अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 2
ऋषिः - शुक्रः
देवता - कृत्यादूषणम् अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - त्रिपदा विराड्गायत्री
सूक्तम् - प्रतिसरमणि सूक्त
63
अ॒यं म॒णिः स॑पत्न॒हा सु॒वीरः॒ सह॑स्वान्वा॒जी सह॑मान उ॒ग्रः। प्र॒त्यक्कृ॒त्या दू॒षय॑न्नेति वी॒रः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । म॒णि: । स॒प॒त्न॒ऽहा । सु॒ऽवीर॑: । सह॑स्वान् । वा॒जी । सह॑मान: । उ॒ग्र: । प्र॒त्यक् । कृ॒त्या: । दूषय॑न् । ए॒ति॒ । वी॒र: ॥५.२॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं मणिः सपत्नहा सुवीरः सहस्वान्वाजी सहमान उग्रः। प्रत्यक्कृत्या दूषयन्नेति वीरः ॥
स्वर रहित पद पाठअयम् । मणि: । सपत्नऽहा । सुऽवीर: । सहस्वान् । वाजी । सहमान: । उग्र: । प्रत्यक् । कृत्या: । दूषयन् । एति । वीर: ॥५.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
हिंसा के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(अयम्) यह [प्रसिद्ध वेदरूप] (मणिः) मणि [उत्तम नियम], (सपत्नहा) प्रतियोगियों का नाश करनेवाला, (सुवीरः) बड़े वीरोंवाला, (सहस्वान्) महाबली (वाजी) पराक्रमी, (सहमानः) [शत्रुओं का] हरानेवाला, (उग्रः) तेजस्वी (वीरः) वीर होकर (कृत्याः) हिंसाओं को (दूषयन्) नाश करता हुआ (प्रत्यक्) सन्मुख (एति) चलता है ॥२॥
भावार्थ
पराक्रमी वीर पुरुष वैदिक नियमों को धारण करके विघ्नों को हटाते हुए आगे बढ़ते हैं ॥२॥
टिप्पणी
२−(सुवीरः) शोभनैर्वीरैर्युक्तः (सहस्वान्) बलवान् (वाजी) पराक्रमी (सहमानः) शत्रूणामभिभविता (उग्रः) प्रचण्डः (प्रत्यक्) अभिमुखम्। सम्मुखम् (कृत्याः) अ० ४।९।५। हिंसाः। विघ्नान् (दूषयन्) खण्डयन् (एति) गच्छति। अन्यद् गतम्-म० १ ॥
विषय
'सपत्नहा' मणि:
पदार्थ
१. (अयम्) = यह (मणि:) = वीर्यरूप मणि (सपत्नहा) = शरीरस्थ रोगरूप शत्रुओं को नष्ट करनेवाला है। (सुवीर:) = रोगरूप शत्रुओं को कम्पित करनेवाला वीर है, (सहस्वान्) = बलवान् है। यह मणि (वाजी) = अत्यधिक शक्ति देनेवाली, (सहमान:) = शत्रुओं को कुचलनेवाली व (उग्रः) = उद्गुर्ण बलवाली है। २. यह (वीरः) = शत्रुओं को कम्पित करनेवाली मणि (प्रत्यक्) = हमारे अन्दर (कृत्या:) = छेदन-भेदन को (दूषयन्) = दूषित करती हुई-रोगों द्वारा उत्पन्न होनेवाली सब प्रकार की हिंसाओं को विनष्ट करती हुई एति-प्राप्त होती है।
भावार्थ
शरीर में सुरक्षित वीर्यरूपी मणि रोगों का पराभव करती है। शरीर में रोग-जनित सब छेदन-भेदन को दूर करती है।
भाषार्थ
(अयम् मणिः) यह मणि (सपत्नहा) शत्रु का हनन कर्त्ता, (सुवीरः) उत्तम वीरों वाला, (सहस्वान्) बलवान्, (वाजी) वेग वाला, (सहमानः) पराभवकर्ता (उग्र) तथा उग्र स्वभाव वाला है। (वीर) यह वीर (कृत्याः) कर्तन योग्य, छेदन-भेदन करने योग्य शत्रु सेनाओं को (दूषयन्) दूषित करता हुआ (प्रत्यक्) हमारे अभिमुख (एति) आता है।
टिप्पणी
[मन्त्र में कथित विशेषण वीर सेनाध्यक्ष के सम्बन्ध में चरितार्थ होते हैं, काष्ठनिर्मित मणि के सम्बन्ध में नहीं। दूषयन्- दुष वैकृत्ये (दिवादिः) वैकृत्य का अर्थ है विकृति। शत्रु सेना को छिन्न-भिन्न कर भगा देना, और उन्हें तितर-बितर कर देना यह शत्रुसेना को दूषित करना है। प्रत्यक् एति= विजय पाकर सेनाध्यक्ष निज प्रजा के अभिमुख लौटता है। कृत्याः= पृतनाः (मन्त्र ८)]।
