अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 21
सूक्त - भृग्वङ्गिराः
देवता - शाला
छन्दः - आस्तारपङ्क्तिः
सूक्तम् - शाला सूक्त
27
या द्विप॑क्षा॒ चतु॑ष्पक्षा॒ षट्प॑क्षा॒ या नि॑मी॒यते॑। अ॒ष्टाप॑क्षां॒ दश॑पक्षां॒ शालां॒ मान॑स्य॒ पत्नी॑म॒ग्निर्गर्भ॑ इ॒वा श॑ये ॥
स्वर सहित पद पाठया । द्विऽप॑क्षा । चतु॑:ऽपक्षा । षट्ऽप॑क्षा । या । नि॒ऽमी॒यते॑ । अ॒ष्टाऽप॑क्षाम् । दश॑ऽपक्षाम् । शाला॑म् । मान॑स्य । पत्नी॑म् । अ॒ग्नि: । गर्भ॑:ऽइव । आ । श॒ये॒ ॥३.२१॥
स्वर रहित मन्त्र
या द्विपक्षा चतुष्पक्षा षट्पक्षा या निमीयते। अष्टापक्षां दशपक्षां शालां मानस्य पत्नीमग्निर्गर्भ इवा शये ॥
स्वर रहित पद पाठया । द्विऽपक्षा । चतु:ऽपक्षा । षट्ऽपक्षा । या । निऽमीयते । अष्टाऽपक्षाम् । दशऽपक्षाम् । शालाम् । मानस्य । पत्नीम् । अग्नि: । गर्भ:ऽइव । आ । शये ॥३.२१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (1)
विषय
शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]
पदार्थ
(या) जो (द्विपक्षा) दो पक्षवाली [अर्थात् जिसके मध्य में एक, और पूर्व पश्चिम में एक-एक शाला हो], (चतुष्पक्षा) चार पक्षवाली [जिसके मध्य में एक और पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर में एक-एक शाला हो], (या) जो (षट्पक्षा) छह पक्षवाली [जिसके बीच में बड़ी शाला और दो-दो पूर्व पश्चिम और एक-एक उत्तर दक्षिण में शाला हों] (निमीयते) बनाई जाती है। [उसको और] (अष्टापक्षाम्) आठ पक्षवाली [जिसके बीच में एक और चारों ओर दो-दो शाला हों] और (दशपक्षाम्) दश पक्षवाली [जिसके मध्य में दो शाला और चारों दिशाओं में दो-दो शाला हों], [उस] (मानस्य) सम्मान की (पत्नीम्) रक्षा करनेहारी (शालाम्) शाला में (अग्निः) जाठराग्नि और (गर्भः इव) गर्भस्थ बालक के समान (आ शये) मैं ठहरता हूँ ॥२१॥
भावार्थ
जैसे जाठराग्नि शरीर में और गर्भस्थ बालक गर्भाशय में सुरक्षित रहता है, इसी प्रकार मनुष्य अस्त्र, शस्त्र, शिल्प, कला, कौशल आदि के योग्य छोटे-बड़े स्थानों को अनेक मान-परिमाणयुक्त बनाकर सुरक्षित रहें ॥२१॥ यह और अगला मन्त्र स्वामिदयानन्दकृतसंस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात हैं ॥ यहाँ पर द्विपदा आदि शालाओं के कुछ चित्र दिये जाते हैं, और भी इनके अनेक चित्र हो सकते हैं। चतुर बृहस्पति, विश्वकर्मा शिल्पाधिकारियों की सम्मति से सब लोग, वायु धूप आदि आने-जाने योग्य स्तम्भ, द्वार, खिड़की, छत आदि विचारपूर्वक लगाकर शालाओं को सुदृढ़ रुचिर और सुखदायी बनावें ॥
टिप्पणी
२१−(या) शाला (द्विपक्षा) गृहपक्षद्वययुक्ता (चतुष्पक्षा) पक्षचतुष्टयोपेता (षट्पक्षा) षट्पक्षयुक्ता (या) (निमीयते) निर्मिता भवति (अष्टापक्षाम्) छन्दसि च। पा० ६।३।१२६। अष्टन आत्वम्। अष्टपक्षयुक्ताम् (दशपक्षाम्) दशपक्षवतीम् (शालाम्) (मानस्य) गौरवस्य (पत्नीम्) रक्षित्रीम् (अग्निः) जाठराग्निः (गर्भः) भ्रूणः (इव) यथा (आ शये) अधितिष्ठामि ॥
इंग्लिश (1)
Subject
The Good House
Meaning
Nested like a holy child in the mother’s womb, I live in the house which is designed and built with two wings, four wings, six wings, eight wings, and ten wings, and which protects my honour and prestige in society. And there I live like the vital heat of life in the body. (This means that the family home is not an expendable something, it is integrated with the life of the family and every one member of the family).
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२१−(या) शाला (द्विपक्षा) गृहपक्षद्वययुक्ता (चतुष्पक्षा) पक्षचतुष्टयोपेता (षट्पक्षा) षट्पक्षयुक्ता (या) (निमीयते) निर्मिता भवति (अष्टापक्षाम्) छन्दसि च। पा० ६।३।१२६। अष्टन आत्वम्। अष्टपक्षयुक्ताम् (दशपक्षाम्) दशपक्षवतीम् (शालाम्) (मानस्य) गौरवस्य (पत्नीम्) रक्षित्रीम् (अग्निः) जाठराग्निः (गर्भः) भ्रूणः (इव) यथा (आ शये) अधितिष्ठामि ॥
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