेद) जो इस प्रकार के रहस्य को जान लेता है वह (देवयानं पन्थां प्रजानाति) देवयान मार्ग को भली प्रकार जान लेता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वाचार्य ऋषिः। विराड् देवता। १ चतुष्पदा विराड् अनुष्टुपू। २ आर्ची त्रिष्टुप्। ३,५,७ चतुष्पदः प्राजापत्याः पंक्तयः। ४, ६, ८ आर्चीबृहती।
इंग्लिश (4)
Subject
Virat
Meaning
That is why people offer half monthly homage to the Devas. One who knows this knows the Devayana path.
Translation
Therefore, they offer oblations with vašat to the enlightened ones every fortnight (ardhamasa). He, who knows it thus, knows well the path, the enlightened ones tread.
Translation
It is why the men pay their respect to the enlightened persons, He who knows this knows the path named as Devayana.
Translation
Hence the sages are respectfully offered food every half month. He who knows this, knows the path the sages have trodden.
Footnote
Every half month: On occasion of Amavasya (full darkness) Furnas, (full moon).
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(देवेभ्यः) किरणानामर्थं किरणानां सकाशाद्वा (वषट्) अ० १।११।१। वह प्रापणे−डषटि। रसप्रापणम् (कुर्वन्ति) निष्पादयन्ति (देवयानम्) किरणैर्गन्तव्यम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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