विषय
शत्रुनाशक सेनापति की नियुक्ति।
भावार्थ
सब अगले मन्त्रों में भी मणि शब्द से मणिवान् या शत्रु स्तम्भनकारी का बोध होता है। (अयं) यह (मणिः) शूरवीरता के पदक से सुशोभित सेनापति (सपत्नहा) अपने शत्रुओं का नाशक, (सुवीरः) स्वयं उत्तम वीर और उत्तम उत्तम वीर पुरुषों को अपने शासन में रखने वाला, (सहस्वान्) बलवान्, भारी शत्रु बल को भी थामनेवाला, (वाजी) वेगवान्, अश्व के समान बलवान्, (सहमानः) शत्रुओं को दबाता हुआ, (उग्र) रण में बड़ा भयकारी है। वही (वीरः) वीर (कृत्याः) शत्रुओं के गुप्त, घातक प्रयोगों कों, शत्रु की चालों को (दूषयन्) बेकार करता हुआ (एति) आता है। सायण तथा ग्रिफ़िथ आदि विद्वानों ने यह सूक्त समस्त ‘स्राक्त्य मणि’ की स्तुति में लगा दिया है। परन्तु मणि या पदक पदार्थ जड़ होने से ये विशेषण उसमें संगत नहीं है। प्रत्युत लक्षणा से उसके धारण करने वाले सेनापति में संगत होते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शुक्र ऋषिः। कृत्यादूषणमुत मन्त्रोक्ता देवताः। १, ६, उपरिष्टाद् बृहती। २ त्रिपाद विराड् गायत्री। ३ चतुष्पाद् भुरिग् जगती। ७, ८ ककुम्मत्यौ। ५ संस्तारपंक्तिर्भुरिक्। ९ पुरस्कृतिर्जगती। १० त्रिष्टुप्। २१ विराटत्रिष्टुप्। ११ पथ्या पंक्तिः। १२, १३, १६-१८ अनुष्टुप्। १४ त्र्यवसाना षट्पदा जगती। १५ पुरस्ताद बृहती। १३ जगतीगर्भा त्रिष्टुप्। २० विराड् गर्भा आस्तारपंक्तिः। २२ त्र्यवसाना सप्तपदा विराड् गर्भा भुरिक् शक्वरी। द्वाविंशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Pratisara Mani
Meaning
This jewel distinction is a mark of the destroyer of enemies, noble warrior among the brave, mighty powerful, victorious, brilliant blazing, the hero that goes forward destroying the violent evil doers.
Translation
This blessing is the slayer of rivals, very heroic, full of over whelming power, speedy, over-whelmer and formidable. This scatterer of enemies comes to the fore destroying the evil plottings of the enemies.
Translation
This Mani is the sign of Killing enemies, this is the mark of good heroism, this is the sign of victory, this is the symbol of strength, conquest and might. Let this succeed ruining the enemies.
Translation
This Vedic Law, foe-slayer, giver of valiant sons, strong, powerful, victorious and mighty, goes bravely forth crushing all impediments.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(सुवीरः) शोभनैर्वीरैर्युक्तः (सहस्वान्) बलवान् (वाजी) पराक्रमी (सहमानः) शत्रूणामभिभविता (उग्रः) प्रचण्डः (प्रत्यक्) अभिमुखम्। सम्मुखम् (कृत्याः) अ० ४।९।५। हिंसाः। विघ्नान् (दूषयन्) खण्डयन् (एति) गच्छति। अन्यद् गतम्-म० १ ॥
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