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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अथर्वा देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - विराट् सूक्त
    175

    कुत॒स्तौ जा॒तौ क॑त॒मः सो अर्धः॒ कस्मा॑ल्लो॒कात्क॑त॒मस्याः॑ पृथि॒व्याः। व॒त्सौ वि॒राजः॑ सलि॒लादुदै॑तां॒ तौ त्वा॑ पृच्छामि कत॒रेण॑ दु॒ग्धा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कुत॑: । तौ । जा॒तौ । क॒त॒म: । स: । अर्ध॑: । कस्मा॑त् । लो॒कात् । क॒त॒मस्या॑: । पृ॒थि॒व्या: । व॒त्सौ । वि॒ऽराज॑: । स॒लि॒लात् । उत् । ऐ॒ता॒म् । तौ । त्वा॒ । पृ॒च्छा॒मि॒ । क॒त॒रेण॑ । दु॒ग्धा ॥९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कुतस्तौ जातौ कतमः सो अर्धः कस्माल्लोकात्कतमस्याः पृथिव्याः। वत्सौ विराजः सलिलादुदैतां तौ त्वा पृच्छामि कतरेण दुग्धा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कुत: । तौ । जातौ । कतम: । स: । अर्ध: । कस्मात् । लोकात् । कतमस्या: । पृथिव्या: । वत्सौ । विऽराज: । सलिलात् । उत् । ऐताम् । तौ । त्वा । पृच्छामि । कतरेण । दुग्धा ॥९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्म विद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (कुतः) कहाँ से (तौ) वे दोनों [ईश्वर और जीव] (जातौ) प्रकट हुए हैं, (कतमः) [बहुतों में से] कौन सा (सः) वह (अर्धः) ऋद्धिवाला है, (कस्मात् लोकात्) कौन से लोक से और (कतमस्याः) [बहुतसियों में से] कौन सी (पृथिव्याः) पृथिवी से (विराजः) विविध ऐश्वर्यवाली [ईश्वर शक्ति, सूक्ष्म प्रकृति] के (वत्सौ) बतानेवाले (सलिलात्) व्याप्तिवाले [समुद्ररूप अगम्य दशा] से (उत् ऐताम्) वे दोनों उदय हुए हैं, (तौ) उन दोनों को (त्वा) तुझ से (पृच्छामि) मैं पूँछता हूँ, वह [विराट्] (कतरेण) [दो के बीच] कौन से करके (दुग्धा) पूर्ण की गई है ॥१॥

    भावार्थ

    ईश्वर और जीव अपने सामर्थ्य से सब लोकों और सब कालों में व्याप्त हैं, उन्हीं दोनों से प्रकृति के विविध कर्म प्रकट होते हैं, ईश्वर महा ऋद्धिमान् है और वही प्रकृति को संयोग-वियोग आदि चेष्टा देता है ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(कुतः) कस्मात् स्थानात् (तौ) ईश्वरजीवौ (जातौ) प्रादुर्भूतौ (कतमः) वा बहूनां जातिपरिप्रश्ने डतमच्। पा० ५।३।९३। किम्-डतमच्। बहूनां मध्ये कः (सः) ईश्वरः (अर्धः) ऋधु वृद्धौ-घञ्। प्रवृद्धः। ऋद्धिमान् (कस्मात्) (लोकात्) भुवनात् (कतमस्याः) कतम-टाप्। बह्वीनां मध्ये (कस्याः) (पृथिव्याः) भूलोकात् (वत्सौ) वृतॄवदिवचिवसि०। उ० ३।६२। वद व्यक्तायां वाचि, वा वस निवासे आच्छादने च-स प्रत्ययः। वदितारौ। व्याख्यातारौ (विराजः) सत्सूद्विषद्रुहदुह०। पा० ३।२।६—१। वि+राजृ दीप्तौ ऐश्वर्ये च-क्विप्। विविधैश्वर्याः। ईश्वरशक्तेः। प्रकृतेः (सलिलात्) सलिकल्यनिमहि०। उ० १।५४। पल गतौ-इलच्। व्यापनस्वभावात्। समुद्ररूपात्। अगम्यविधानात् (उदैताम्) इण् गतौ-लङ्। उद्गच्छताम् (तौ) ईश्वरजीवौ (त्वा) विद्वांसम् (पृच्छामि) अहं जिज्ञासे (कतरेण) किंयत्तदोर्निर्धारणे द्वयोरेकस्य डतरच्। पा० ५।३।९२। किम्-डतरच्। ईश्वरजीवयोर्मध्ये केन (दुग्धा) प्रपूरिता सा विराट् ॥

