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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 21
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - शाला छन्दः - आस्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - शाला सूक्त
    72

    या द्विप॑क्षा॒ चतु॑ष्पक्षा॒ षट्प॑क्षा॒ या नि॑मी॒यते॑। अ॒ष्टाप॑क्षां॒ दश॑पक्षां॒ शालां॒ मान॑स्य॒ पत्नी॑म॒ग्निर्गर्भ॑ इ॒वा श॑ये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या । द्विऽप॑क्षा । चतु॑:ऽपक्षा । षट्ऽप॑क्षा । या । नि॒ऽमी॒यते॑ । अ॒ष्टाऽप॑क्षाम् । दश॑ऽपक्षाम् । शाला॑म् । मान॑स्य । पत्नी॑म् । अ॒ग्नि: । गर्भ॑:ऽइव । आ । श॒ये॒ ॥३.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या द्विपक्षा चतुष्पक्षा षट्पक्षा या निमीयते। अष्टापक्षां दशपक्षां शालां मानस्य पत्नीमग्निर्गर्भ इवा शये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या । द्विऽपक्षा । चतु:ऽपक्षा । षट्ऽपक्षा । या । निऽमीयते । अष्टाऽपक्षाम् । दशऽपक्षाम् । शालाम् । मानस्य । पत्नीम् । अग्नि: । गर्भ:ऽइव । आ । शये ॥३.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 21
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    हिन्दी (4)

    विषय

    शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]

    पदार्थ

    (या) जो (द्विपक्षा) दो पक्षवाली [अर्थात् जिसके मध्य में एक, और पूर्व पश्चिम में एक-एक शाला हो], (चतुष्पक्षा) चार पक्षवाली [जिसके मध्य में एक और पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर में एक-एक शाला हो], (या) जो (षट्पक्षा) छह पक्षवाली [जिसके बीच में बड़ी शाला और दो-दो पूर्व पश्चिम और एक-एक उत्तर दक्षिण में शाला हों] (निमीयते) बनाई जाती है। [उसको और] (अष्टापक्षाम्) आठ पक्षवाली [जिसके बीच में एक और चारों ओर दो-दो शाला हों] और (दशपक्षाम्) दश पक्षवाली [जिसके मध्य में दो शाला और चारों दिशाओं में दो-दो शाला हों], [उस] (मानस्य) सम्मान की (पत्नीम्) रक्षा करनेहारी (शालाम्) शाला में (अग्निः) जाठराग्नि और (गर्भः इव) गर्भस्थ बालक के समान (आ शये) मैं ठहरता हूँ ॥२१॥

    भावार्थ

    जैसे जाठराग्नि शरीर में और गर्भस्थ बालक गर्भाशय में सुरक्षित रहता है, इसी प्रकार मनुष्य अस्त्र, शस्त्र, शिल्प, कला, कौशल आदि के योग्य छोटे-बड़े स्थानों को अनेक मान-परिमाणयुक्त बनाकर सुरक्षित रहें ॥२१॥ यह और अगला मन्त्र स्वामिदयानन्दकृतसंस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात हैं ॥ यहाँ पर द्विपदा आदि शालाओं के कुछ चित्र दिये जाते हैं, और भी इनके अनेक चित्र हो सकते हैं। चतुर बृहस्पति, विश्वकर्मा शिल्पाधिकारियों की सम्मति से सब लोग, वायु धूप आदि आने-जाने योग्य स्तम्भ, द्वार, खिड़की, छत आदि विचारपूर्वक लगाकर शालाओं को सुदृढ़ रुचिर और सुखदायी बनावें ॥

    टिप्पणी

    २१−(या) शाला (द्विपक्षा) गृहपक्षद्वययुक्ता (चतुष्पक्षा) पक्षचतुष्टयोपेता (षट्पक्षा) षट्पक्षयुक्ता (या) (निमीयते) निर्मिता भवति (अष्टापक्षाम्) छन्दसि च। पा–० ६।३।१२६। अष्टन आत्वम्। अष्टपक्षयुक्ताम् (दशपक्षाम्) दशपक्षवतीम् (शालाम्) (मानस्य) गौरवस्य (पत्नीम्) रक्षित्रीम् (अग्निः) जाठराग्निः (गर्भः) भ्रूणः (इव) यथा (आ शये) अधितिष्ठामि ॥

