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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 14
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - शाला छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शाला सूक्त
    58

    अ॒ग्निम॒न्तश्छा॑दयसि॒ पुरु॑षान्प॒शुभिः॑ स॒ह। विजा॑वति॒ प्रजा॑वति॒ वि ते॒ पाशां॑श्चृतामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्निम् । अ॒न्त: । छा॒द॒य॒सि॒ । पुरु॑षान् । प॒शुऽभि॑: । स॒ह । विजा॑ऽवति । प्रजा॑ऽवति । वि । ते॒ । पाशा॑न् । चृ॒ता॒म॒सि॒ ॥३.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निमन्तश्छादयसि पुरुषान्पशुभिः सह। विजावति प्रजावति वि ते पाशांश्चृतामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्निम् । अन्त: । छादयसि । पुरुषान् । पशुऽभि: । सह । विजाऽवति । प्रजाऽवति । वि । ते । पाशान् । चृतामसि ॥३.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 14
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    हिन्दी (3)

    विषय

    शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

    पदार्थ

    [हे शाला !] (अग्निम्) अग्नि को और (पुरुषान्) पुरुषों को (पशुभिः सह) पशुओं सहित (अन्तः) अपने भीतर (छादयसि) तू ढक लेती है। (विजावति) हे विविध उत्पन्न पदार्थोंवाली ! और (प्रजावति) हे उत्तम प्रजाओंवाली ! (ते) तेरे (पाशान्) बन्धनों को (वि चृतामसि) हम अच्छे प्रकार ग्रन्थित करते हैं ॥१४॥

    भावार्थ

    मनुष्य यज्ञ आदि की सिद्धि और मनुष्य और पशुओं के लिये सुखदायी घर बनावें ॥१४॥

    टिप्पणी

    १४−(अग्निम्) यज्ञस्य पाकस्य वा पावकम् (अन्तः) मध्ये (छादयसि) संवृणोषि (पुरुषान्) मनुष्यान् (पशुभिः) गवादिभिः (सह) अन्यत् पूर्ववत् म० १३ ॥

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    विषय

    अग्रिहोत्र व नीरोगता

    पदार्थ

    १. हे (विजावति) = विविध पदार्थों को उत्पन्न करनेवाली (प्रजावति) = उत्तम सन्तानोंवाली शाले! तू (अन्त:) =  अपने अन्दर (अग्निम्) = यज्ञाग्नि को (छादयसि) = सुरक्षितरूप में रखती है, (पशुभिः सह) = गौ आदि पशुओं के साथ (पुरुषान्) = इस घर के पुरुषों को भी सुरक्षित रखनेवाली है। नियमपूर्वक अग्निहोत्र होने से रोग नहीं होते और सभी स्वस्थ रहते हैं। २. हे शाले! हम (ते पाशान्) = तेरे जालों व बन्धनों को (विचृतामसि) = विशेषरूप से ग्रथित करते हैं।

    भावार्थ

    जिस घर में नियमपूर्वक अग्निहोत्र होता है, वहाँ सब पुरुष और पशु स्वस्थ रहते हैं। प्रशस्त प्रजाओंवाले इस घर के बन्धनों को हम सुदृढ़ करते हैं।

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    भाषार्थ

    हे शाला ! तू (अग्निम्) [अग्नि को], (पशुभिः सह) और पशुओं के साथ (पुरुषान्) पुरुषों को (अन्तः) अपने अन्दर (छादयसि) आच्छादित करती है। (विजावति) हे विविध जीव-जन्तुओं वाली ! (प्रजावति) हे प्रकृष्ट सन्तानों वाली शाला ! (ते पाशान्) तेरे फन्दों, रस्सियों को (विचृतामसि) हम दृढ़ ग्रथित करते हैं।

    टिप्पणी

    [अग्निम्= गार्हपत्याग्नि ! रसोई की अग्नि के लिये देखो (मन्त्र ७)]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Good House

    Meaning

    Sweet home, you cover, shelter and maintain the homely fire and the sacred yajna, and the people along with the animals. O creative home and family, O mistress of your children, we thus define the life to be lived in here.

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    Translation

    Within you, you give shelter to fire, to men along with the cattle. O mansion rich in births and full of children, we unite your céremonial barring nets.

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    Translation

    This house gives shelter within to men with domestic animals and keeps up the fire of yajna enkindled always. I loose the bands and fastenings of this house which is fortunate with the progeny and children of the persons living in it.

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    Translation

    O house, thou shelterest within thee, fire, and people with domestic beasts. We strengthen the bonds that fasten thee, full of variety of articles and children.

    Footnote

    Fire that is used for cooking food and performing Agnihotar. Garhpatya and Ahvniya fire.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १४−(अग्निम्) यज्ञस्य पाकस्य वा पावकम् (अन्तः) मध्ये (छादयसि) संवृणोषि (पुरुषान्) मनुष्यान् (पशुभिः) गवादिभिः (सह) अन्यत् पूर्ववत् म० १३ ॥

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