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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 10 के मन्त्र
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अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 13
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - विराट्
छन्दः - चतुष्पदा साम्नी जगती
सूक्तम् - विराट् सूक्त
46
सोद॑क्राम॒त्सा स॒र्पानाग॑च्छ॒त्तां स॒र्पा उपा॑ह्वयन्त॒ विष॑व॒त्येहीति॑।
स्वर सहित पद पाठसा । उत् । अ॒क्रा॒म॒त् । सा । स॒र्पान् । आ । अ॒ग॒च्छ॒त् । ताम् । स॒र्पा: । उप॑ । अ॒ह्व॒य॒न्त॒ । विष॑ऽवति । आ । इ॒हि॒ । इति॑ ॥१४.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
सोदक्रामत्सा सर्पानागच्छत्तां सर्पा उपाह्वयन्त विषवत्येहीति।
स्वर रहित पद पाठसा । उत् । अक्रामत् । सा । सर्पान् । आ । अगच्छत् । ताम् । सर्पा: । उप । अह्वयन्त । विषऽवति । आ । इहि । इति ॥१४.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्मविद्या का उपदेश।
पदार्थ
(सा उत् अक्रामत्) वह [विराट्] ऊपर चढ़ी, (सा) वह (सर्पान्) सर्पों में (आ अगच्छत्) आयी, (ताम्) उसको (सर्पाः) सापों ने (उप अह्वयन्त) पास बुलाया, “(विषवति) हे विषैली ! (आ इहि) तू आ, (इति) बस” ॥१३॥
भावार्थ
उस विराट् ईश्वरशक्ति के प्रभाव से सर्प आदि जीव अपने कर्मफल द्वारा विषधारी होते हैं ॥१३॥
टिप्पणी
१३−(सर्पान्) भुजङ्गमान् (विषवति) हे विषयुक्ते। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
सर्पों द्वारा विष-दोहन
पदार्थ
१. (सा उदक्रामत्) = वह विराट् उत्क्रान्त हुई। (सा सर्पान् आगच्छत्) = वह [सप गती] गतिशील व्यक्तियों को प्राप्त हुई। (ताम्) = उस विराट् को (सर्पाः उपाह्वयन्त) = इन गतिशील पुरुषों ने पुकारा कि (विषवति एहि इति) = [विषम्-जलम्] हे प्रशस्त जलवाली! आओ तो। उत्तम राष्ट्र व्यवस्था में पानी का समुचित प्रबन्ध होता है। (तस्याः) = उस विराट् का (वत्स:) = प्रिय वह क्रियाशील व्यक्ति (तक्षक:) = [तक्षक त्विषेर्वा] ज्ञान की दीप्सिवाला व (वैशालेय:) = उदार चित्तवृत्तिवाला [विशाला का पुत्र] (आसीत्) = था। इसका (पात्रम्) = यह रक्षणीय शरीर (अलाबुपात्रम्) = [लबि अवलंसने] न चूनेवाली शक्ति का पात्र होता है। इसके शरीर से शक्ति का अवलंसन नहीं होता। २. (ताम्) = उस विराट् को (धृतराष्ट्र:) = शरीररूप राष्ट्र का धारण करनेवाले (ऐरावतः) = [इरा-Water] प्रशस्त जलवाले-प्रशस्त जल से शरीर को नीरोग रखनेवाले ने (अधोक्) = दुहा। (तां विषम् एव अधोक्) = उसने प्रशस्त जल का ही दोहन किया। (सर्पा:) = ये क्रियाशील जीवनवाले व्यक्ति (तत् विषम् उपजीवन्ति) = उस जल के आधार से जीवन-यात्रा को सुन्दरता से निभाते हैं। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार जल के महत्व को समझता है, वह अपने तथा (उपजीवनीयः भवति) = औरों के लिए जीवन में सहायक होता है।
भावार्थ
उत्तम राष्ट्र-व्यवस्था होने पर क्रियाशील व्यक्ति प्रशस्त जल पाकर जीवन को स्वस्थ बना पाते हैं। ये शरीररूप राष्ट्र का उस प्रशस्त जल द्वारा धारण करते हुए औरों के लिए भी सहायक होते हैं।