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    विषय

    द्विपक्षा-दशपक्षा

    पदार्थ

    १. (या द्विपक्षा) = जो शाला दो पक्षों-कक्षागृहोंवाली है, (चतुष्पक्षा) = चार कक्षागृहोंवाली है, (या) = जो (षट्पक्षा निमीयते) = छह कक्षागृहोंवाली मानपूर्वक बनाई गई है। जो शाला (अष्टापक्षाम्) = आठ कक्षागृहोंवाली है, (दशपक्षां शालाम्) = और जो दस पक्षोंवाली शाला है, जो शाला (मानस्य पत्नीम्) = मान का रक्षण करनेवाली है, अर्थात् बड़े माप से बनाई गई है, उसमें मैं इसप्रकार (आशये) = निवास करता हूँ (इव) = जैसेकि (अग्निः) = जाठराग्नि (गर्भे) = उदर में निवास करती है अथवा जैसे जाठराग्नि और गर्भस्थ बालक अपने-अपने स्थान में सुरक्षित रहते हैं।

    भावार्थ

    परिवार के छोटे-बड़े होने के अनुसार शाला दो से दस कक्षागृहों तक बनाया जा सकता है। ये सब कक्षागृह बड़े माप से बने हों। इनमें हम अतिशयेन सुरक्षितरूप में निवास करें।

    सूचना

    सुचना-पं0 जयदेवजी शर्मा के अनुसार 'अग्निगर्भइव' का अर्थ यह है कि जैसे 'गर्भः अग्निः' गर्भस्थ बालक मातृगर्भ में सुरक्षित रहता है।

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    भाषार्थ

    (या) जो शाला (द्विपक्षा) दो पक्षों वाली, (चतुष्पक्षा) चार पक्षों वाली, (या) जो (षट्पक्ष) छः पक्षों वाली (निमीयते) निर्मित की जाती है, तथा (अष्टापक्षाम्) आठ पक्षों वाली (दशपक्षाम्) दश पक्षों वाली, (मानस्य पत्नीम्) मान की रक्षा करने वाली (शालाम्) शाला में, (अग्निः) गार्हपत्य-यज्ञियाग्नि (आशये) सोती है, (इव) जैसे कि (गर्भः) गर्भस्थशिशु माता के गर्भ में सोता है।

    टिप्पणी

    [आ शये=आ शेते, "लोपस्त आत्मनेपदेषु" (अष्टा० ७।१।४७) द्वारा "त्" का लोप। पक्ष का अर्थ है "मध्यस्थ मुख्य कमरे के पार्श्वों में निर्मित कमरे। मन्त्रोक्त शाला ११ कमरों वाली है, एक मध्यस्थ कमरा तथा १० पक्षस्थ कमरे। अग्निः (देखो मन्त्र १९)। आ शये= शालास्थ अग्नि सदा उद्बुद्धावस्था में नहीं होती, अपितु प्रसुप्तावस्था में सदा बनी रहती हैं, आवश्यकानुसार इसे उद्बुद्ध कर लिया जाता है। यहां प्रश्न हो सकता है कि इतनी बड़ी शाला को तोड़े बिना यह "अमुत्र" (१४) तथा "पत्रकामं भरामसि' (२४) के अनुसार स्थानान्तरित कैसे किया जा सकता है ? इसका उत्तर यह है कि शाला "पद्वती" है। पहियों वाली है। जैसे पहियों वाली रेलगाड़ी एक स्थान से दूसरे स्थान में जाती है वैसे पहियों वाली शाला भी जा सकती है। पैप्पलाद शाखा में मन्त्र १९ के स्थान में पाठ है "चतुः स्रक्तिं परिचक्राम शालाम्”, अर्थात् चतुष्कोण तथा चारों कोनों में चक्रों अर्थात् पहियों वाली शाला को [इन्द्राग्नी सुरक्षित करें]। इसलिये शाला में लगे पहिये काल्पनिक नहीं, अपितु पैप्पलाद शाखा द्वारा पहिये वास्तविक प्रतीत होते हैं। एक ही मन्त्र में "परिचक्राम" और "इन्द्राग्नी" के वर्णन से सम्भवतः पैप्पलाद शाखा में यह भी अभिप्रेत है कि इन्द्र (विद्युत्) और अग्नि, निज शक्ति द्वारा परिचक्रा-शाला के संचालनपूर्वक शाला की रक्षा करें]