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    विषय

    वत्सौ

    पदार्थ

    १. प्रभ विराट हैं-विशिष्ट दीतिवाले है। प्रकृति सलिलरूप है-सत् है और सारा संसार इसमें लीन हुआ-हुआ है, जैसे बच्चा मातृगर्भ में। प्रकृति के इस रूप को 'आप:' भी कहा गया है। यह प्रारम्भ में सूक्ष्म जल-कणों के बादल की भाँति व्याप्त-सी हो रही है तभी इसे 'नभस्' [nebula] नाम भी दिया जाता है। प्रभु और प्रकृति इस चराचर जगत् के पिता व माता हैं। पञ्चभूतों से बना सम्पूर्ण जगत् जड़ है। इन्हीं पञ्चभूतों से बना शरीर जब आत्मा को प्राप्त होता है तब वह चेतन हो उठता है। शरीरधारी जीव चेतनजगत् कहाता है। यह चेतन व जड़ जगत् ही चराचर संसार है। २. मन्त्र के प्रश्न है कि (कुतः तौ जातौ) = वे 'जड़-चेतन' कहाँ से प्रादुर्भूत हो गये। (कतम: स: अर्ध:) = कौन-सी वह [ऋधु वृद्धी] ऋद्धिमान् सत्ता है, जिसने कि इन्हें जन्म दिया? (कस्मात् लोकात्) = किस [लोक दर्शने] प्रकाशमय सत्ता से और (कतमस्याः पृथिव्याः) = किस फैले हुए तत्त्व से [प्रथ विस्तारे] ये जड़-चेतन उत्पन्न हो गये? ३. इन प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहते हैं कि (वत्सौ) = ये दोनों जड़-चेतनारूप वत्स [सन्तान] (विराज:) = उस विशिष्ट दीसिवाले प्रभु से तथा (सलिलात्) = सलिलरूप प्रकृति से (उत् एताम्) = उद्गत हुए। प्रश्नकर्ता पुन: पूछता है कि (तौ त्वा पृच्छामि) = उन दोनों बसों को लक्ष्य करके ही तुझसे पूछता हूँ कि कतरेण (दुग्धा) = इन दोनों में से किसने वेदवाणीरूप गौ का दोहन किया-प्रभु से दी गई वेदवाणी को कौन प्राप्त हुआ?

    भावार्थ

    प्रभु विराट् हैं, प्रकृति सलिलरूप से चारों ओर फैली हुई है। प्रभुरूप पिता प्रकृतिरूप माता में चराचर जगद्रूप दो वत्सों को जन्म देते हैं। इनमें से चेतन [चर] जीवरूप वत्स प्रभु से वेदज्ञान प्राप्त करता है।

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    भाषार्थ

    (कुतः) किस उपादान कारण से (तौ) वे दो (जातौ) पैदा हुए, (कतमः) कौन सा (सः) वह (अर्धः) समृद्ध१ भाग था, (कस्मात् लोकात्) किस लोक से, तथा (कतमस्याः२ पृथिव्याः) किस पृथिवी से। (विराजः) विराट् के (वत्सौ) दो वत्स (सलिलात्) सलिल से (उदेताम्) उदित हुए, (तौ) उन दो के सम्बन्ध में (त्वा पृच्छामि) तुझे मैं पूछता हूं कि (कतरेण) दो में से किस ने (दुग्धा) विराट् दोही थी।

    टिप्पणी

    ["तौ" द्वारा सूर्य और चन्द्रमा का निर्देश हुआ है, और "कुतः" द्वारा उपादान कारण का। सूर्य और चन्द्रमा प्रकृति रूपी उपादान कारण से उत्पन्न हुए। “कतमः" प्रकृति का पूर्व-दिशा का भाग था, जोकि “अर्धः" अर्थात् समृद्ध हुआ था, घना हुआ था, जहाँ से कि सूर्य और चन्द्रमा पैदा हुए। इस दिशा को "पूर्वे अर्धे" कहा है, अथर्व ० (४।२।६)। प्रकृति के भिन्न-भिन्न भागों से भिन्न-भिन्न नक्षत्र तथा तारा पैदा हुए,– यह दर्शाने के लिये “कतमः” में “तमप्" प्रत्यय हुआ है। "तमप्" प्रत्यय कम से कम तीन का सूचक है, जोकि प्रकृति के भिन्न-भिन्न भागों का निर्देशक है। "कस्मात् लोकात्" द्वारा प्रश्न किया है कि सूर्य किस लोक से पैदा हुआ। उत्तर से स्पष्ट है कि द्युलोक से। सूर्य का स्थान द्युलोक ही है। चन्द्रमा के सम्बन्ध में पूछा है कि वह किस पृथिवी से पैदा हुआ। पृथिवी त्रिविधा है, जलभाग, स्थलभाग और पर्वतभाग इस दृष्टि से कहा है कि "चन्द्रमा" पृथिवी के किस भाग से उत्पन्न हुआ। चन्द्रमा पृथिवी की परिक्रमा करता है, अतः पृथिवी से पैदा हुआ कहा है, जैसे कि ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते और सूर्य से पैदा हुए हैं। सम्भवतः जहां समुद्रजल है उस स्थल से चन्द्रमा पैदा हुआ हो। सूर्य और चन्द्रमा "विराट्" नाम वाली प्रकृति से पैदा हुए थे, इस लिये इन्हें "विराजः वत्सौ" कहा है। ये दोनों "सलिलात्" "सति लीनं सलिलम्" प्रलय काल में सत्परमेश्वर में लीन प्रकृति से "उदैताम्" उदित हुए थे। तथा परमेश्वर और जीव इन दो में से "कतरेण" अर्थात् परमेश्वर द्वारा प्रकृति दोही गई थी, जिस से कि सूर्य और चन्द्रमा पैदा हुए। जीवात्मा इस दोहन में निमित्त कारण थे, भोगापवर्गदृष्टि से]। [१. इसलिये ग्रह, सूर्य, नक्षत्र और तारागण, निज धुरी पर, पश्चिम से पूर्व की ओर घूमते हैं, Revolve कर रहे हैं। २. पैप्पलाद शाखा में "कतमस्याः" के स्थान में "कतरक्ष्याः" पाठ है। “तरप्" प्रत्यय द्वारा दो पृथिवियां सूचित की है, सम्भवतः पृथिवी और मंगल। मंगल को "भौम" कहते हैं, अर्थात् भूमि से उत्पन्न हुआ। सम्भवतः जैसे भूमि में मंगल की उत्पत्ति सूचित की है, इसी प्रकार पृथिवी से मूलतः चन्द्रमा भी उत्पन्न हुआ हो या मंगल फटकर चन्द्रमा पैदा हुआ है और पृथिवी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के अधिक होने से चन्द्रमा पृथिवी का उपग्रह हो गया हो। और पृथिवी के सामुद्रिक अवतान अर्थात् गढ़े से हिमालय पर्वत का उत्थान हुआ हो। अर्थात् इस गढ़े का लावा ही हिमालय के उत्थानरूप में प्रकट हुआ हो।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Virat Brahma

