अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 16
ऊर्ज॑स्वती॒ पय॑स्वती पृथि॒व्यां निमि॑ता मि॒ता। वि॑श्वा॒न्नं बिभ्र॑ती शाले॒ मा हिं॑सीः प्रतिगृह्ण॒तः ॥
स्वर सहित पद पाठऊर्ज॑स्वती । पय॑स्वती । पृ॒थि॒व्याम् । निऽमि॑ता । मि॒ता । वि॒श्व॒ऽअ॒न्नम् । बिभ्र॑ती । शा॒ले॒ । मा । हिं॒सी॒: । प्र॒ति॒ऽगृ॒ह्ण॒त: ॥३.१६॥
स्वर रहित मन्त्र
ऊर्जस्वती पयस्वती पृथिव्यां निमिता मिता। विश्वान्नं बिभ्रती शाले मा हिंसीः प्रतिगृह्णतः ॥
स्वर रहित पद पाठऊर्जस्वती । पयस्वती । पृथिव्याम् । निऽमिता । मिता । विश्वऽअन्नम् । बिभ्रती । शाले । मा । हिंसी: । प्रतिऽगृह्णत: ॥३.१६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]
पदार्थ
(शाले) हे शाला ! (पृथिव्याम्) उचित भूमि पर (मिता) परिमाणयुक्त (निमिता) जमाई गई, (ऊर्जस्वती) बल पराक्रम बढ़ानेवाली, (पयस्वती) जल और दुग्ध आदि से पूर्ण, (विश्वान्नम्) सम्पूर्ण अन्न को (बिभ्रती) धारण करती हुई तू (प्रतिगृह्णतः) ग्रहण करने हारों को (मा हिंसीः) मत पीड़ा दे ॥१६॥
भावार्थ
जो मनुष्य उचित भूमि पर सोच-विचार कर घर बनाते हैं, वे बल पराक्रम बढ़ाकर दुग्ध, अन्न आदि पदार्थ संग्रह करके स्वस्थता के साथ सदा सुखी रहते हैं ॥१६॥
टिप्पणी
१६−(ऊर्जस्वती) बलपराक्रमवर्धयित्री (पयस्वती) जलदुग्धादियुक्ता (पृथिव्याम्) उचितभूम्याम् (निमिता) प्रतिष्ठापिता (मिता) परिमाणयुक्ता (विश्वान्नम्) सर्वान्नम् (बिभ्रती) धारयन्ती (शाले) (मा हिंसीः) मा पीडय (प्रतिगृह्णतः) स्वीकर्तॄन् पुरुषान् ॥
विषय
ऊर्जस्वती पयस्वती
पदार्थ
१. हे (शाले) = गृह ! तू (ऊर्जस्वती) = अन्न और रसवाली है, (पयस्वती) = प्रशस्त दूध से परिपूर्ण है। (पृथिव्याम्) = इस पृथिवी पर (मिता) = बड़े माप से (निमिता) ृ बनाई गई है। २. (विश्वान्नम्) ृ सब अत्रों को (बिभ्रती = ृ धारण करती हुई तू (प्रतिगृह्णतः मा हिंसी:) = तुझे स्वीकार करनेवालों का हिंसन मत कर।
भावार्थ
हमारे घर अन्न, रस व दुग्ध से परिपूर्ण हों। ये बड़े मापकर बने हुए घर अन्नों को धारण करते हुए, इनमें रहनेवाले हम लोगों का हिंसन न करें।
सूचना
सूचना-घरों में मांस का स्थान नहीं। मांस आया और स-वह माम्-मुझे ही खाता है [मां-स]।
भाषार्थ
(ऊर्जस्वती) बल और प्राण देने वाले अन्नों वाली, (पयस्वती) दूध वाली [तथा जल वाली], (मिता) और मापी गई शाला (पृथिव्याम्) पृथिवी में (निमिता) निर्मित हुई है। (विश्वान्नम्) सब प्रकार के अन्नों को (बिभ्रती) धारण करती हुई (शाले) हे शाला ! (प्रतिगृह्णतः) ग्रहण करने वाले की (मा हिंसीः) तू हिंसा न कर।
टिप्पणी
[ऊर्जस्= ऊर्ज बलप्राणनयोः (चुरादि); ऊर्क अन्ननाम (निघं० २।७)। मा हिंसीः= गृहरूपी आश्रय के बिना असुरक्षित को, आश्रय देकर, उसे हिंसित होने से बचा।]
विषय
शाला, महाभवन का निर्माण और प्रतिष्ठा।
भावार्थ
हे (शाले) शाले ! गृह ! तू (ऊर्जस्वती) आरोग्य पराक्रम से युक्त एवं धन धान्य से सम्पन्न (पयस्वती) दुग्ध, रस, जल आदि से परिपूर्ण, (पृथिव्याम्) पृथिवी पर (मिता) माप माप कर (निमिता) बनाई गई है, तू (विश्वान्नम्) सब प्रकार के अन्नों को (बिभ्रती) धारण करती हुई (प्रतिगृह्णतः) स्वीकार करते हुए स्वामी का (मा हिंसीः) विनाश न कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वङ्गिरा ऋषिः। शाला देवता। १, ५ , ८, १४, १६, १८, २०, २२, २४ अनुष्टुभः। ६ पथ्यापंक्तिः। ७ परा उष्णिक्। १५ त्र्यवसाना पञ्चपदातिशक्वरी। १७ प्रस्तारपंक्तिः। २१ आस्तारपंक्तिः। २५, ३१ त्रिपादौ प्रजापत्ये बृहत्यौ। २६ साम्नी त्रिष्टुप्। २७, २८, २९ प्रतिष्ठा नाम गायत्र्यः। २५, ३१ एकावसानाः एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
The Good House
Meaning
Bubbling with energy and enthusiasm of the inmates, overflowing with water, milk and nutriments, measured, built and secured on firm foundations on earth, bearing abundance of food of universal quality, O sweet home, pray never hurt the household and the master.
Translation
Rich in fuel and vigour (urjasvati), rich in milk (payasvati), you haye been built with proper measurements (nimita mita) on the earth. Holding all sorts of food, may you never harm those who take you over.
Translation
Let not this house enriched with prosperity, rich in milk, founded and built in measured way on the earth, possessed of the plenty of various corns, give any trouble to inmates of it.
Translation
Rich in prosperity, rich in milk and water, founded and built upon a nice plot, injure not thy inmates, House, that holdest food of every kind!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१६−(ऊर्जस्वती) बलपराक्रमवर्धयित्री (पयस्वती) जलदुग्धादियुक्ता (पृथिव्याम्) उचितभूम्याम् (निमिता) प्रतिष्ठापिता (मिता) परिमाणयुक्ता (विश्वान्नम्) सर्वान्नम् (बिभ्रती) धारयन्ती (शाले) (मा हिंसीः) मा पीडय (प्रतिगृह्णतः) स्वीकर्तॄन् पुरुषान् ॥
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