भाषार्थ
(सा) वह विराट्-व्यवस्था (उदक्रामत्) उत्क्रान्त हुई (सा) वह (सर्पान्) सर्पों को (आगच्छत्) प्राप्त हुई, (ताम्) उस को (सः) सर्पों ने (उप) अपने पास (अह्वयन्त) बुलाया कि (विषवति) हे विषवाली ! (एहि) आ (इति) इस प्रकार।
टिप्पणी
[सर्प द्वारा सांप-कृमि अभिप्रेत नहीं, अपितु वे मनुष्यः अभिप्रेत हैं जो कि सर्प सदृश पर-छिद्रों में प्रवेश कर उन की हत्या के लिये, विष प्रयोग करते हैं। उन की राज्य-व्यवस्था विषप्रयोगाश्रित होती है।]
विषय
विराड् रूप गौ से ऊर्जा, पुण्य गन्ध, तिरोधा और विष का दोहन।
भावार्थ
(सा उद् अक्रामत्) वह ऊपर उठी। (सा सर्पान् आअगच्छत्) वह सर्पों के पास आई। (तां सर्पाः विषवति एहि इति उपाह्वयन्त) सर्पों ने उसे ‘हे विषवति आओ’ इस प्रकार सादर बुलाया। (तस्याः) उसका (तक्षकः वैशालेयः वत्सः आसीत्) ‘वैशालेय तक्षक’ वत्स था। (अलाबुपात्रम् पात्रम्) अलाबुपात्र पात्र था। (तां धृतराष्ट्रः ऐरावतः अधोक्) उसको धृतराष्ट्र ऐरावत दोहन किया। (ताम् विषम् एव अधोक्) उससे विष ही प्राप्त किया (तत् विषम् सर्पाः उपजीवन्ति) उस विष के आधार पर सर्प प्राण धारण करते हैं। (यः एवं वेद उपजीवनीयो भवति) जो इस रहस्य को जानता है वह भी दूसरों को जीवन देने में समर्थ—योग्य होता है। काद्रवेयो राजा इत्याह। तस्य सर्पाः विशः। त इम आसते। इति सर्पाश्च सर्पविदश्चोपसमेता भवन्ति। तान् उपदिशति सर्पविद्या वेदः। श० १३। ४। ३। ९॥ उसी विराट् का एक रूप विष है जिसको महानाग प्राप्त करते हैं जो कटुतुम्बी आदि वनस्पतियों या सर्प की विष की थैलियों में प्राप्त होता है। चमकीले शरीर वाले सांप उस विष को प्राप्त करते हैं, सर्प उसपर जीते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वाचार्य ऋषिः। विराट् देवता। १, १३ चतुष्पादे साम्नां जगत्यौ। १०,१४ साम्नां वृहत्यौ। १ साम्नी उष्णिक्। ४, १६ आर्च्याऽनुष्टुभौ। ९ उष्णिक्। ८ आर्ची त्रिष्टुप्। २ साम्नी उष्णिक्। ७, ११ विराड्गायत्र्यौ। ५ चतुष्पदा प्राजापत्या जगती। ६ साम्नां बृहती त्रिष्टुप्। १५ साम्नी अनुष्टुप्। षोडशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Virat
Meaning
She, Virat, arose and proceeded to the serpents. The serpents addressed her and prayed: O bearer of poison, come and give us the poison.
Translation
She moved up. She came to serpents (sarpah). The serpents called to her : "O poisonous one, come here."
Translation
This Virat mounted up and this approached the venomous reptile. They Cried ‘Come Venomous! Come hither.
Translation
The glory of God arose. She approached the serpents. The serpents called her, venomous, come heither!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३−(सर्पान्) भुजङ्गमान् (विषवति) हे विषयुक्ते। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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