    Meaning

    Whence do those two arise: Purusha and Prakrti, man and woman, Prana and Rayi, Agni and Soma, Sun and Moon? From which world of mystery? From which highest universe of what existence? And what was that Supreme Superabundant, Eternal, Infinite Source? The two evolutes, Rtam and Satyam, that arose from that ocean of mystery, of those I ask you, O Master, I ask by whom was the Eternal Mother Cow (Prakrti) milked so that the two emerged?

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    Subject

    Mantroktah

    Translation

    Where from those two were born ? Which half part was that ? From what world, (and) from which of the earths did the two calves of Viraj rose out of water ? I ask you about those two. By which of them was she milked ?

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    Translation

    Whence were these two Vatsa God and soul manifested, what is that most important thing? from what world and from which earth they have their being. These two vatsa, God and soul came into their manifestation from the tenacious matter which has many forms in it and I, the disciple ask you O, learned teacher as whosoever of these two milks the cow-like matters.

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    Translation

    Whence were these two (God and soul) manifested. Out of many that God possesses supernatural powers. From which world, from which earth have they, the expositors of minute Matter come into being from an ocean like unfathomable state! I ask thee of these twains, who out of them has perfected Matter.

    Footnote

    They: God and soul. Thee: A learned person God and soul, out of their power, exist in all worlds and at all times. Through them are brought into existence all the material forms of matter. God possesses supernatural powers. He creates and dissolves the material universe.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(कुतः) कस्मात् स्थानात् (तौ) ईश्वरजीवौ (जातौ) प्रादुर्भूतौ (कतमः) वा बहूनां जातिपरिप्रश्ने डतमच्। पा० ५।३।९३। किम्-डतमच्। बहूनां मध्ये कः (सः) ईश्वरः (अर्धः) ऋधु वृद्धौ-घञ्। प्रवृद्धः। ऋद्धिमान् (कस्मात्) (लोकात्) भुवनात् (कतमस्याः) कतम-टाप्। बह्वीनां मध्ये (कस्याः) (पृथिव्याः) भूलोकात् (वत्सौ) वृतॄवदिवचिवसि०। उ० ३।६२। वद व्यक्तायां वाचि, वा वस निवासे आच्छादने च-स प्रत्ययः। वदितारौ। व्याख्यातारौ (विराजः) सत्सूद्विषद्रुहदुह०। पा० ३।२।६—१। वि+राजृ दीप्तौ ऐश्वर्ये च-क्विप्। विविधैश्वर्याः। ईश्वरशक्तेः। प्रकृतेः (सलिलात्) सलिकल्यनिमहि०। उ० १।५४। पल गतौ-इलच्। व्यापनस्वभावात्। समुद्ररूपात्। अगम्यविधानात् (उदैताम्) इण् गतौ-लङ्। उद्गच्छताम् (तौ) ईश्वरजीवौ (त्वा) विद्वांसम् (पृच्छामि) अहं जिज्ञासे (कतरेण) किंयत्तदोर्निर्धारणे द्वयोरेकस्य डतरच्। पा० ५।३।९२। किम्-डतरच्। ईश्वरजीवयोर्मध्ये केन (दुग्धा) प्रपूरिता सा विराट् ॥

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