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    विषय

    शाला, महाभवन का निर्माण और प्रतिष्ठा।

    भावार्थ

    (मानस्य पत्नी) मान, मातृत्व सामर्थ्य का पालन करने वाली स्त्री में (गर्भः) गर्भ रूप (अग्निः इव) जीव जिस प्रकार सोता है उसी प्रकार मैं (अग्निः) गृहपति (अष्टापक्षां दशपक्षां शालां आशये) आठ कोठरियों और दश कोठरियों वाली शाला के बीच में रहूं (या) जो शाला (द्विपक्षा) दो कोठरियों वाली, (चतुष्पक्षा) चार कोठों वाली और (या) जो (षट्पक्षा) छः कोठरियों वाली भी (निमीयते) बनाई जाती है। पक्ष=कक्षागृह। द्विपक्षा=जिसमें दो कमरे हों। अष्टापक्षा=आठ कमरों वाली। दशपक्षा=दश कमरों वाली।

    टिप्पणी

    पक्ष परिग्रहे (पचाद्यच्) पक्षः कोष्ठः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वङ्गिरा ऋषिः। शाला देवता। १, ५ , ८, १४, १६, १८, २०, २२, २४ अनुष्टुभः। ६ पथ्यापंक्तिः। ७ परा उष्णिक्। १५ त्र्यवसाना पञ्चपदातिशक्वरी। १७ प्रस्तारपंक्तिः। २१ आस्तारपंक्तिः। २५, ३१ त्रिपादौ प्रजापत्ये बृहत्यौ। २६ साम्नी त्रिष्टुप्। २७, २८, २९ प्रतिष्ठा नाम गायत्र्यः। २५, ३१ एकावसानाः एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Good House

    Meaning

    Nested like a holy child in the mother’s womb, I live in the house which is designed and built with two wings, four wings, six wings, eight wings, and ten wings, and which protects my honour and prestige in society. And there I live like the vital heat of life in the body. (This means that the family home is not an expendable something, it is integrated with the life of the family and every one member of the family).

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    Translation

    In the mansion, constructed with two wings, four wings, six wings, eight wings or ten wings, the queen of buildings. I take shelter, like fire in a secluded place.

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    Translation

    Like the animal heat in the body and foetus in the womb I, the master of the house live in the houses which are built with two wings, four wings, six wings, eight wings, and are constructed in appropriate measurement.

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    Translation

    Within the house built with two, four, six, eight or ten rooms, I, its owner rest like a babe in the womb.

    Footnote

    These two verses have been translated by Swami Dayanand in the Samskar Vidhi.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २१−(या) शाला (द्विपक्षा) गृहपक्षद्वययुक्ता (चतुष्पक्षा) पक्षचतुष्टयोपेता (षट्पक्षा) षट्पक्षयुक्ता (या) (निमीयते) निर्मिता भवति (अष्टापक्षाम्) छन्दसि च। पा–० ६।३।१२६। अष्टन आत्वम्। अष्टपक्षयुक्ताम् (दशपक्षाम्) दशपक्षवतीम् (शालाम्) (मानस्य) गौरवस्य (पत्नीम्) रक्षित्रीम् (अग्निः) जाठराग्निः (गर्भः) भ्रूणः (इव) यथा (आ शये) अधितिष्ठामि ॥

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